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आज दिन-रात बराबर: जीवाजी वेधशाला में लाइव देख सकते हैं सूर्य की चाल, यहां होती है खगोलीय गणना - उज्जैन अपडेट न्यूज

23 सितंबर और 22 दिसंबर को दिन और रात समान (Equal Day And Night on 23 September and 22 December) होता है. उज्जैन की जीवाजी वेधशाला (Jiwaji Observatory of Ujjain) में सूर्य की चाल को लाइव देखा जा सकता है. इसमें खगोलीय गणना (Astronomical Calculations) की जाती है.

Jiwaji Observatory of Ujjain
उज्जैन की जीवाजी वेधशाला
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Published : Sep 23, 2021, 10:11 AM IST

Updated : Sep 23, 2021, 11:03 AM IST

उज्जैन। हर साल 23 सितंबर (23 September) को दिन और रात बराबर (Equal Day And Night) होते हैं. आज से सूर्य उत्तर से दक्षिणी गोलार्ध (Sun Enters Southern Hemisphere From North) में प्रवेश करता है. आज के बाद से दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगेंगी. आज के दिन नवग्रहों में प्रमुख ग्रह सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत रहता है. ऐसा 22 दिसंबर तक चलेगा. उज्जैन की जीवाजी वेधशाला (Jiwaji Observatory of Ujjain) में सूर्य की चाल को लाइव देखा जा सकता है. इस वेधशाला को वेधशाला जंतरमंतर भी कहते है. इसमें खगोलीय गणना (Astronomical Calculations) की जाती है.

जयपुर के महाराज सवाई राजा जयसिंह द्वितीय (Maharaj Sawai Raja Jai Singh II) ने देश के 5 शहरों में वेधशालाओं का निर्माण कराया था. उज्जैन की वेधशाला 1719 को बनाई गई. यह सभी वेधशालाओं में प्रमुख है. इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने 8 साल तक ग्रह-नक्षत्रों के वेध लेकर ज्योर्तिगणित के अनेक प्रमुख यंत्रों में संशोधन किया. ईंटों और पत्‍थर से निर्मित वेधशाला की इमारतें और यंत्र आज भी जीवित हैं.

उज्जैन की वेधशाला में लगे यंत्रों के बारे में जानिए...

भित्ति यंत्र: ग्रह-नक्षत्रों का नतांश बताता है यंत्र

- इस यंत्र ने ग्रह-नक्षत्रों का नतांश प्राप्त किया जाता हैं. यह यंत्र उत्तर-दक्षिण वृत्त (उत्तर दक्षिण बिन्दु) और दृष्टा के ख-बिन्दु को मिलाने वाली गोल रेखा के धरातल पर बना है. इस यंत्र से ग्रह-नक्षत्रों के नतांश (अपने सिरे के ऊपरी बिन्दु से दूरी) उस समय ज्ञात होते हैं.

सम्राट यंत्र: ग्रह-नक्षत्र विषुवत वृत्त की दूरी बताता है यंत्र

- आकाश में ग्रह-नक्षत्र विषुवत वृत्त से उत्तर तथा दक्षिण में कितनी दूर हैं, यह जानने के लिए भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है.

शंकु यंत्र: सूर्य की स्थिति दिखाता है यंत्र

- शंकु यंत्र के माध्यम से हम सूर्य की स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं. इसी शंकु की परछाई से सूर्य की स्थिति को देखा जाता है.

उज्जैन की जीवाजी वेधशाला में नक्षत्र वाटिका का शुभारंभ

नाड़ी वलय यंत्र: पृथ्वी के किस गोलार्द्ध यह दिखाता है यंत्र

- इस यंत्र से हम सूर्य, पृथ्वी के किस गोलार्द्ध में है, यह प्रत्यक्ष देख सकते हैं. इस यंत्र के उत्तर-दक्षिण दो भाग हैं. ग्रह, नक्षत्र अथवा तारों को वे उत्तरी आधे गोलार्द्ध में हैं या दक्षिणी आधे गोलार्द्ध में हैं, उन्हें भी इस यंत्र के माध्यम से देख सकते हैं.

दिगंश यंत्र: ग्रह-नक्षत्रों के उन्नतांश और दिगंश ज्ञात होते है

- इस यंत्र से तुरीय यंत्र लगाकर ग्रह-नक्षत्रों के उन्नतांश (क्षितिज से ऊंचाई) और दिगंश (पूर्व-पश्चिम दिशा के बिंदु से क्षितिज वृत्त में कोणात्मक दूरी) ज्ञात करते है.

1719 में हुई था स्थापना

वेधशाला जंतरमंतर यानी जीवाजी वेधशाला की स्थापना वर्ष 1719 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था. उनका उद्देश्य प्राचीन भारतीय खगोल गणित को अधिक सटीक बनाना था. वेधशाला का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है, यहां पर आठ इंच व्यास का टेलिस्कोप है जिससे सौरमंडल में होने वाले परिवर्तनों को देखा जाता है.

उज्जैन। हर साल 23 सितंबर (23 September) को दिन और रात बराबर (Equal Day And Night) होते हैं. आज से सूर्य उत्तर से दक्षिणी गोलार्ध (Sun Enters Southern Hemisphere From North) में प्रवेश करता है. आज के बाद से दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगेंगी. आज के दिन नवग्रहों में प्रमुख ग्रह सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत रहता है. ऐसा 22 दिसंबर तक चलेगा. उज्जैन की जीवाजी वेधशाला (Jiwaji Observatory of Ujjain) में सूर्य की चाल को लाइव देखा जा सकता है. इस वेधशाला को वेधशाला जंतरमंतर भी कहते है. इसमें खगोलीय गणना (Astronomical Calculations) की जाती है.

जयपुर के महाराज सवाई राजा जयसिंह द्वितीय (Maharaj Sawai Raja Jai Singh II) ने देश के 5 शहरों में वेधशालाओं का निर्माण कराया था. उज्जैन की वेधशाला 1719 को बनाई गई. यह सभी वेधशालाओं में प्रमुख है. इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने 8 साल तक ग्रह-नक्षत्रों के वेध लेकर ज्योर्तिगणित के अनेक प्रमुख यंत्रों में संशोधन किया. ईंटों और पत्‍थर से निर्मित वेधशाला की इमारतें और यंत्र आज भी जीवित हैं.

उज्जैन की वेधशाला में लगे यंत्रों के बारे में जानिए...

भित्ति यंत्र: ग्रह-नक्षत्रों का नतांश बताता है यंत्र

- इस यंत्र ने ग्रह-नक्षत्रों का नतांश प्राप्त किया जाता हैं. यह यंत्र उत्तर-दक्षिण वृत्त (उत्तर दक्षिण बिन्दु) और दृष्टा के ख-बिन्दु को मिलाने वाली गोल रेखा के धरातल पर बना है. इस यंत्र से ग्रह-नक्षत्रों के नतांश (अपने सिरे के ऊपरी बिन्दु से दूरी) उस समय ज्ञात होते हैं.

सम्राट यंत्र: ग्रह-नक्षत्र विषुवत वृत्त की दूरी बताता है यंत्र

- आकाश में ग्रह-नक्षत्र विषुवत वृत्त से उत्तर तथा दक्षिण में कितनी दूर हैं, यह जानने के लिए भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है.

शंकु यंत्र: सूर्य की स्थिति दिखाता है यंत्र

- शंकु यंत्र के माध्यम से हम सूर्य की स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं. इसी शंकु की परछाई से सूर्य की स्थिति को देखा जाता है.

उज्जैन की जीवाजी वेधशाला में नक्षत्र वाटिका का शुभारंभ

नाड़ी वलय यंत्र: पृथ्वी के किस गोलार्द्ध यह दिखाता है यंत्र

- इस यंत्र से हम सूर्य, पृथ्वी के किस गोलार्द्ध में है, यह प्रत्यक्ष देख सकते हैं. इस यंत्र के उत्तर-दक्षिण दो भाग हैं. ग्रह, नक्षत्र अथवा तारों को वे उत्तरी आधे गोलार्द्ध में हैं या दक्षिणी आधे गोलार्द्ध में हैं, उन्हें भी इस यंत्र के माध्यम से देख सकते हैं.

दिगंश यंत्र: ग्रह-नक्षत्रों के उन्नतांश और दिगंश ज्ञात होते है

- इस यंत्र से तुरीय यंत्र लगाकर ग्रह-नक्षत्रों के उन्नतांश (क्षितिज से ऊंचाई) और दिगंश (पूर्व-पश्चिम दिशा के बिंदु से क्षितिज वृत्त में कोणात्मक दूरी) ज्ञात करते है.

1719 में हुई था स्थापना

वेधशाला जंतरमंतर यानी जीवाजी वेधशाला की स्थापना वर्ष 1719 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था. उनका उद्देश्य प्राचीन भारतीय खगोल गणित को अधिक सटीक बनाना था. वेधशाला का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है, यहां पर आठ इंच व्यास का टेलिस्कोप है जिससे सौरमंडल में होने वाले परिवर्तनों को देखा जाता है.

Last Updated : Sep 23, 2021, 11:03 AM IST
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