ETV Bharat / bharat

45 से अधिक देशों की 42,000 किमी लंबी यात्रा के बाद श्रीनगर पहुंचे नितिन - Nitin arrived in Srinagar

साइकिल चलाकर दुनिया का चक्कर लगाने वाले पुणे के नितिन सोनावणे (Nitin Sonawane) करीब 46 देशों की यात्रा कर श्रीनगर पहुंचे हैं. गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी (Gautam Buddha and Mahatma Gandhi) से प्रेरित नितिन इस साल 2 अक्टूबर को दिल्ली में अपनी यात्रा समाप्त करेंगे.

श्रीनगर पहुंचे नितिन
श्रीनगर पहुंचे नितिन
author img

By

Published : Aug 13, 2021, 1:20 AM IST

Updated : Aug 13, 2021, 3:38 AM IST

श्रीनगर : साइकिल चलाकर दुनिया का चक्कर लगाने वाले पुणे के नितिन सोनावणे (Nitin Sonawane) करीब 46 देशों की यात्रा कर श्रीनगर पहुंचे हैं. गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी (Gautam Buddha and Mahatma Gandhi) से प्रेरित नितिन इस साल 2 अक्टूबर को दिल्ली में अपनी यात्रा समाप्त करेंगे.

ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, नितिन ने कहा कि वह दुनिया के हर कोने में अहिंसा और शांति (non-violence and peace ) का संदेश फैलाना चाहते हैं.

पेश हैं इंटरव्यू के अंश

सवाल : हमें अपनी यात्रा और अपने बारे में बताएं?

नितिन : मेरा परिवार अलग है. मेरी मां ईसाई हैं, मेरे पिता रमजान के दौरान रोजा रखते हैं और मेरी दादी ने सिख धर्म अपना लिया है. फिर भी हम हिंदू धर्म का पालन करते हैं. पुणे में हमारे घर की दीवार पर हर धर्म से जुड़ी तस्वीरें टंगी हैं और मैं हर धर्म के पूजा स्थलों का दौरा करता रहा हूं.

यह मेरे लिए सभी धर्मों के विचारों को समझने का एक अच्छा अवसर है. इन सबके बावजूद विज्ञान ने मुझे प्रभावित किया और मुझे दुविधा में भी डाल दिया. यही वजह है कि 16 साल की उम्र में मैं सोचने लगा कि हम कौन हैं और क्यों हैं? तब मैं गौतम बुद्ध के जीवन से प्रेरित हुआ और उनकी तरह सत्य की खोज में निकल पड़ा, लेकिन सिर्फ एक रात में वापस आ गया था, क्योंकि ज्ञान की कमी थी.

उसके बाद मैंने अपनी इंजीनियरिंग पूरी की और नौकरी भी की. हालाँकि, मैं एक इंजीनियर के रूप में अपने भविष्य के जीवन से संतुष्ट नहीं था और फिर मैं महाराष्ट्र में एक गांधीवादी संगठन (Gandhian organization in Maharashtra) में शामिल हो गया. वहां मैंने जाति व्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव (caste system and communal harmony) पर काम किया.

ईटीवी भारत से बात करते नितिन

साथ ही मैं गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित हुआ और मैंने उनके संदेश को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए 2016 में अपनी यात्रा शुरू की. मैंने अपनी यात्रा पहले साइकिल से शुरू की, फिर 2 अक्टूबर 2018 को मैंने दक्षिण अफ्रीका ( South Africa) से अकेले चलना शुरू किया और 2019 में लंदन में गांधीजी का पुण्यतिथि मनाई. उसके बाद, मैंने कई अन्य देशों की भी यात्रा की और अफगानिस्तान आखिरी देश था जहां मैं गया. भारत लौटने के बाद, मैंने वाघा सीमा (Wagah border ) से अपनी यात्रा फिर से शुरू की और दो दिन पहले श्रीनगर पहुंचा.

सवाल : महामारी के दौरान आपने कैसे यात्रा की?

नितिन : जब महामारी फैली, मैं जॉर्जिया में था. रात का कर्फ्यू था, लेकिन लोगों के बाहर जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी. इसलिए मैं बाहर और सामाजिक रूप से लोगों से दूर व्यायाम करता रहा. पहले मैं लोगों के साथ रहता था, लेकिन अब मैं पहाड़ों और नदी के किनारे टेंटों में रहने लगा. मैंने वहां तीन महीने बिताए और फिर तुर्की ने प्रतिबंध हटा दिए और मैं वहां गया.

सवाल : क्या आपको इस दौरान किसी तरह की चोट का सामना नहीं करना पड़ा?

नितिन : मैं दो बार चोटिल हुआ. पहला रवांडा में और दूसरा अफगानिस्तान में, दोनों बार मेरा पैर टूट गया. पहली बार जब मैं पहाड़ों पर सफर कर रहा था, मैं कम से कम एक महीने तक नहीं चल सका, दूसरी बार मैंने बैक-फ्लिप (back-flip ) किया और फिर से चोटिल हो गया. इसी अवधि के दौरान मैं काबुल में जिन लोगों के साथ रह रहा था, वे इस वायरस से संक्रमित थे और इस वजह से मुझमें भी कुछ हल्के लक्षण थे. मैं चोट के कारण पहले से ही आइसोलेशन में था इसलिए इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. इस बीच, मुझे लगता है कि वहां के लोगों ने मेरा अच्छा ख्याल रखा.

सवाल : अलग-अलग देशों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं, क्या आपको कोई परेशानी हुई?

नितिन : स्थानीय लोगों से बात करना बहुत मुश्किल था, इसलिए मैंने स्थानीय भाषा में एक पैम्फलेट बनाया, जिस पर मेरा संदेश और जरूरतें लिखी हुई थीं. साथ ही गूगल ट्रांसलेटर (Google Translator) ने भी काफी मदद की.

सवाल : लगभग 42,000 किमी लंबी यात्रा में खर्चे कैसे पूरे हुए?

नितिन : गांधी जी के जीवन से मैं समझ गया कि आप कम से कम खर्च में कैसे जी सकते हैं. मेरे पास एक तंबू था, एक स्लीपिंग बैग था, सबसे बड़ा खर्चा था खाना और वीजा. इस संबंध में गांधीजी के विचारों पर काम करने वाले स्थानीय लोगों और संगठनों ने बहुत मदद की.

पढ़ें - परिवारवाद-जातिवाद से मुक्त होकर विकासवाद के पथ पर बढ़ता यूपी : दिनेश शर्मा

सवाल : एक ऐसा देश जहां आप जाना चाहते थे, लेकिन नहीं जा सके?

नितिन : मुझे रूस जाना है क्योंकि यह बहुत शक्तिशाली देश है और मुझे ईरान जाना था. मैंने ईरान के आतिथ्य के बारे में बहुत कुछ सुना है, लेकिन मैं दोनों जगहों पर नहीं जा सका. भविष्य में अवसर आया तो मैं जाऊंगा. मुझे अब पाकिस्तान जाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है. मेरा वीजा आवेदन एक बार खारिज कर दिया गया था, मैं फिर कोशिश करूंगा, नहीं तो मैं करतारपुर गलियारे से गुजरूंगा.

सवाल : क्या जम्मू से कश्मीर आने में हुई थी कोई दिक्कत?

नितिन : कश्मीर में सुरक्षा का बड़ा मसला है. सेना हर जगह तैनात है, इसलिए हर जगह मेरा पहचान पत्र चेक किया गया. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं, इसलिए यह और अधिक कठिन नहीं हुआ. यहां से मैं कारगिल, लेह, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जाऊंगा.

नितिन 2 अक्टूबर को राजघाट पर गांधीजी का जन्मदिन मनाने चाहते हैं, जहां से वह पांच साल बाद घर जाएंगे.

श्रीनगर : साइकिल चलाकर दुनिया का चक्कर लगाने वाले पुणे के नितिन सोनावणे (Nitin Sonawane) करीब 46 देशों की यात्रा कर श्रीनगर पहुंचे हैं. गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी (Gautam Buddha and Mahatma Gandhi) से प्रेरित नितिन इस साल 2 अक्टूबर को दिल्ली में अपनी यात्रा समाप्त करेंगे.

ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, नितिन ने कहा कि वह दुनिया के हर कोने में अहिंसा और शांति (non-violence and peace ) का संदेश फैलाना चाहते हैं.

पेश हैं इंटरव्यू के अंश

सवाल : हमें अपनी यात्रा और अपने बारे में बताएं?

नितिन : मेरा परिवार अलग है. मेरी मां ईसाई हैं, मेरे पिता रमजान के दौरान रोजा रखते हैं और मेरी दादी ने सिख धर्म अपना लिया है. फिर भी हम हिंदू धर्म का पालन करते हैं. पुणे में हमारे घर की दीवार पर हर धर्म से जुड़ी तस्वीरें टंगी हैं और मैं हर धर्म के पूजा स्थलों का दौरा करता रहा हूं.

यह मेरे लिए सभी धर्मों के विचारों को समझने का एक अच्छा अवसर है. इन सबके बावजूद विज्ञान ने मुझे प्रभावित किया और मुझे दुविधा में भी डाल दिया. यही वजह है कि 16 साल की उम्र में मैं सोचने लगा कि हम कौन हैं और क्यों हैं? तब मैं गौतम बुद्ध के जीवन से प्रेरित हुआ और उनकी तरह सत्य की खोज में निकल पड़ा, लेकिन सिर्फ एक रात में वापस आ गया था, क्योंकि ज्ञान की कमी थी.

उसके बाद मैंने अपनी इंजीनियरिंग पूरी की और नौकरी भी की. हालाँकि, मैं एक इंजीनियर के रूप में अपने भविष्य के जीवन से संतुष्ट नहीं था और फिर मैं महाराष्ट्र में एक गांधीवादी संगठन (Gandhian organization in Maharashtra) में शामिल हो गया. वहां मैंने जाति व्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव (caste system and communal harmony) पर काम किया.

ईटीवी भारत से बात करते नितिन

साथ ही मैं गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित हुआ और मैंने उनके संदेश को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए 2016 में अपनी यात्रा शुरू की. मैंने अपनी यात्रा पहले साइकिल से शुरू की, फिर 2 अक्टूबर 2018 को मैंने दक्षिण अफ्रीका ( South Africa) से अकेले चलना शुरू किया और 2019 में लंदन में गांधीजी का पुण्यतिथि मनाई. उसके बाद, मैंने कई अन्य देशों की भी यात्रा की और अफगानिस्तान आखिरी देश था जहां मैं गया. भारत लौटने के बाद, मैंने वाघा सीमा (Wagah border ) से अपनी यात्रा फिर से शुरू की और दो दिन पहले श्रीनगर पहुंचा.

सवाल : महामारी के दौरान आपने कैसे यात्रा की?

नितिन : जब महामारी फैली, मैं जॉर्जिया में था. रात का कर्फ्यू था, लेकिन लोगों के बाहर जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी. इसलिए मैं बाहर और सामाजिक रूप से लोगों से दूर व्यायाम करता रहा. पहले मैं लोगों के साथ रहता था, लेकिन अब मैं पहाड़ों और नदी के किनारे टेंटों में रहने लगा. मैंने वहां तीन महीने बिताए और फिर तुर्की ने प्रतिबंध हटा दिए और मैं वहां गया.

सवाल : क्या आपको इस दौरान किसी तरह की चोट का सामना नहीं करना पड़ा?

नितिन : मैं दो बार चोटिल हुआ. पहला रवांडा में और दूसरा अफगानिस्तान में, दोनों बार मेरा पैर टूट गया. पहली बार जब मैं पहाड़ों पर सफर कर रहा था, मैं कम से कम एक महीने तक नहीं चल सका, दूसरी बार मैंने बैक-फ्लिप (back-flip ) किया और फिर से चोटिल हो गया. इसी अवधि के दौरान मैं काबुल में जिन लोगों के साथ रह रहा था, वे इस वायरस से संक्रमित थे और इस वजह से मुझमें भी कुछ हल्के लक्षण थे. मैं चोट के कारण पहले से ही आइसोलेशन में था इसलिए इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. इस बीच, मुझे लगता है कि वहां के लोगों ने मेरा अच्छा ख्याल रखा.

सवाल : अलग-अलग देशों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं, क्या आपको कोई परेशानी हुई?

नितिन : स्थानीय लोगों से बात करना बहुत मुश्किल था, इसलिए मैंने स्थानीय भाषा में एक पैम्फलेट बनाया, जिस पर मेरा संदेश और जरूरतें लिखी हुई थीं. साथ ही गूगल ट्रांसलेटर (Google Translator) ने भी काफी मदद की.

सवाल : लगभग 42,000 किमी लंबी यात्रा में खर्चे कैसे पूरे हुए?

नितिन : गांधी जी के जीवन से मैं समझ गया कि आप कम से कम खर्च में कैसे जी सकते हैं. मेरे पास एक तंबू था, एक स्लीपिंग बैग था, सबसे बड़ा खर्चा था खाना और वीजा. इस संबंध में गांधीजी के विचारों पर काम करने वाले स्थानीय लोगों और संगठनों ने बहुत मदद की.

पढ़ें - परिवारवाद-जातिवाद से मुक्त होकर विकासवाद के पथ पर बढ़ता यूपी : दिनेश शर्मा

सवाल : एक ऐसा देश जहां आप जाना चाहते थे, लेकिन नहीं जा सके?

नितिन : मुझे रूस जाना है क्योंकि यह बहुत शक्तिशाली देश है और मुझे ईरान जाना था. मैंने ईरान के आतिथ्य के बारे में बहुत कुछ सुना है, लेकिन मैं दोनों जगहों पर नहीं जा सका. भविष्य में अवसर आया तो मैं जाऊंगा. मुझे अब पाकिस्तान जाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है. मेरा वीजा आवेदन एक बार खारिज कर दिया गया था, मैं फिर कोशिश करूंगा, नहीं तो मैं करतारपुर गलियारे से गुजरूंगा.

सवाल : क्या जम्मू से कश्मीर आने में हुई थी कोई दिक्कत?

नितिन : कश्मीर में सुरक्षा का बड़ा मसला है. सेना हर जगह तैनात है, इसलिए हर जगह मेरा पहचान पत्र चेक किया गया. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं, इसलिए यह और अधिक कठिन नहीं हुआ. यहां से मैं कारगिल, लेह, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जाऊंगा.

नितिन 2 अक्टूबर को राजघाट पर गांधीजी का जन्मदिन मनाने चाहते हैं, जहां से वह पांच साल बाद घर जाएंगे.

Last Updated : Aug 13, 2021, 3:38 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.