टीकमगढ़। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बुंदेलखंड की टीकमगढ़ विधानसभा सीट का अपना अलग मिजाज है. यहां बीजेपी का दबदबा है, लेकिन हार-जीत में अहम भूमिका सपा और बसपा निभाती है. कभी प्रदेश के सबसे पिछले जिलों में शामिल टीकमगढ़ जिले में रेलवे लाइन के बाद विकास की रफ्तार थोड़ी बढ़ी है, लेकिन युवाओं के लिए रोजगार के साधन सपने जैसे ही हैं. चुनाव नजदीक हैं, इसलिए नेता नगरी से लेकर आम लोगों के बीच चर्चा का विषय यही है कि इस बार बीजेपी से कौन उम्मीदवार होगा. यहां एक अनार कई बीमार की स्थिति है. जबकि कांग्रेस में फिर यादवेन्द्र सिंह बुंदेला का मैदान में उतरना तय माना जा रहा है. इनके अलावा दूसरा मजबूत दावेदार ही नहीं है.
विधानसभा का रोचक इतिहास: टीकमगढ़ विधानसभा वही सीट है, जहां बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती अपने ही घर में हार गई थीं. वाक्या 2008 के विधानसभा चुनाव का है. बीजेपी की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती ने बीजेपी से अलग होकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई और टीकमगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन वे कांग्रेस के यादवेन्द्र सिंह बुंदेला से करीब 9 हजार वोटों से हार गईं. जबकि यहां उमा भारती का अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है. आजादी के बाद से बुंदेलखंड की दूसरी विधानसभाओं की तरह टीकमगढ़ में भी कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन 80 के दशक के बाद यहां बीजेपी ने अपनी जड़ें जमाना शुरू की. 1990 में इस सीट से पहली बार बीजेपी जीतकर आई. 1990 से यहां 7 चुनाव हुए हैं, इसमें से 2 बार ही कांग्रेस जीत सकी है. 1957 से अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हुए, इसमें 8 बार कांग्रेस और 6 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है.
सपा-बसपा बिगाड़ती है गणित: टीकमगढ़ में अनुसूचित जाति की बड़ी संख्या है. इसके अलावा यादव, ठाकुर, जैन और ब्राह्मण वर्ग के वोटर्स हैं. विधानसभा में पुरूष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 14 हजार 513 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 4 हजार 509 है. इस सीट पर हार-जीत का गणित हमेशा बसपा-सपा बिगाड़ती रही है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जीतकार का अंतर 4 हजार 175 वोटों का रहा था, जबकि बसपा उम्मीदवा 9 हजार 793 वोटों के साथ तीसरी नंबर पर रही थी. यही स्थिति 2013 के चुनाव में बनी. इसमें सपा उम्मीदवार 13 हजार 552 वोटों के साथ दूसरे और बसपा 7 हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर रही.
टीकमगढ़ विधानसभा में यह कर रहे दावेदारी: टीकमगढ़ से बीजेपी विधायक राकेश गिरी बचपन में पेपर बेचा करते थे, लेकिन आज बीजेपी के करोड़पति विधायक हैं. पत्नी लक्ष्मी गिरी नगर पालिका अध्यक्ष रह चुकी हैं, बहन जनपद अध्यक्ष हैं. विधायक की कार्यशौली को लेकर उनकी ही पार्टी के नेता सवाल उठाते रहे हैं. निकाय चुनाव के दौरान हुए विवाद में उन्हें जिले के बीजेपी पदाधिकारियों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला. फिलहाल एक बार फिर टिकट के लिए दावेदारी की तैयारी में जुटे हैं. हालांकि दावेदारों में स्थानीय बीजेपी नेता राजेन्द्र तिवारी भी हैं. क्षेत्र में दो बार बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री की कथा करा चुके हैं. उन्होंने पिछले चुनाव में भी टिकट मांगा था. बीजेपी जिला अध्यक्ष अमित नुना भी क्षेत्र से विधायक के टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं. उन्होंने आरएसएस में लंबे समय तक काम किया है. वहीं पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव भी इस बार टिकट के लिए मशक्कत में जुटे हैं. उन्हें सीएम शिवराज सिंह का करीबी माना जाता है. हालांकि विधायक रहते वे काफी विवादों में रहे हैं. उधर कांग्रेस एक बार फिर यहां से यादवेन्द्र सिंह बुंदेला को चुनाव मैदान में उतार सकती है. 1985 में उन्होंने पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा था. इसके बाद कांग्रेस में प्रतिमा जैन को छोड़ कोई दूसरा दावेदार मजबूती के साथ आज तक खड़ा नहीं हो पाया.
पिछले चुनावों का लेखा-जोखा:
2018 के विधानसभा चुनाव: साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राकेश गिरी को तो कांग्रेस ने यादवेंद्र सिंह बुंदेला को टिकट दिया था. जहां चुनावी परिणाम में बीजेपी के राकेश गिरी ने 66958 वोटों से जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस दूसरे और बसपा से डॉ विनोद राय तीसरे नंबर पर रहे थे.
2013 विधानसभा चुनाव: साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने केके श्रीवास्तव को चुनावी मैदान में उतारा था. जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर यादवेंद्र सिंह बुंदेला पर भरोसा जताया था. वहीं बसपा से ब्रजकिशोर तो सपा से चरण सिंह यादव टक्कर देने खड़े थे. जहां परिणाम में बीजेपी के केक श्रीवास्तव ने 57968 वोटों से जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस दूसरे, सपा तीसरे और बसपा चौथे नंबर पर रही थी.
2008 विधानसभा चुनाव: साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बड़ा दिलचस्प नजारा देखने मिला था. इस चुनाव में बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती को कांग्रेस के हाथों शिकस्त मिली थी. कांग्रेस ने यादवेन्द्र सिंह को टिकट दिया था. जहां कांग्रेस के यादवेंद्र ने 36890 वोटों से जीत हासिल कर बीजेपी से उमा भारती को हराया था. वहीं बसपा से अनिल जैन तीसरे नंबर पर थे.
कोई उद्योग-धंधे नहीं, बेरोजगारी बड़ी समस्या: सालों की मांग के बाद 2013 में टीकगमढ़ जिले में रेलवे सुविधा शुरू हुई. पिछले 10 सालों में सड़कें अच्छी हुईं, लेकिन उद्योग आज भी दूर की बात हैं. रोजगार के बेहतर साधन नहीं हैं. क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित ही है. बारिश की कमी समस्या और भी बढ़ा देती है. हालांकि नई-नई घोषणाओं से लोगों में जोश भरने की कोशिश की जाती है. ताजा घोषणा मेडिकल कॉलेज की है.