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जब नहीं मिलेगा पोषण आहार, तो कैसे मध्यप्रदेश जीतेगा और कोरोना हारेगा ?

विदिशा में गरीब तकबे के बच्चों को मिड-डे-मील योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. अभिभावकों का कहना है कि लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में तो बच्चों के नाम का राशन मिला उसके बाद से अब सब बंद है. देखें ये रिपोर्ट...

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Published : Jul 13, 2020, 8:23 PM IST

Updated : Jul 13, 2020, 10:39 PM IST

विदिशा। कोविड संकट और लॉकडाउन के बीच मिड-डे मील को जारी रखने के मामले में कई राज्यों की ढिलाई और जरूरी तैयारियों का अभाव करीब तीन महीने पहले ही दिख चुका था, जब सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से नोटिस जारी कर पूछा कि स्कूल बंद कर दिए जाने के बाद वे अपने यहां मिड-डे मील योजना क्यों नहीं जारी रख पा रहे हैं और अगर जारी रखेंगे तो किस सूरत में.

कोरोना काल में मिड-डे मील योजना की हालत

आनन फानन में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 20 मार्च को सभी राज्यों को भेजे गए निर्देश में ये स्पष्ट किया था कि लॉकडाउन के बावजूद सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना चलती रहनी चाहिए. इसके तहत बच्चों को राशन या भत्ता मिलना चाहिए. लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजना अब दम तोड़ती नजर आ रही है.

विदिशा जिले में मिड-डे-मील वितरण की हालत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम विदिशा शहर के जात्रापुरा इलाके में पहुंची और स्थानीय लोगों से बात की. इस दौरान महेंद्र अहिरवार ने बताया कि अब उनके बच्चों को मिड-डे-मील नहीं मिल रहा है. लॉकडाउन की शुरूआत में कुछ दिनों जरूर उनके बच्चों को खाना दिया गया था.

पिंकी का भी यही कहना है कि बच्चों को मिड-डे-मील नहीं मिलने से बड़ी परेशानी हो रही है. न कोई आमदनी है और न कहीं काम मिल रहा है. ऐसे में बच्चों को एक टाइम तो स्कूल में पोषण आहार मिल जाता था, लेकिन अब तो वो भी नसीब नहीं हो पा रहा है.

इस बारे में जब जात्रापुरा स्कूल के प्राचार्य एआर भगत से पूछा तो उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते बच्चों को पका भोजन तो नहीं मिल रहा है, लेकिन सरकारी आदेश के मुताबिक उन्हें कच्चा अनाज दिया जा रहा है.

जबकि जिला शिक्षा अधिकारी एसपी त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों के परिजनों को महीने-महीने का राशन इकट्ठा दिया जा रहा है. वहीं नमक, मिर्ची तेल जैसे सामग्री के लिए भी राशि उनके बैंक अकाउंट में डाल दी जाती है.

प्रशासन की मिड-डे-मील की ये वितरण प्रणाली अब सवालों के घेरे में आ रही है. अगर एक या दो महीने का राशन एक साथ बच्चों को दिया जा रहा है तो क्या उन्हें पहले इतने दिनों तक इंतजार करना पड़ेगा. इसके बाद राशि बैंक अकांउट में दिए जाने के बाद क्या उस राशि का उपयोग अभिभावक बच्चों के पोषण में ही कर रहे हैं.

मिड-डे-मील की इस वितरण प्रणाली के बाद अगर बच्चों को पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता तो ये मध्यप्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लक्ष्य को बुरी तरह प्रभावित करेगा. साथ ही कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

विदिशा। कोविड संकट और लॉकडाउन के बीच मिड-डे मील को जारी रखने के मामले में कई राज्यों की ढिलाई और जरूरी तैयारियों का अभाव करीब तीन महीने पहले ही दिख चुका था, जब सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से नोटिस जारी कर पूछा कि स्कूल बंद कर दिए जाने के बाद वे अपने यहां मिड-डे मील योजना क्यों नहीं जारी रख पा रहे हैं और अगर जारी रखेंगे तो किस सूरत में.

कोरोना काल में मिड-डे मील योजना की हालत

आनन फानन में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 20 मार्च को सभी राज्यों को भेजे गए निर्देश में ये स्पष्ट किया था कि लॉकडाउन के बावजूद सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना चलती रहनी चाहिए. इसके तहत बच्चों को राशन या भत्ता मिलना चाहिए. लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजना अब दम तोड़ती नजर आ रही है.

विदिशा जिले में मिड-डे-मील वितरण की हालत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम विदिशा शहर के जात्रापुरा इलाके में पहुंची और स्थानीय लोगों से बात की. इस दौरान महेंद्र अहिरवार ने बताया कि अब उनके बच्चों को मिड-डे-मील नहीं मिल रहा है. लॉकडाउन की शुरूआत में कुछ दिनों जरूर उनके बच्चों को खाना दिया गया था.

पिंकी का भी यही कहना है कि बच्चों को मिड-डे-मील नहीं मिलने से बड़ी परेशानी हो रही है. न कोई आमदनी है और न कहीं काम मिल रहा है. ऐसे में बच्चों को एक टाइम तो स्कूल में पोषण आहार मिल जाता था, लेकिन अब तो वो भी नसीब नहीं हो पा रहा है.

इस बारे में जब जात्रापुरा स्कूल के प्राचार्य एआर भगत से पूछा तो उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते बच्चों को पका भोजन तो नहीं मिल रहा है, लेकिन सरकारी आदेश के मुताबिक उन्हें कच्चा अनाज दिया जा रहा है.

जबकि जिला शिक्षा अधिकारी एसपी त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों के परिजनों को महीने-महीने का राशन इकट्ठा दिया जा रहा है. वहीं नमक, मिर्ची तेल जैसे सामग्री के लिए भी राशि उनके बैंक अकाउंट में डाल दी जाती है.

प्रशासन की मिड-डे-मील की ये वितरण प्रणाली अब सवालों के घेरे में आ रही है. अगर एक या दो महीने का राशन एक साथ बच्चों को दिया जा रहा है तो क्या उन्हें पहले इतने दिनों तक इंतजार करना पड़ेगा. इसके बाद राशि बैंक अकांउट में दिए जाने के बाद क्या उस राशि का उपयोग अभिभावक बच्चों के पोषण में ही कर रहे हैं.

मिड-डे-मील की इस वितरण प्रणाली के बाद अगर बच्चों को पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता तो ये मध्यप्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लक्ष्य को बुरी तरह प्रभावित करेगा. साथ ही कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

Last Updated : Jul 13, 2020, 10:39 PM IST
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