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वैकुण्ठ चतुर्दशी पर 'हर' ने 'हरि' को सौंपा सृष्टि का भार, चांदी की पालकी पर निकली महाकाल की सवारी - वैकुंठ चतुर्दशी

शनिवार को वैकुंठ चतुर्दशी के मौके पर गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन हुआ. वैकुंठ चतुर्दशी पर गोपाल मंदिर में हरि-हरि के मिलन की पुरानी परंपरा है. धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार चातुर्मास के शुरूआत के पहले श्री हरि विष्णु सृष्टि के संचालन का भार भगवान महाकाल के हाथों में सौंपकर राजा बलि का आत्थिय स्वीकारने पाताल लोक जाते हैं.

mahakal
उज्जैन
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Published : Nov 29, 2020, 8:54 AM IST

उज्जैन। कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी यानी वैकुंठ चतुर्दशी पर शनिवार को गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन हुआ. मान्यता के अनुसार 'हर' बाबा महाकाल ने 'हरि' गोपालजी को दोबारा सृष्टि का भार सौंपा. हालांकि कोरोना संक्रमण और भीड़ नियंत्रित रहे इसको लेकर इस बार कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं. इसके साथ ही सवारी में चुनिंदा पुजारी, कहार और ड्यूटी कर रहे अधिकारी ही शामिल हुए थे.

चांदी की पालकी पर निकली महाकाल की सवारी

चांदी की पालकी में निकली सवारी

दरअसल सदियों से चली आ रही परंपरा वैकुंठ चतुर्दशी पर ठीक रात 11 बजे ठाठबाट के साथ भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर के लिए रवाना हो गई. गोपालजी से मिलने के लिए चांदी की पालकी में सवार होकर जैसे ही गोपाल मंदिर की ओर बढ़े तो भक्तों के द्वारा महाकाल के जयकारे की गूंज सुनाई दी. कड़े सुरक्षा पहरे में भगवान की पालकी गोपाल मंदिर की ओर रवाना हुई. सुरक्षा घेरे में पालकी उठाकर चल रहे कहारों के अलावा केवल पुजारी ही शामिल थे.

क्या है मान्यता हरि से हर के मिलन की ?
धार्मिक ग्रंथ के अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं. उस समय पृथ्वी लोक की सत्ता भगवान शिव के पास होती है, और वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यहां सत्ता विष्णु जी को सौपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं. इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी हरिहर मिलन भी कहा जाता है.

'कार्तिक माह वैष्णों का महीना'
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी महेश गुरु ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया कि कार्तिक माह वैष्णों का महीना माना जाता है. और इसमें वैष्णव देवताओं की पूजा होती है. हमारी संस्कृति में जो पृथ्वी के पालन के लिए जो होता है वह भगवान शिव के पास होता है, और देवउठनी ग्यारस के बाद भगवान विष्णु को वह सौंप देते हैं. जिसके बाद पृथ्वी का लालन-पालन भगवान विष्णु करते हैं.

इसलिए होता है हरि-हर का मिलन!

दरअसल वैकुंठ चतुर्दशी पर गोपाल मंदिर में हरि हरि के मिलन की पुरानी परंपरा है. धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार चातुर्मास के शुरूआत के पहले श्री हरि विष्णु सृष्टि के संचालन का भार भगवान महाकाल के हाथों में सौंपकर राजा बलि का आत्थिय स्वीकारने पाताल लोक जाते हैं. इसके बाद चातुर्मास के चार में भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं. देव उठनी एकादशी पर देवशक्ति जागृत होने के बाद वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान गोपाल मंदिर जाकर सृष्टि का भार दोबार गोपालजी को सौंप देते हैं.

उज्जैन। कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी यानी वैकुंठ चतुर्दशी पर शनिवार को गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन हुआ. मान्यता के अनुसार 'हर' बाबा महाकाल ने 'हरि' गोपालजी को दोबारा सृष्टि का भार सौंपा. हालांकि कोरोना संक्रमण और भीड़ नियंत्रित रहे इसको लेकर इस बार कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं. इसके साथ ही सवारी में चुनिंदा पुजारी, कहार और ड्यूटी कर रहे अधिकारी ही शामिल हुए थे.

चांदी की पालकी पर निकली महाकाल की सवारी

चांदी की पालकी में निकली सवारी

दरअसल सदियों से चली आ रही परंपरा वैकुंठ चतुर्दशी पर ठीक रात 11 बजे ठाठबाट के साथ भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर के लिए रवाना हो गई. गोपालजी से मिलने के लिए चांदी की पालकी में सवार होकर जैसे ही गोपाल मंदिर की ओर बढ़े तो भक्तों के द्वारा महाकाल के जयकारे की गूंज सुनाई दी. कड़े सुरक्षा पहरे में भगवान की पालकी गोपाल मंदिर की ओर रवाना हुई. सुरक्षा घेरे में पालकी उठाकर चल रहे कहारों के अलावा केवल पुजारी ही शामिल थे.

क्या है मान्यता हरि से हर के मिलन की ?
धार्मिक ग्रंथ के अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं. उस समय पृथ्वी लोक की सत्ता भगवान शिव के पास होती है, और वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यहां सत्ता विष्णु जी को सौपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं. इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी हरिहर मिलन भी कहा जाता है.

'कार्तिक माह वैष्णों का महीना'
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी महेश गुरु ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया कि कार्तिक माह वैष्णों का महीना माना जाता है. और इसमें वैष्णव देवताओं की पूजा होती है. हमारी संस्कृति में जो पृथ्वी के पालन के लिए जो होता है वह भगवान शिव के पास होता है, और देवउठनी ग्यारस के बाद भगवान विष्णु को वह सौंप देते हैं. जिसके बाद पृथ्वी का लालन-पालन भगवान विष्णु करते हैं.

इसलिए होता है हरि-हर का मिलन!

दरअसल वैकुंठ चतुर्दशी पर गोपाल मंदिर में हरि हरि के मिलन की पुरानी परंपरा है. धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार चातुर्मास के शुरूआत के पहले श्री हरि विष्णु सृष्टि के संचालन का भार भगवान महाकाल के हाथों में सौंपकर राजा बलि का आत्थिय स्वीकारने पाताल लोक जाते हैं. इसके बाद चातुर्मास के चार में भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं. देव उठनी एकादशी पर देवशक्ति जागृत होने के बाद वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान गोपाल मंदिर जाकर सृष्टि का भार दोबार गोपालजी को सौंप देते हैं.

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