विदिशा। 74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के लाल किले से देश को आत्मनिर्भर भारत बनाने पर जोर दे रहे हैं, तो वही आजादी के इतने सालों बाद भी विदिशा के गंजबासौदा से महज 5 किलोमीटर दूर आजाद नगर में रहने वाले आदिवासी पक्के मकान के लिए प्रशासन की रहा ताक रहे हैं कि कभी तो वो दिन आयेगा जब उनके पास खुद का आशियाना होगा.
लेकिन आजाद नगर के बस्ती के लोग आज भी कच्चे और तिरपाल के सहारे जिंदगी गुजार रहे हैं. 20 साल पहले कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ ने इन आदिवासियों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराकर शासकीय जमीन पर रहने के लिए पट्टे मुहैया कराए थे.
लेकिन उसके बाद से आज तक जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारियों ने इन परिवारों की न तो मदद की और न ही इनके आशियाने पक्के कराए. जिसके चलते आदिवासी परिवार, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में टूटी-फूटी झोपड़ी गुजर बसर कर रहा है.
20 साल पहले बसाई गई थी बस्ती
गंज बासौदा से महज 5 किलोमीटर दूर इस आदिवासी बस्ती को आज से लगभग 20 साल पहले आदिवासियों के लिए बसाई गई थी. इस बस्ती का नाम आजाद नगर रखा गया था, आजाद नगर के रहवासी आज भी तमाम परेशानियों की जंजीरों में जकड़े हुए हैं. इस बस्ती में रहने वाले 50 से 60 आदिवासी परिवार रोजगार के लिए दरबदर भटक रहे हैं. ऊपर से लॉकडाउन का यह कहर मजबूर और मजदूर परिवारों पर टूट पड़ा, जिसके बाद से ही इन आदिवासी परिवारों को रोजी-रोटी के लाले पड़े हुए हैं
बंधुआ मजदूरी से हुए थे मुक्त
आजाद नगर बस्ती में रहने वाले मजदूरों ने बताया कि वह आज से लगभग 20 वर्ष पहले क्षेत्र के ही स्टोन क्रेशर की मशीन पर बंधुआ मजदूर बने हुए थे, लेकिन इस बात की जानकारी जब कैलाश सत्यार्थी से जुड़े एक एनजीओ को लगी तो उन्होंने इन सभी परिवारों को शासन प्रशासन के साथ मिलकर बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया था और आदिवासी परिवारों के लिए गंजबसौदा से 5 किलोमीटर दूर स्थित जमीन पर रहने का इंतजाम करा दिया था. जिसके बाद से ही यह सभी परिवार इस बस्ती में रह रहे हैं.
मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर बस्ती
20 साल गुजर जाने के बाद भी इस बस्ती में अभी भी मूलभूत सुविधाओं की दरकार है. बस्ती के परिवारों के बच्चों के लिए शासन के द्वारा स्कूल का प्रबंध तो कर दिया है. लेकिन वह स्कूल भी एक किराए के कमरे में संचालित होता है और ऐसे ही एक कमरे के विद्यालय में ही कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक के बच्चे पढ़ रहे हैं.
इसी प्रकार से बस्ती में पेयजल के लिए केवल एक हैंडपंप की व्यवस्था की गई है. शासकीय सुविधाओं के नाम पर इन लोगों का राशन कार्ड तो बनवा दिया गया है लेकिन इन सभी मजदूरों को रोजगार कि आज भी दरकार है.