टीकमगढ़। क्या आपने कभी सुना और देखा है कि कोई घोड़ा रेलगाड़ी से आगे भी दौड़ सकता है. सुनने में ये बात थोड़ी बचकानी लग सकती है, लेकिन ये हकीकत है उस दौर की जब भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था. उस वक्त बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में एक ऐसी रेस हुयी थी जिसे देख लोगों ने दांतों तले उंगलिया दबा ली थीं. इस रेस में एक घोड़े ने रेलगाड़ी को पीछे छोड़ दिया था.
यह घोड़ा था टीकमगढ़ रियासत के महाराज प्रताप सिंह जूदेव को नाम था हुनमान बेग, 'यथा नाम तथा गुण' अपने नाम के अनुसार यह घोड़ा जब दौड़ता तो मानों हवा से बातें कर रहा हो, जैसे उसे पंख लग गये हों. इसी काबिलयत की वजह से हनुमान बेग के चर्चे1840 के उस दौर में पूरे बुंदेलखंड में हुआ करते थे.
हनुमान बेग पर जब अंग्रेज अफसरों की नजर पड़ी तो उन्होंने महराज प्रताप सिंह से घोड़े और रेलगाड़ी के बीच रेस करवाने की बात कही, जिसे महाराज ने स्वीकार कर लिया. ललितपुर रेलवे स्टेशन से जब रेलगाड़ी और घोड़े के बीच रेस शुरु हुई तो हुनमान बेग ने हवा से बातें करते हुये रेलगाड़ी को पीछे छोड़ दिया. अपनी आंखों से यह नजारा देख अंग्रेज अफसर भी चकित रह गये, लेकिन अफसोस यह दौड़ हुनमान बेग की आखिरी दौड़ साबित हुई. क्योंकि रेस के बाद जैसे ही महाराज ने उसकी लगाम खींची वैसे ही उसकी मौत हो गई. लेकिन, मरने से पहले उसने वो कारनामा कर दिया, जिसके चलते गणेशगंज के लोग उसे भगवान मानते हैं.
हुनमान बेग की याद में महाराज ने यहां उसका एक स्टेच्यू बनवाया जिसकी लोग आज भी पूजा करते हैं. भले ही यह घटना 18वीं सदी में हुई हो, लेकिन इसकी यादें पीढ़ी दर पीढ़ी यहां के लोगों के जहन में जिंदा हैं और इसे सुनाकर गणेशगंज के लोग खुद को गौरवान्वित महूसस करते हैं.