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कोरोना काल में टूटी सदियों पुरानी परंपरा, 'मिनी जगन्नाथ पुरी' की रथ यात्रा रद्द

मिनी जगन्नाथ पुरी कहने जाने वाले विदिशा जिले के मानोरा गांव में तीन सौ साल से चली आ रही जगन्नाथ यात्रा को कोरोना काल के चलते रद्द कर दिया गया है. साथ यहां तीन दिवसीय मेला का आयोजन भी नहीं होगा. पढ़िए पूरी खबर...

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'मिनी जगन्नाथ पुरी' की रथ यात्रा रद्द
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Published : Jun 23, 2020, 12:31 AM IST

विदिशा। कोराना महामारी के चलते इस बार लोगों को घर में कैद होने को मजबूर होना पड़ा. भगवान और भक्तों के बीच भी लॉकडाउन दीवार बनकर खड़ा नजर आया. देश के तमाम धार्मिक स्थलों में ताले लटके रहे. लेकिन जैसे ही अनलॉक 1.0 लागू हुआ वैसे ही धार्मिक स्थल खुले, जिसके बाद भगवान और भक्तों का मिलाप शुरू हो गया. हालांकि कोरोना काल के इस दौर में श्रद्धालुओं को सदियों पुरानी परंपराओं से समझौता करना पड़ा. ऐसा नजारा मिनी जगन्नाथ पुरी कहे जाने वाले जिले के मानोरा गांव में भी देखने को मिला.

'मिनी जगन्नाथ पुरी' की रथ यात्रा रद्द

23 जून का दिन यहां बेहद शुभ माना जाता है. पूरा गांव उत्साहित होता है, क्योंकि इस दिन भगवान जगदीश के जयकारों की गूंज हर कोने में सुनाई देती है. हर कोई भगवान के मंदिर पहुंचकर दर्शन लाभ लेने के लिए घर से निकल पड़ता है. लाखों लोग रथ में आरूढ़ भगवान जगदीश स्वाम, देवी सुभद्रा और बलभद्र के दर्शन करने के लिए दौड़ पड़ते हैं. मीलों दूर से श्रद्धालु 1 दिन पहले ही दंड भरते हुए यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस बार जगदीश स्वामी मंदिर में तीन सौ साल पुरानी रथयात्रा को कोरोना काल के चलते प्रशासन ने स्थगित कर दिया. जिसके चलते श्रद्धालु मायूस हो गए. हालांकि प्रशासन का ये फैसला कोरोना से सुरक्षा के मद्देनजर लिया गया है.

मिनी जगन्नाथपुरी के नाम से मशहूर ये गांव लाखों लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र तो है ही साथ ही इस देव स्थल में सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के परिवार की भी गहरी आस्था है.

माना जाता है कि मानोरा के तरफदार मानिकचंद और उनकी पत्नी पद्मावती को दिया वचन निभाने हर साल आषाढ़ में भगवान जगदीश स्वामी इस छोटे से गांव में पधारते हैं. हालांकि कोरोना काल के चलते इस साल मानोरा में होने वाले सभी आयोजनों को पूरी तरह रद्द कर दिया गया है. अब जगन्नाथ की यात्रा यहां नहीं निकाली जा रही है.

मानोरा में तीन दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता था, लेकिन अब इसको भी रोक दिया गया है. मंदिर के बाहर पुलिस बल तैनात है. मंदिर में प्रवेश द्वार पर सेनिटाइजिंग मशीन भी लगाई गई है, जिससे श्रद्धालुओं को संक्रमण के खतरे से बचाया जा सके. तीन सौ साल पुरानी परंपरा के टूटने पर श्रद्धालु थोड़े मायूस जरूर हैं, लेकिन मौजूदा कोरोना संकट को देखते हुए प्रशासन का ये फैसला उनके हित में ही है.

विदिशा। कोराना महामारी के चलते इस बार लोगों को घर में कैद होने को मजबूर होना पड़ा. भगवान और भक्तों के बीच भी लॉकडाउन दीवार बनकर खड़ा नजर आया. देश के तमाम धार्मिक स्थलों में ताले लटके रहे. लेकिन जैसे ही अनलॉक 1.0 लागू हुआ वैसे ही धार्मिक स्थल खुले, जिसके बाद भगवान और भक्तों का मिलाप शुरू हो गया. हालांकि कोरोना काल के इस दौर में श्रद्धालुओं को सदियों पुरानी परंपराओं से समझौता करना पड़ा. ऐसा नजारा मिनी जगन्नाथ पुरी कहे जाने वाले जिले के मानोरा गांव में भी देखने को मिला.

'मिनी जगन्नाथ पुरी' की रथ यात्रा रद्द

23 जून का दिन यहां बेहद शुभ माना जाता है. पूरा गांव उत्साहित होता है, क्योंकि इस दिन भगवान जगदीश के जयकारों की गूंज हर कोने में सुनाई देती है. हर कोई भगवान के मंदिर पहुंचकर दर्शन लाभ लेने के लिए घर से निकल पड़ता है. लाखों लोग रथ में आरूढ़ भगवान जगदीश स्वाम, देवी सुभद्रा और बलभद्र के दर्शन करने के लिए दौड़ पड़ते हैं. मीलों दूर से श्रद्धालु 1 दिन पहले ही दंड भरते हुए यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस बार जगदीश स्वामी मंदिर में तीन सौ साल पुरानी रथयात्रा को कोरोना काल के चलते प्रशासन ने स्थगित कर दिया. जिसके चलते श्रद्धालु मायूस हो गए. हालांकि प्रशासन का ये फैसला कोरोना से सुरक्षा के मद्देनजर लिया गया है.

मिनी जगन्नाथपुरी के नाम से मशहूर ये गांव लाखों लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र तो है ही साथ ही इस देव स्थल में सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के परिवार की भी गहरी आस्था है.

माना जाता है कि मानोरा के तरफदार मानिकचंद और उनकी पत्नी पद्मावती को दिया वचन निभाने हर साल आषाढ़ में भगवान जगदीश स्वामी इस छोटे से गांव में पधारते हैं. हालांकि कोरोना काल के चलते इस साल मानोरा में होने वाले सभी आयोजनों को पूरी तरह रद्द कर दिया गया है. अब जगन्नाथ की यात्रा यहां नहीं निकाली जा रही है.

मानोरा में तीन दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता था, लेकिन अब इसको भी रोक दिया गया है. मंदिर के बाहर पुलिस बल तैनात है. मंदिर में प्रवेश द्वार पर सेनिटाइजिंग मशीन भी लगाई गई है, जिससे श्रद्धालुओं को संक्रमण के खतरे से बचाया जा सके. तीन सौ साल पुरानी परंपरा के टूटने पर श्रद्धालु थोड़े मायूस जरूर हैं, लेकिन मौजूदा कोरोना संकट को देखते हुए प्रशासन का ये फैसला उनके हित में ही है.

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