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द्वापर युग में जमीन से प्रकट हुआ था कुंडेश्वर शिवलिंग, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

टीकमगढ़ के कुंडेश्वर में पंचमुखी शिवलिंग विश्व प्रसिद्ध है. माना जाता है कि हर साल शिवलिंग चावल के दाने जितना बढ़ जाता है. शिवलिंग की लंबाई करीब 5 फीट और मोटाई भी करीब 3 फीट है.

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Published : Jun 25, 2019, 3:20 PM IST

कुंडेश्वर शिवलिंग

टीकमगढ़। जिले का कुंडेश्वर शिवलिंग का बहुत महत्व है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर में विश्व का अनोखा पंचमुखी चमत्कारिक शिवलिंग द्वापर युग में जमीन से प्रकट हुआ था, जो चावल के दाने जितना हर साल बढ़ता है. ये शिवलिंग लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. इस शिवलिंग को कलयुग का कैलाश कहा जाता है, जो स्वयंभू है और यह पंचमुखी शिवलिंग है.

कुंडेश्वर शिवलिंग
ये है शिवलिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

जहां पर आज शिवमंदिर है, वहां पर हजारों साल पहले काफी बड़ा जंगल और पहाड़ी होती थी. जहां एक छोटी सी बस्ती थी, जिसमें एक दिन एक बुजुर्ग महिला ओखली में धान कूट रही थी, तभी अचानक इसमें से खून निकलने लगा. जिसे देख महिला घबरा गई और लोगों को बुला लाई. जिसके बाद जब लोगों ने आकर देखा, तो उसमें छोटा सा शिवलिंग था और फिर इस जगह पर पहले छोटा मन्दिर बना और अब इसका काफी विस्तार हो गया है.

माना जाता है कि शिवलिंग हर साल चावल के दाने जितना बढ़ता है और मोटा भी होता है. पहले यह शिवलिंग काफी छोटा था, लेकिन अब इसकी लंबाई करीब 5 फीट और मोटाई भी करीब 3 फीट है. मंदिर ललितपुर रोड पर है. ये उत्तर प्रदेश के ललितपुर से 57 किलोमीटर की दूरी पर है और टीकमगढ़ से 6 किलोमीटर की दूरी पर. इस मंदिर में आकर जो भी लोग अपनी मुरादे मांगते हैं, भोलेनाथ उसे जरूर पूरा करते हैं.

कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ शिवलिंग पर बेलपत्र और जलाभिषेक करने से प्रसन्न होते हैं. यहां पर मकर संक्रांति और सावन पर विशाल मेले का भी आयोजन होता है.

टीकमगढ़। जिले का कुंडेश्वर शिवलिंग का बहुत महत्व है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर में विश्व का अनोखा पंचमुखी चमत्कारिक शिवलिंग द्वापर युग में जमीन से प्रकट हुआ था, जो चावल के दाने जितना हर साल बढ़ता है. ये शिवलिंग लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. इस शिवलिंग को कलयुग का कैलाश कहा जाता है, जो स्वयंभू है और यह पंचमुखी शिवलिंग है.

कुंडेश्वर शिवलिंग
ये है शिवलिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

जहां पर आज शिवमंदिर है, वहां पर हजारों साल पहले काफी बड़ा जंगल और पहाड़ी होती थी. जहां एक छोटी सी बस्ती थी, जिसमें एक दिन एक बुजुर्ग महिला ओखली में धान कूट रही थी, तभी अचानक इसमें से खून निकलने लगा. जिसे देख महिला घबरा गई और लोगों को बुला लाई. जिसके बाद जब लोगों ने आकर देखा, तो उसमें छोटा सा शिवलिंग था और फिर इस जगह पर पहले छोटा मन्दिर बना और अब इसका काफी विस्तार हो गया है.

माना जाता है कि शिवलिंग हर साल चावल के दाने जितना बढ़ता है और मोटा भी होता है. पहले यह शिवलिंग काफी छोटा था, लेकिन अब इसकी लंबाई करीब 5 फीट और मोटाई भी करीब 3 फीट है. मंदिर ललितपुर रोड पर है. ये उत्तर प्रदेश के ललितपुर से 57 किलोमीटर की दूरी पर है और टीकमगढ़ से 6 किलोमीटर की दूरी पर. इस मंदिर में आकर जो भी लोग अपनी मुरादे मांगते हैं, भोलेनाथ उसे जरूर पूरा करते हैं.

कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ शिवलिंग पर बेलपत्र और जलाभिषेक करने से प्रसन्न होते हैं. यहां पर मकर संक्रांति और सावन पर विशाल मेले का भी आयोजन होता है.

Intro:एंकर इंट्रो / टीकमगढ़ जिले में विश्व का अनोखा पंचमुखी चमत्कारिक शिवलिंग द्वापर युग मे जमीन से प्रकट हुआ था जो प्रति साल बढ़ता है चावल के समान जो बना लाखो भक्तों की आस्था का केंद्र

स्पेसल रिपोर्ट


Body:वाईट /01 पंडित ब्रजमोहन शिवमंदिर कुंडेश्वर

वाईट /02 नंदकिशोर दीक्षित अध्य्क्ष शिवमंदिर कुंडेश्वर

वाईट /03 ओमप्रकाश तिवारी साहित्यकार कुंडेश्वर

वाइस ओबर / टीकमगढ़ जिले में विश्व का अनोखा शिवलिंग जमीन से द्वापर युग मे प्रकट हुआ था इस शिवलिंग की स्थापना नही करवाई गई थी यह खुद भक्तों के लिए हजारो फिट गहरी जमीन से प्रकट हुआ था इस शिवलिंग को कलयुग का कैलाश कहा जाता है जो स्वयम्भू है और यह पंचमुखी शिवलिंग है जिसके दर्शनों मात्र से ही लोगो को दूखो से निजात मिलता है !पुरानी किवदंती है !कि जहां पर आज शिवमंदिर है ! वहा पर हजारो साल पहिले काफी बड़ा जंगल और पहाड़ी होती थी जहाँ पर एक छोटी सी बस्ती थी जिसमें एक दिन एक बुजुर्ग महिला ओखली में धान कूट रही थी तभी अचानक ओखली से खून निकलने लगा और ओर धान कूटने बाला मुसर ओर ओखली में खून ही खून देख यह महिला घबरा गई और बस्ती के लोगो दिखाने ले आई ओखली पर कुंडा ढक कर ओर जब लोगो ने आकर देखा और कुंडा उठाया तो उसमें छोटा सा शिवलिंग था और फिर इस जगह पर पहिले छोटा मन्दिर बना और अब यहां पर काफी विस्तार हो गया और भव्य मंदिर बन गया यह है भोलेनाथ की प्रकट होने की कहानी यह शिवलिंग प्रति साल एक चावल की आकृति का बढ़ता है और मोटा भी होता है ! पहिले यह शिवलिंग काफी छोटा था लेकिन अब इसकी लंबाई 5 फिट के दरमियान है और मोटाई भी 3 फिट से कम नही है !


Conclusion:टीकमगढ़ जिले से 6 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर में बना यह शिवलिंग लाखो लोगो की आस्था का केंद्र बना हुआ है यह मंदिर ललितपुर रोड पर है जो ललितपुर उत्तरप्रदेश से टीकमगढ़ ललितपुर रोड पर बना है जो ललितपुर से 57 किलोमीटर की दूरी पर है और टीकमगढ़ से 6 किलोमीटर की दूरी पर इस मंदिर में आकर जो भी लोग अपनी मुरादे मांगते है भोले नाथ उनकी हर मुराद पूरी करते है ! इस शिवलिंग की दूसरी कहानी और हे कि बानपुर के राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा भगवान भोले नाथ की अखण्ड भक्त थी और यह भोले नाथ की तपस्या करने प्रतिदिन एक सुरंग से जहां पर मन्दिर है वहा पर आती थी और एक दिन भोले नाथ से उषा ने बिनती की प्रभु आप मुझे तो दर्शन देदेते हो मगर अब आप जमीन से प्रकट होकर सभी को दर्शन दे और लोगो की मुसीबतों का हरण करो तो फिर भोले नाथ द्वापर युग मे इस पहाड़ी पर एक ओखली से प्रकट हुए थे और जब उषा के पिता बाणासुर को विस्वास नही हुआ तो उन्होंने शिवलिंग की हजारो फिट गहरी में खुदाई करवाई थी लेकिन वह थक हार कर चुप बेठगये थे क्योंकि शिवलिंग की वह भी थाह नही ले पाए थे कि यह जमीन में कितना गहरा है इसके बाद ओर भी लोगो ने प्रयास की किया लेकिन कोई भी उनकी उतपत्ति के बारे में पता नही चला सके यह शिवलिग चमत्कारिक है जो हर मुसीवत में पड़े लोगो की मदद ओर सहायता करता है ! 1937 में टीकमगढ़ के महाराजा वीरसिंह जु देव द्वितीय ने भी शिवलिंग की खुदाई करवाई थी लेकिन उनको भी हार मानना पड़ी और खुदाई बन्द करवाना पड़ी पहिले कुंडा के चलते इनका नाम कुन्दादेव था मगर अब उनका नाम कुंडेश्वर हो गया है ! इनको बेलपत्र ओर जल अभिसेख करने से यह प्रसन्न होते है लोग रोते रोते आते है और हँसते हँसते जाते है !अब तो इस मंदिर का काफी विकास होगया सासन की तरफ है यहां पर मकर संक्रांति ओर सावन पर विशाल मेलों का भी आयोजन होता है !इस शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही लोगो को शक्ति मिलती है
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