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जल संकट से जूझ रहे आकाशकोट के आदिवासियों ने तय किया श्रम से समाधान का सफर

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Published : Jan 10, 2021, 11:58 AM IST

आकाशकोट के आदिवासी लंबे समय से जल संकट से जूझ रहे है, लेकिन आज तक उनकी इस समस्या का समाधान ना हो सका. इसी के चलते आदिवासियों ने श्रम से समाधान का सफर तय किया. पढ़िए पूरी खबर..

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आदिवासियों ने तय किया श्रम से समाधान का सफर

उमरिया। करकेली विकासखंड की 8 पंचायत अंतर्गत 30 गांव का क्षेत्र आकाशकोट के नाम से जाना जाता है. डिंडौरी की सीमा से लगे सतपुड़ा मैकल की पहाड़ियों पर बसे इन गांव के आदिवासियों का जल संकट अक्सर गर्मियों के दिनों में देखा जाता है. मछडार और उमरार जैसी नदियां इन्हीं पहाड़ी अंचल से निकलकर जिलेवासियों के लिए लाइफ लाइन बनी हुई है, पर अफसोस जिला प्रशासन के ढुलमुल जलप्रबंधन नीति के कारण आकाशकोट में जल संकट का स्थाई समाधान आज भी नहीं निकल पाया है.

श्रमदान से समाधान

गर्मियों के दिनों में जल संकट न हों, इसके लिए गांववालों ने मिलकर कुओं की साफ-सफाई की. साथ ही नए कुएं का भी निर्माण कर दिया. जंगेला गांव निवासी संभू सिंह ने बताया कि शासन-प्रशासन जल संकट समाधान के लिए काम तो करता है, पर हम सब ग्रामवासियों ने जलस्त्रोत के स्थलों की सफाई का खुद जिम्मा उठाया. समूह बनाकर हमने पुराने तालाबों की सफाई की. कुछ नए तालाब भी बना दिए.

23 मार्च 2020 को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी. इस दौरान आमजन का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया था. युवाओं के रोजगार भी छिन गए थे. ऐसे भयावह परिस्थिति में आदिवासियों ने खाली समय का उपयोग जल संकट को दूर करने में किया. 6 माह के अंदर हर एक सदस्य ने श्रमदान किया, जिसका परिणाम ये हुआ कि वर्षों से जर्जर पड़े जलस्त्रोतों में अब पानी ही पानी है.

आदिवासियों ने तय किया श्रम से समाधान का सफर
गर्मी के मौसम में चरम पर जल संकट

उमरार डैम की मदद से आसपास के खेतों में पानी सप्लाई की जाती है, पर आकाशकोट क्षेत्र में आज भी जल संकट की समस्या बनी हुई है. बारिश का पानी नदी-नालों में मार्च तक तो जमा रहता है, लेकिन जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे पानी के लाले पड़ जाते है.

श्रमदान से समाधान की ओर

आकाशकोट के आदिवासी सिर्फ ठंडा पानी पीने की चाह रखते है. इसी चाह को पूरा करने के लिए कटारिया, जंगेला, धवईझर, माली, करौंदा, बाजाकुंड, अमड़ी समेत 12 गांव में कुआं निर्माण किया गया. कुओं का सुधार और तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए ग्रामीणों ने अभियान चलाया. लगातार इन 12 गांव के 665 लोगों ने 3554 दिन श्रमदान कर एक अनुपम मिशाल पेश कर दी. इसमें एक सामाजिक संस्था के अध्यक्ष वीरेंद्र गौतम और उनके साथियों ने एनजीओ फंडिंग से आर्थिक मदद की. इस कार्य में लगभग 7 लाख रुपये खर्च हुआ.

सामाजिक संस्था की प्रेरणा से मिली राह

सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता वीरेंद्र गौतम ने बताया कि आकाशकोट की जल समस्या को दूर करने के लिए हमने सभी ग्रामीणों को पहले मानसिक रूप से तैयार किया. उसके बाद चिन्हित किए गए जलस्त्रोत की सफाई का बीड़ा उठाया गया. आज आकाशकोट में पीने के पानी की समस्या का 35 प्रतिशत निराकरण हो चुका है.

कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि वॉटर शेड की स्वीकृति आकाशकोट में दी गई है. जल निगम द्वारा वॉटर लिफ्टिंग के जरिए नल जल योजना का क्रियान्वयन किया जाना है, तभी आकाशकोट की जल समस्या का स्थाई समाधान निकल सकेगा.

उमरिया। करकेली विकासखंड की 8 पंचायत अंतर्गत 30 गांव का क्षेत्र आकाशकोट के नाम से जाना जाता है. डिंडौरी की सीमा से लगे सतपुड़ा मैकल की पहाड़ियों पर बसे इन गांव के आदिवासियों का जल संकट अक्सर गर्मियों के दिनों में देखा जाता है. मछडार और उमरार जैसी नदियां इन्हीं पहाड़ी अंचल से निकलकर जिलेवासियों के लिए लाइफ लाइन बनी हुई है, पर अफसोस जिला प्रशासन के ढुलमुल जलप्रबंधन नीति के कारण आकाशकोट में जल संकट का स्थाई समाधान आज भी नहीं निकल पाया है.

श्रमदान से समाधान

गर्मियों के दिनों में जल संकट न हों, इसके लिए गांववालों ने मिलकर कुओं की साफ-सफाई की. साथ ही नए कुएं का भी निर्माण कर दिया. जंगेला गांव निवासी संभू सिंह ने बताया कि शासन-प्रशासन जल संकट समाधान के लिए काम तो करता है, पर हम सब ग्रामवासियों ने जलस्त्रोत के स्थलों की सफाई का खुद जिम्मा उठाया. समूह बनाकर हमने पुराने तालाबों की सफाई की. कुछ नए तालाब भी बना दिए.

23 मार्च 2020 को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी. इस दौरान आमजन का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया था. युवाओं के रोजगार भी छिन गए थे. ऐसे भयावह परिस्थिति में आदिवासियों ने खाली समय का उपयोग जल संकट को दूर करने में किया. 6 माह के अंदर हर एक सदस्य ने श्रमदान किया, जिसका परिणाम ये हुआ कि वर्षों से जर्जर पड़े जलस्त्रोतों में अब पानी ही पानी है.

आदिवासियों ने तय किया श्रम से समाधान का सफर
गर्मी के मौसम में चरम पर जल संकट

उमरार डैम की मदद से आसपास के खेतों में पानी सप्लाई की जाती है, पर आकाशकोट क्षेत्र में आज भी जल संकट की समस्या बनी हुई है. बारिश का पानी नदी-नालों में मार्च तक तो जमा रहता है, लेकिन जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे पानी के लाले पड़ जाते है.

श्रमदान से समाधान की ओर

आकाशकोट के आदिवासी सिर्फ ठंडा पानी पीने की चाह रखते है. इसी चाह को पूरा करने के लिए कटारिया, जंगेला, धवईझर, माली, करौंदा, बाजाकुंड, अमड़ी समेत 12 गांव में कुआं निर्माण किया गया. कुओं का सुधार और तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए ग्रामीणों ने अभियान चलाया. लगातार इन 12 गांव के 665 लोगों ने 3554 दिन श्रमदान कर एक अनुपम मिशाल पेश कर दी. इसमें एक सामाजिक संस्था के अध्यक्ष वीरेंद्र गौतम और उनके साथियों ने एनजीओ फंडिंग से आर्थिक मदद की. इस कार्य में लगभग 7 लाख रुपये खर्च हुआ.

सामाजिक संस्था की प्रेरणा से मिली राह

सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता वीरेंद्र गौतम ने बताया कि आकाशकोट की जल समस्या को दूर करने के लिए हमने सभी ग्रामीणों को पहले मानसिक रूप से तैयार किया. उसके बाद चिन्हित किए गए जलस्त्रोत की सफाई का बीड़ा उठाया गया. आज आकाशकोट में पीने के पानी की समस्या का 35 प्रतिशत निराकरण हो चुका है.

कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि वॉटर शेड की स्वीकृति आकाशकोट में दी गई है. जल निगम द्वारा वॉटर लिफ्टिंग के जरिए नल जल योजना का क्रियान्वयन किया जाना है, तभी आकाशकोट की जल समस्या का स्थाई समाधान निकल सकेगा.

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