उज्जैन। 51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि मंदिर (Harsiddhi Temple) की तरह गढ़ कालिका माता मंदिर (Garh Kalika Mata Temple) भी धार्मिक मान्यता लिए प्रसिद्द है. इस मंदिर को भी सिद्ध पीठों में से एक ही माना जाता है. पीपलीनाका क्षेत्र में स्थित गढ़ कालिका मंदिर में नवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. नवरात्रि के समय इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते है. इस मंदिर में तांत्रिक क्रिया के लिए कई तांत्रिक भी आते है. इन नौ दिनों में माता कालिका अपने भक्तों को अलग-अलग रूप में दर्शन देती है.
606 ईस्वी में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार
पंडित श्याम तिवारी बताते है कि गढ़ नामक स्थान पर होने के कारण इस मंदिर का नाम गढ़ कालिका माता हो गया. मंदिर के प्रवेश-द्वार के आगे ही सिंह की प्रतिमा बनी हुई है. मां कालिका मंदिर का जीर्णोद्धार 606 ईस्वी के लगभग सम्राट हर्ष ने करवाया था. मान्यता है कि कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे. प्रारंभिक जीवन में कालीदास अनपढ़ और मूर्ख थे. कालीदास पेड़ की जिस डाली पर बैठे थे उसी को काट रहे थे.
इस घटना पर उनकी पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें ऐसी फटकार लगाई. जिसके बाद कालीदास ने मां गढ़ कालिका देवी की उपासना कर महाकवि कालिदास बन गए. पुजारी कहते है कि कालिदास जब से इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे, तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा. उज्जैन में प्रत्येक वर्ष होने वाले कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व मां कालिका की आराधना की जाती है.
तंत्र क्रिया का प्रमुख केंद्र है मां गढ़ कालिका मंदिर
मां गढ़ कालिका के मंदिर में मां कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है. तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता. माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है.
पंडित श्याम तिवारी ने बताया कि यह मंदिर सिद्द पीठ है. यहां तांत्रिक क्रिया का अपना महत्व है. मां कालिका को तंत्र क्रिया की देवी भी माना जाता है. चैत्र की नवरात्रि में भी यहां रोजाना तांत्रिकों का मेला लगा रहता है. खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और पश्चिम बंगाल के तांत्रिक मंदिर में तंत्र क्रिया करने आते है.
मां कालिका को पहनाई जाती है मुंडों की माला
मां कालिका को मुंडों की माला पहनाने की मान्यता है. कोई भी भक्त यहां आता है तो कालिका माता को मुंडों की माला पहनाता है. मंदिर के बाहर बैठे फूल प्रसादी बेचने वाले दूकानदार प्लास्टिक और कपडे से बने मुंड और निम्बू की माला बेचते है. जो की माता को खुश करने के लिए चढ़ाई जाती है. नवरात्रि पर्व समाप्त होने के बाद दशहरे के दिन मंदिर से प्रसाद के रूप नींबू बाटे जाते है. मान्यता है कि घर में ये नींबू रखने से अला बाला दूर होती है और सुख शांति बनी रहती है.
नौ दिन अलग-अलग रूप में दर्शन देती है मां
पंडित श्याम तिवारी बताते है कि नवरात्रि के पावन पर्व में रोजाना माता का अलग-अलग रूप में शृंगार किया जाता है. जिसमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री के रूप में मां अपने भक्तो को दर्शन देती है. मां गढ़ कालिका के दर्शन से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है.
शक्तिपीठ के बराबर माना जाता है मां कालिका मंदिर
उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं. पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़ कालिका माता का शक्तिपीठ. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे. इस स्थल को भी शक्तिपीठ के बराबर माना जाता है.