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घर पर प्रसव होने से 141 नवजातों की मौत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों में हुआ खुलासा

संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए विदिशा में करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन बावजूद इसके घर पर प्रसव करने के मामलों में कमी नहीं आई है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के मुताबिक विदिशा जिले में पिछले पांच महीनों में 141 बच्चों की घर में प्रसव होने के कारण मौत हो चुकी है.

Vidisha District Hospital
विदिशा जिला अस्पताल
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Published : Sep 12, 2020, 12:58 PM IST

विदिशा। जिले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सबसे हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. कोरोना काल मे पांच महीने में ग्रामीण प्रसव के लिए अस्पताल ही नहीं पहुंच पाए. जिससे महिलाओं का प्रसव घर में ही कराया गया. जहां महज पांच महीनों में 141 बच्चों की घर में प्रसव होने के कारण मौत हो चुकी है. जिनमें 82 बच्चों ने इलाज न मिल पाने की वजह से दम तोड़ दिया. इनमें से 59 बच्चे ऐसे थे, जिनकी अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में मौत हो गई.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट बताती है कि कोरानाकाल का सबसे अधिक असर गांव की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा है. जिसके कारण शिशु मृत्यु दर में इजाफा हुआ है. एक अप्रैल से 31 अगस्त तक जिले में 8 हजार 903 प्रसव हुए. इसमें संस्थागत 8 हजार 298 और 605 घर पर प्रसव हुए है. घर में प्रसव होने से 141 नवजात की मौत हुई है. वहीं कई बार यह भी देखने को मिला है कि कोरोना काल में डॉक्टर ही गांव नहीं पहुंच पाए. कहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इन चार महीनो में ताले डले रहे तो कई सामुदायिक केंद्रों पर अच्छा काम भी देखने मिला.

कलेक्टर पंकज जैन ने बैठक लेते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और मैदानी अमले की निष्क्रियता के कारण 100 फीसदी संस्थागत प्रसव के लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे है. कलेक्टर ने जिले के कुछ इलाकों को चिंन्हित किया है. उन क्षेत्रों में जागरूकता अभियान को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं विभाग 9 महीने तक गर्भवती महिला का रिकार्ड ऑनलाइन दर्ज कराकर उसकी देखभाल के कार्य किए जाएंगे.

विदिशा। जिले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सबसे हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. कोरोना काल मे पांच महीने में ग्रामीण प्रसव के लिए अस्पताल ही नहीं पहुंच पाए. जिससे महिलाओं का प्रसव घर में ही कराया गया. जहां महज पांच महीनों में 141 बच्चों की घर में प्रसव होने के कारण मौत हो चुकी है. जिनमें 82 बच्चों ने इलाज न मिल पाने की वजह से दम तोड़ दिया. इनमें से 59 बच्चे ऐसे थे, जिनकी अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में मौत हो गई.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट बताती है कि कोरानाकाल का सबसे अधिक असर गांव की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा है. जिसके कारण शिशु मृत्यु दर में इजाफा हुआ है. एक अप्रैल से 31 अगस्त तक जिले में 8 हजार 903 प्रसव हुए. इसमें संस्थागत 8 हजार 298 और 605 घर पर प्रसव हुए है. घर में प्रसव होने से 141 नवजात की मौत हुई है. वहीं कई बार यह भी देखने को मिला है कि कोरोना काल में डॉक्टर ही गांव नहीं पहुंच पाए. कहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इन चार महीनो में ताले डले रहे तो कई सामुदायिक केंद्रों पर अच्छा काम भी देखने मिला.

कलेक्टर पंकज जैन ने बैठक लेते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और मैदानी अमले की निष्क्रियता के कारण 100 फीसदी संस्थागत प्रसव के लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे है. कलेक्टर ने जिले के कुछ इलाकों को चिंन्हित किया है. उन क्षेत्रों में जागरूकता अभियान को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं विभाग 9 महीने तक गर्भवती महिला का रिकार्ड ऑनलाइन दर्ज कराकर उसकी देखभाल के कार्य किए जाएंगे.

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