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महामाया माता को मदिरा का भोग, महामारी से मुक्ति के लिए कलेक्टर की श्रद्धा

उज्जैन में अष्टमी के मौके पर नगर पूजा का आयोजन किया गया. कलेक्टर आशीष सिंह ने चौबीस खंबा माता मंदिर पर शराब की धार चढ़ाकर इसकी शुरुआत की. महामारी से शहर को बचाने वाली इस पूजा में 27 किमी तक शराब की धार बहायी जाती है.

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Published : Apr 20, 2021, 1:08 PM IST

Updated : Apr 20, 2021, 7:24 PM IST

Collector worshiping chubis khamba mata
चौबीस खंबा माता की पूजा करते कलेक्टर

उज्जैन। नवरात्रि की अष्टमी के मौके पर उज्जैन में परंपरा के अनुसार नगर पूजा का आयोजन किया गया. कलेक्टर ने चौबीस खंबा माता मंदिर में पूजन अर्चन कर शराब का भोग लगाया और मंदिर में आरती की. मान्यता के अनुसार कलेक्टर मां महालया और महामाया माता को मदिरा का भोग लगाकर नगर पूजा की शुरुआत करते हैं. इसके बाद चल समारोह के रूप में शहर के भैरव मंदिरों में जाकर शराब का भोग लगाया जाता है. इस चल समारोह के दौरान लगातार शराब की धार बहायी जाती है. माना जाता है कि ये परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है. मान्यता ये पूजा बाबा महाकाल के शहर को महामारी, बीमारियों और अन्य बुरी चीजों से बचाती है.

अष्टमी पर उज्जैन में नगर पूजा का आयोजन

27 किमी तक बहायी जाती है शराब की धार

हर साल इस पूजा की शुरुआत कलेक्टर करते हैं. इस बार भी चौबीस खंबा माता मंदिर में माता का पूजन-अर्चन कर कलेक्टर आशीष सिंह ने नगर पूजा की शुरुआत की. इस दौरान पूजा के बाद कलेक्टर भी कुछ दूर तक शराब की हंडी लेकर चल समारोह में पैदल चले. मान्यता है कि इस पूजा से शहर के आसपास शराब की धार से एक सीमा बनाई जाती है, यानी एक तरह से शहर को बीमारियों और महामारी से बचाने के लिए सील कर दिया जाता है. इस बार भी कलेक्टर ने चौबीस खंबा माता की पूजन अर्चन कर शहर की रक्षा करने की प्रार्थना की. इस पूजा में शहर में कुल 27 किलोमीटर लंबी शराब की धार लगाकर 40 मंदिरों में जाकर पूजा की जाती है.

Twenty four Khamba Mata Temple
महामाया माता को मदिरा का भोग

नर्तकी का श्राप! जिसके बाद से गढ़पहरा किले में पसरा है सन्नाटा

विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है परंपरा

उज्जैन में कई जगह प्राचीन देवी के मन्दिर है, जहां नवरात्रि में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है. नवरात्रि में यहां काफी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं. इन्हीं में से एक है चौबीस खंबा माता मन्दिर. कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर आने-जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया गया था. इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है. सम्राट विक्रमादित्य इन देवियों की आराधना किया करते थे. उन्हीं के समय से अष्टमी पर्व पर यहां शासकीय पूजन किए जाने की परंपरा चली आ रही है.

उज्जैन। नवरात्रि की अष्टमी के मौके पर उज्जैन में परंपरा के अनुसार नगर पूजा का आयोजन किया गया. कलेक्टर ने चौबीस खंबा माता मंदिर में पूजन अर्चन कर शराब का भोग लगाया और मंदिर में आरती की. मान्यता के अनुसार कलेक्टर मां महालया और महामाया माता को मदिरा का भोग लगाकर नगर पूजा की शुरुआत करते हैं. इसके बाद चल समारोह के रूप में शहर के भैरव मंदिरों में जाकर शराब का भोग लगाया जाता है. इस चल समारोह के दौरान लगातार शराब की धार बहायी जाती है. माना जाता है कि ये परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है. मान्यता ये पूजा बाबा महाकाल के शहर को महामारी, बीमारियों और अन्य बुरी चीजों से बचाती है.

अष्टमी पर उज्जैन में नगर पूजा का आयोजन

27 किमी तक बहायी जाती है शराब की धार

हर साल इस पूजा की शुरुआत कलेक्टर करते हैं. इस बार भी चौबीस खंबा माता मंदिर में माता का पूजन-अर्चन कर कलेक्टर आशीष सिंह ने नगर पूजा की शुरुआत की. इस दौरान पूजा के बाद कलेक्टर भी कुछ दूर तक शराब की हंडी लेकर चल समारोह में पैदल चले. मान्यता है कि इस पूजा से शहर के आसपास शराब की धार से एक सीमा बनाई जाती है, यानी एक तरह से शहर को बीमारियों और महामारी से बचाने के लिए सील कर दिया जाता है. इस बार भी कलेक्टर ने चौबीस खंबा माता की पूजन अर्चन कर शहर की रक्षा करने की प्रार्थना की. इस पूजा में शहर में कुल 27 किलोमीटर लंबी शराब की धार लगाकर 40 मंदिरों में जाकर पूजा की जाती है.

Twenty four Khamba Mata Temple
महामाया माता को मदिरा का भोग

नर्तकी का श्राप! जिसके बाद से गढ़पहरा किले में पसरा है सन्नाटा

विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है परंपरा

उज्जैन में कई जगह प्राचीन देवी के मन्दिर है, जहां नवरात्रि में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है. नवरात्रि में यहां काफी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं. इन्हीं में से एक है चौबीस खंबा माता मन्दिर. कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर आने-जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया गया था. इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है. सम्राट विक्रमादित्य इन देवियों की आराधना किया करते थे. उन्हीं के समय से अष्टमी पर्व पर यहां शासकीय पूजन किए जाने की परंपरा चली आ रही है.

Last Updated : Apr 20, 2021, 7:24 PM IST
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