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मरीज से ज्यादा बीमार है जिला अस्पताल, गर्भवती महिलाएं जमीन पर बैठने को मजबूर - corona cases in india

जिला अस्पताल में गर्भवती स्त्रियों के कोरोना की चपेट में आने का बहुत खतरा है, क्योंकि यहां एक दो नहीं बल्कि दर्जनों महिलाओं को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखकर मजबूरन जमीन पर बैठना पड़ता है. डॉक्टर की कमी के चलते मरीजों को इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है.

district hospital
जिला अस्पताल में लापरवाही
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Published : Jun 8, 2021, 2:07 PM IST

विदिशा। कोरोना महामारी के खिलाफ सोशल डिस्टेंसिंग भी एक कारगर हथियार साबित हुआ है, जो संक्रमण से लोगों को बचाने का एक आसान तरीका है. वहीं दूसरी ओर जिला अस्पताल में गर्भवती स्त्रियों के कोरोना की चपेट में आने का बहुत खतरा है, क्योंकि यहां एक दो नहीं बल्कि दर्जनों महिलाओं को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखकर मजबूरन जमीन पर बैठना पड़ता है.

जिला अस्पताल में लापरवाही

नए अस्पताल में नहीं बदले नियम
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के समय में विदिशा में 144 करोड़ रुपए की लागत से नवीन जिला चिकित्सालय का लोकार्पण किया था. ऐसे में सवाल उठता है कि 350 बिस्तर वाला नवीन जिला चिकित्सालय जिले के करीबन 16 लाख से अधिक आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं वाला एक केंद्र साबित हो पाएगा? यहां के पुराने हॉस्पिटल में लोगों को काफी अव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ रहा था. इसके बाद बीजेपी की सरकार ने एक नया अस्पताल का निर्माण कराया और लोकार्पण उस समय के कमलनाथ सरकार में श्रीमंत माधवराव सिंधिया के नाम से किया गया था. इसके बाद से लोगों में खुशी थी कि एक नए अस्पताल में अच्छी स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं मिलेंगी.

इलाज के लिए जमीर पर बैठने को मजबूर
लेकिन यहां आलम ये है कि गर्भवती महिलाएं इस कोरोनकाल मे सोनोग्राफी, प्रसूति और स्त्री रोग ओपीडी के बाहर इलाज के लिए घंटो जमीन पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करती हैं, जबकि इससे संक्रमण फैलने की संभावना बहुत ज्यादा है. जब इन महिलाओं से पूछा कि ऐसे क्यों बैठी हो, तो उनका कहना है कि मजबूरी है इलाज जो कराना है, जिधर बिठा दिया उधर बैठ गये.

गंदगी से परेशान मरीज
वहीं महिलाओं के परिजन का कहना है कि घंटों यहां डॉक्टर नहीं आते, कोरोना चल रहा है फिर भी महिलाओं को जमीन पर बिठा रखा है. अस्पताल की ओपीडी में चालू पंखा, खाली कुर्सियों को हवा दे रहा है, क्योंकि डॉक्टर नदारद है और बाहर खड़े लोग डॉक्टर के आने का इंतजार कर रहे हैं. इन तस्वीरों को देखकर मन में एक ही सवाल उठता है. क्या ऐसे हालात में मरीजों का इलाज संभव है, लेकिन विदिशा जिला अस्पताल में इन्हीं हालात में मरीज इलाज कराने के लिए मजबूर हैं. इसके अलावा गंदगी और अन्य सुविधाओं की कमी मरीजों की मुश्किलों को और बढ़ा देती है.


Corona की संभावित तीसरी लहर, जानिए क्या है अस्पताल की तैयारी?

अस्पताल के सिविल सर्जन के कही ये बात
इस संबंध में जब सिविल सर्जन डॉ. संजय खरे को बताया तो वह मरीजों को ही दोषी बताने लगे. साथ ही मीडिया से जागरूक फैलाने की अपील करते नजर आए. उन्होंने माना कि कोरोना काल में स्टाफ और डॉक्टर की दिक्कत तो है. हालांकि उन्होंने कहा कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा और व्यवस्था सुचारू रूप से चलने लगेंगी. डॉक्टर खरे ने अपनी अव्यवस्थाओं का लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने से बाज नहीं आते. डॉक्टरों की कमी को लेकर सिविल सर्जन ने कहा कि सुबह शाम राउंड होता है मरीज को देखा जाता है.आवश्यकता पड़ने पर ऑपरेशन भी किया जाता है.

विदिशा। कोरोना महामारी के खिलाफ सोशल डिस्टेंसिंग भी एक कारगर हथियार साबित हुआ है, जो संक्रमण से लोगों को बचाने का एक आसान तरीका है. वहीं दूसरी ओर जिला अस्पताल में गर्भवती स्त्रियों के कोरोना की चपेट में आने का बहुत खतरा है, क्योंकि यहां एक दो नहीं बल्कि दर्जनों महिलाओं को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखकर मजबूरन जमीन पर बैठना पड़ता है.

जिला अस्पताल में लापरवाही

नए अस्पताल में नहीं बदले नियम
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के समय में विदिशा में 144 करोड़ रुपए की लागत से नवीन जिला चिकित्सालय का लोकार्पण किया था. ऐसे में सवाल उठता है कि 350 बिस्तर वाला नवीन जिला चिकित्सालय जिले के करीबन 16 लाख से अधिक आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं वाला एक केंद्र साबित हो पाएगा? यहां के पुराने हॉस्पिटल में लोगों को काफी अव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ रहा था. इसके बाद बीजेपी की सरकार ने एक नया अस्पताल का निर्माण कराया और लोकार्पण उस समय के कमलनाथ सरकार में श्रीमंत माधवराव सिंधिया के नाम से किया गया था. इसके बाद से लोगों में खुशी थी कि एक नए अस्पताल में अच्छी स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं मिलेंगी.

इलाज के लिए जमीर पर बैठने को मजबूर
लेकिन यहां आलम ये है कि गर्भवती महिलाएं इस कोरोनकाल मे सोनोग्राफी, प्रसूति और स्त्री रोग ओपीडी के बाहर इलाज के लिए घंटो जमीन पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करती हैं, जबकि इससे संक्रमण फैलने की संभावना बहुत ज्यादा है. जब इन महिलाओं से पूछा कि ऐसे क्यों बैठी हो, तो उनका कहना है कि मजबूरी है इलाज जो कराना है, जिधर बिठा दिया उधर बैठ गये.

गंदगी से परेशान मरीज
वहीं महिलाओं के परिजन का कहना है कि घंटों यहां डॉक्टर नहीं आते, कोरोना चल रहा है फिर भी महिलाओं को जमीन पर बिठा रखा है. अस्पताल की ओपीडी में चालू पंखा, खाली कुर्सियों को हवा दे रहा है, क्योंकि डॉक्टर नदारद है और बाहर खड़े लोग डॉक्टर के आने का इंतजार कर रहे हैं. इन तस्वीरों को देखकर मन में एक ही सवाल उठता है. क्या ऐसे हालात में मरीजों का इलाज संभव है, लेकिन विदिशा जिला अस्पताल में इन्हीं हालात में मरीज इलाज कराने के लिए मजबूर हैं. इसके अलावा गंदगी और अन्य सुविधाओं की कमी मरीजों की मुश्किलों को और बढ़ा देती है.


Corona की संभावित तीसरी लहर, जानिए क्या है अस्पताल की तैयारी?

अस्पताल के सिविल सर्जन के कही ये बात
इस संबंध में जब सिविल सर्जन डॉ. संजय खरे को बताया तो वह मरीजों को ही दोषी बताने लगे. साथ ही मीडिया से जागरूक फैलाने की अपील करते नजर आए. उन्होंने माना कि कोरोना काल में स्टाफ और डॉक्टर की दिक्कत तो है. हालांकि उन्होंने कहा कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा और व्यवस्था सुचारू रूप से चलने लगेंगी. डॉक्टर खरे ने अपनी अव्यवस्थाओं का लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने से बाज नहीं आते. डॉक्टरों की कमी को लेकर सिविल सर्जन ने कहा कि सुबह शाम राउंड होता है मरीज को देखा जाता है.आवश्यकता पड़ने पर ऑपरेशन भी किया जाता है.

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