चंडीगढ़: खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के 7 साथियों पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में सुनवाई हुई थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण एक व्यक्ति के लिए तब उपलब्ध होता है, जब उसे लगता है कि उसे जबरन गिरफ्तार किया गया है या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित हुई है. अब इस मामले में सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि इस मामले में याचिका दायर करने वाले सभी लोग अमृतपाल के सहयोगी थे.
जिस तरह से अमृतपाल सिंह खालिस्तान की बात कर रहा था, उसमें ये सभी अमृतपाल का साथ दे रहे थे. ये सभी अमृतपाल की खालिस्तान की मांग में शामिल थे. ये सभी देश के खिलाफ साजिश रचने में भी शामिल रहे हैं. इसके साथ ही पंजाब सरकार ने कलसी की अपील पर एक सलाहकार बोर्ड का गठन किया है. कलसी की अपील बोर्ड के समक्ष लंबित है.
बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में अमृतपाल पर सुनवाई
बता दें कि कोर्ट ने युवक के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई कार्रवाई में केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा है. मामले में केंद्र सरकार ने अभी कोर्ट में हलफनामा दाखिल नहीं किया है. बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में अगली सुनवाई 24 अप्रैल को होगी. यहां यह भी बता दें कि अमृतपाल के पुलिस हिरासत में होने के संदेह को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण के तहत सुनवाई होगी.
आपको बता दें कि अमृतपाल सिंह के साथी भगवंत सिंह बाजेके की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान अमृतपाल के वकील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जिस शख्स पर NSA लगाया गया है, उसके लिए आप याचिका कैसे दाखिल कर सकते हैं. इसके साथ ही असम जेल अधीक्षक को किस आधार पर पक्षकार बनाया गया है.
बंदी प्रत्यक्षीकरण क्या है ?
भारत का संविधान देश के किसी भी नागरिक को पूर्ण स्वतंत्रता में रहने और कानून के अनुसार जीने का अधिकार देता है, अगर किसी कारण से उसके साथ छेड़छाड़ होती है तो वह व्यक्ति कानून या अदालत का सहारा ले सकता है. ऐसे समय में हेबियस कॉर्पस काम आता है. बंदी प्रत्यक्षीकरण एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है 'शरीर', लेकिन कानूनी रूप से इसका उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति की रिहाई के लिए किया जाता है जिसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया हो या गिरफ्तार किया गया हो. हिंदी में इसे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका कहते हैं.
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