लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक युवक को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर तीन अन्य व्यक्तियों के साथ अपनी प्रेमिका से गैंगरेप करने का आरोप है. कोर्ट ने नोटिस किया है कि जब सह आरोपी महिला के साथ रेप कर रहे थे तब युवक मूक दर्शक बना रहा. जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कहा कि प्रेमी होने के नाते, अपनी महिला मित्र की गरिमा, सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करना बाध्यकारी कर्तव्य था.
पीड़िता ने मामले में एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोपी राजू (आवेदक/बॉयफ्रेंड), गुलशन, सत्यम और एक अज्ञात को नामित किया था. पीड़िता ने आरोप लगाया था कि वह अपने प्रेमी राजू के साथ नदी के पास एक सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल से गई थी.
बातचीत के दरमियान प्रेमी ने प्रेमिका (पीड़िता) के साथ यौन संबंध बनाने की पेशकश की. पीड़िता के कड़े विरोध के बावजूद उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. इसी दरमियान अचानक तीन और लोग वहां पहुंच गए. उन्होंने प्रेमी के साथ गाली-गलौज और मारपीट कर उसका मोबाइल छीन लिया और उन तीनों में से दो ने पीड़िता का रेप किया.
आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों में पीड़िता ने स्वीकार किया था कि आवेदक उसका प्रेमी है और उसने सहमति के बाद उसके साथ संबंध बनाये थे. वकील ने कहा कि इसी दौरान दुर्भाग्य से अन्य सह-आरोपी भी मौके पर पहुंच गए. तीनों ने संयुक्त रूप से अपराध को अंजाम दिया और सामूहिक बलात्कार में आवेदक की कोई भूमिका नहीं थी. वकील ने आगे कहा कि तीन अन्य सह-आरोपी, जो अजनबी थे, उन्होंने पीड़िता के साथ बलात्कार किया. आवेदक उस गिरोह का सदस्य नहीं है और न ही उसका सह-आरोपियों से कोई संबंध है.
कोर्ट ने कहा कि जमानत के स्तर पर यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि आवेदक का अन्य सह-आरोपियों के साथ कोई संबंध नहीं है, हालांकि वह खुद भी उसी नापाक अपराध में सहभागी था. कोर्ट ने जमानत से इनकार करते हुए कहा, आवेदक का कृत्य दु: खद और एक प्रेमी के अनुरूप नहीं था, जो इन अपराधियों से अपनी प्रेमिका को बचा नहीं सका. कोर्ट ने यह भी कहा, यदि कोई लड़की वयस्क है तो सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से यह अनैतिक है और भारतीय समाज के स्थापित सामाजिक मानदंडों के अनुरूप भी नहीं है.
अपराध की प्रकृति, इसकी गंभीरता और इसके समर्थन में साक्ष्य और इस मामले की समग्र परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने आवेदक के पक्ष में धारा 439 सीआरपीसी के तहत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग नहीं किया और आवेदक की जमानत की प्रार्थना खारिज कर दी गई. जमानत अर्जी पर याचिकाकर्ता की तरफ से वकील सैयद सोहेल असगर ने दलील दी थी.
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