उज्जैन। कोरोना महामारी में देशभर के हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अब भी मौत काफी कम है. उज्जैन में अप्रैल और मई महीने के आंकड़ों पर नजर डालें तो, शहर के तीन श्मशान और कब्रिस्तान में रोजाना सैकड़ों शव जलाए और दफनाए जाते हैं. लेकिन इसके बावजूद सरकारी आंकड़ों में कोरोना मृतकों की संख्या बहुत कम है. वहीं डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए भी लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
आंकड़ों में हेराफेरी के आरोप
दरअसल, अप्रैल और मई महीने में उज्जैन में कोरोना के आंकड़े तेजी से बढ़े, डेथ रेट भी जिले का एकदम से बढ़ा था. स्थिति यह थी कि अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह कम पड़ने लगी. मौतों की खबरें सामने आने लगी. सैकड़ों की संख्या में शव दफनाए और जलाए गए. वहीं जब नगर निगम से मौत के आंकड़े मांगे गए, तो अधिकारी-कर्मचारी आनाकानी करने लगे. जिसके बाद निगम अमले पर आंकड़ों को छुपाने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
जिले में कितनी मौत, कमिश्नर को जानकारी नहीं
उज्जैन नगर निगम पर मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बनाने के भी आरोप लगे हैं. जिसपर निगम कमिश्नर की प्रतिक्रिया सामने आई है. कमिश्नर का दावा है कि लगातार मृत्यु प्रमाण पत्र बनाए जा रहे हैं, बीच में पोर्टल के कारण कुछ दिक्कत थी जिसे अब सुलझा लिया गया है. हालांकि 2 महीने में कितने डेथ सर्टिफिकेट बने हैं, इसके आंकड़ों के बारे में खुद निगम कमिश्नर क्षितिज सिंघल को भी जानकारी नहीं है.
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ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि मौत का आंकड़ा छुपाने के लिए प्रशासन की तरफ से ऐसे बहाने दिए जा रहे हैं. निगम कमिश्नर ने कहा, 'मौत के बारे में हॉस्पिटल, कब्रिस्तान या श्मशान घाट से निगम को जानकारी दी जाती है. जिसमें मृत्यु का कारण नहीं लिखा होता है. यह बात जरूर है कि पहले के मुकाबले ज्यादा मृत्यु प्रमाण पत्र बने हैं'.