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एमपी की एक ऐसी विधानसभा सीट, जहां से आज तक नहीं बनी महिला विधायक... जानें महिला उम्मीदवारों पर पार्टियों को कितना भरोसा

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 31, 2023, 8:21 AM IST

विदिशा जिले की सिरोंज सीट एमपी की एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां से आज तक कोई महिला विधायक नहीं बनी. आइए जानते हैं ऐसा क्यों हुआ और महिला उम्मीदवारों पर पार्टियों को कितना भरोसा है-

sironj vidhan sabha seat
सिंरोज में आज तक नहीं बनी कोई महिला विधायक

भोपाल। एमपी की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है, जहां का वोटर किसी महिला उम्मीदवार को कभी जिताकर विधानसभा नहीं भेजता. दरअसल विदिशा जिले की सिंरोज विधानसभा सीट एमपी की ऐसी पहली महिला सीट है, जहां की आधी आबादी भी यहां की महिला उम्मीदवार को जिताने में नाकाम रहीं. जबकि यह सीट विदिशा संसदीय क्षेत्र में आती है, जहां से रिकॉर्ड वक्त तक महिला सांसद सुषमा स्वराज रहीं.

विदिशा जिले की सिरोंज विधानसभा सीट: ये विधानसभा विदिशा जिले में आती है, लेकिन यहां की जनता का मिजाज कुछ अलग हैं. सिंरोज सीट एमपी की ऐसी सीट है, जहां पर आजादी से अब तक महिला को विधानसभा में नहीं उतारा है. यहां पर पुरुषों का ही बोलबाला रहा है. व्यापमं घोटाले में आरोपी रहे लक्ष्मीकांत शर्मा यहीं से जीतते रहे हैं, ये सीट जब सुर्खियों में आई तब व्यापमं घोटाले के तार लक्ष्मीकांत शर्मा तक जा पहुंचे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

सिरोंज सीट का सियासी इतिहास: सिरोंज विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही बीजेपी का गढ़ रहा है, आजादी के बाद अब तक 14 बार चुनाव में कांग्रेस सिर्फ तीन बार जीत हासिल कर पाई है. 1972 में इनायतुल्लाह खान विधायक बने थे, उसके बाद 1985 और 2013 में गोवर्धन उपाध्याय विधायक चुने गए. हिंदू महासभा और जनता पार्टी के बाद यहां से बीजेपी के प्रत्याशी विधायक बने, मध्य प्रदेश के गठन के बाद 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में क्षेत्र से अखिल भारतीय हिंदू महासभा के मदनलाल विधायक बने इस क्षेत्र में सबसे अधिक बार चार बार स्व. लक्ष्मीकांत शर्मा विधायक रहे. इस बार चुनाव में भाजपा ने फिर उमाकांत शर्मा यानी उनके भाई को प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने गगनेंद्र सिंह रघुवंशी को उम्मीदवार घोषित किया है.

महिलाओं को नहीं मिली तवज्जो: वरिष्ठ पत्रकार सतीश एलिया का कहना है कि "अभी तक इस क्षेत्र में महिला विधायक का प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, कांग्रेस, सपा जैसी पार्टियों ने महिला उम्मीदवार को विधानसभा चुनाव में उतारा भी, लेकिन सत्ता दल भाजपा ने यह कोशिश अभी तक नहीं की है. विधानसभा चुनाव में से संवेदनशीलता बताकर दबंग शक्तिशाली प्रतिनिधि की आवश्यकता बताकर महिलाओं को घरों तक की सीमा में बांध दिया गया.

नहीं मिला महिलाओं को सदन में जाने का मौका: सिरोंज में महिला वोटर भी पुरुष के करीब ही हैं, एक लाख महिला मतदाता पर दावेदारी अभी भी दूर है. विधानसभा में कुल 2 लाख 14 हजार 295 मतदाता है, इनमें से 1 लाख 43 हजार 735 पुरुष जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 36 हजार 385 है. यानी पुरुषों की तुलना में महिला उम्मीदवार की संख्या सिर्फ 13 हजार ही कम है, इसके बावजूद महिलाओं की दावेदारी भी नहीं है.

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सिरोंज सीट को लेकर आमने-सामने कांग्रेस बीजेपी: कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि "हमने तो सिरोंज में महिला प्रत्याशी को मौका दिया था, लेकिन बीजेपी ने आज तक उस सीट से महिला प्रत्याशी नहीं उतारी. भाजपा की कथनी और करनी का इससे अच्छा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता." वहीं केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने इस सवाल का जवाब तो नहीं दिया बल्कि कहा कि "हमारी पार्टी ने महिलाओं के हित में ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, मोदी जी ने हमेशा महिलाओं का सम्मान किया है और उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी दिलाया है."

महिला उम्मीदवारों पर पार्टियों को बस इतना भरोसा: भाजपा ने 230 सीटों में से सिर्फ 28 महिलाओं को ही टिकट दिया है, करीब 12 फीसदी. जबकि पार्टी ने 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने कानून बनाया है, पार्टी के 33 फीसदी के आंकड़े से 48 उम्मीदवार पीछे रही है. इसके अलावा 2018 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सिर्फ 24 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. वहीं कांग्रेस ने इस बार थोड़ा आगे बढ़कर 30 महिला दावेदारों को चुनावी मैदान में उतारा है, यानी करीब 15 प्रतिशत.

भोपाल। एमपी की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है, जहां का वोटर किसी महिला उम्मीदवार को कभी जिताकर विधानसभा नहीं भेजता. दरअसल विदिशा जिले की सिंरोज विधानसभा सीट एमपी की ऐसी पहली महिला सीट है, जहां की आधी आबादी भी यहां की महिला उम्मीदवार को जिताने में नाकाम रहीं. जबकि यह सीट विदिशा संसदीय क्षेत्र में आती है, जहां से रिकॉर्ड वक्त तक महिला सांसद सुषमा स्वराज रहीं.

विदिशा जिले की सिरोंज विधानसभा सीट: ये विधानसभा विदिशा जिले में आती है, लेकिन यहां की जनता का मिजाज कुछ अलग हैं. सिंरोज सीट एमपी की ऐसी सीट है, जहां पर आजादी से अब तक महिला को विधानसभा में नहीं उतारा है. यहां पर पुरुषों का ही बोलबाला रहा है. व्यापमं घोटाले में आरोपी रहे लक्ष्मीकांत शर्मा यहीं से जीतते रहे हैं, ये सीट जब सुर्खियों में आई तब व्यापमं घोटाले के तार लक्ष्मीकांत शर्मा तक जा पहुंचे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

सिरोंज सीट का सियासी इतिहास: सिरोंज विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही बीजेपी का गढ़ रहा है, आजादी के बाद अब तक 14 बार चुनाव में कांग्रेस सिर्फ तीन बार जीत हासिल कर पाई है. 1972 में इनायतुल्लाह खान विधायक बने थे, उसके बाद 1985 और 2013 में गोवर्धन उपाध्याय विधायक चुने गए. हिंदू महासभा और जनता पार्टी के बाद यहां से बीजेपी के प्रत्याशी विधायक बने, मध्य प्रदेश के गठन के बाद 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में क्षेत्र से अखिल भारतीय हिंदू महासभा के मदनलाल विधायक बने इस क्षेत्र में सबसे अधिक बार चार बार स्व. लक्ष्मीकांत शर्मा विधायक रहे. इस बार चुनाव में भाजपा ने फिर उमाकांत शर्मा यानी उनके भाई को प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने गगनेंद्र सिंह रघुवंशी को उम्मीदवार घोषित किया है.

महिलाओं को नहीं मिली तवज्जो: वरिष्ठ पत्रकार सतीश एलिया का कहना है कि "अभी तक इस क्षेत्र में महिला विधायक का प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, कांग्रेस, सपा जैसी पार्टियों ने महिला उम्मीदवार को विधानसभा चुनाव में उतारा भी, लेकिन सत्ता दल भाजपा ने यह कोशिश अभी तक नहीं की है. विधानसभा चुनाव में से संवेदनशीलता बताकर दबंग शक्तिशाली प्रतिनिधि की आवश्यकता बताकर महिलाओं को घरों तक की सीमा में बांध दिया गया.

नहीं मिला महिलाओं को सदन में जाने का मौका: सिरोंज में महिला वोटर भी पुरुष के करीब ही हैं, एक लाख महिला मतदाता पर दावेदारी अभी भी दूर है. विधानसभा में कुल 2 लाख 14 हजार 295 मतदाता है, इनमें से 1 लाख 43 हजार 735 पुरुष जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 36 हजार 385 है. यानी पुरुषों की तुलना में महिला उम्मीदवार की संख्या सिर्फ 13 हजार ही कम है, इसके बावजूद महिलाओं की दावेदारी भी नहीं है.

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सिरोंज सीट को लेकर आमने-सामने कांग्रेस बीजेपी: कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि "हमने तो सिरोंज में महिला प्रत्याशी को मौका दिया था, लेकिन बीजेपी ने आज तक उस सीट से महिला प्रत्याशी नहीं उतारी. भाजपा की कथनी और करनी का इससे अच्छा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता." वहीं केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने इस सवाल का जवाब तो नहीं दिया बल्कि कहा कि "हमारी पार्टी ने महिलाओं के हित में ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, मोदी जी ने हमेशा महिलाओं का सम्मान किया है और उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी दिलाया है."

महिला उम्मीदवारों पर पार्टियों को बस इतना भरोसा: भाजपा ने 230 सीटों में से सिर्फ 28 महिलाओं को ही टिकट दिया है, करीब 12 फीसदी. जबकि पार्टी ने 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने कानून बनाया है, पार्टी के 33 फीसदी के आंकड़े से 48 उम्मीदवार पीछे रही है. इसके अलावा 2018 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सिर्फ 24 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. वहीं कांग्रेस ने इस बार थोड़ा आगे बढ़कर 30 महिला दावेदारों को चुनावी मैदान में उतारा है, यानी करीब 15 प्रतिशत.

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