सिंगरौली। नवरात्रि के सातवें दिन मां भगवती के कालरात्रि रुप की पूजा कि जाती है. कालरात्रि शब्द का अर्थ होता है काल की रात्रि अर्थात मृत्यु की रात. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मां कालरात्रि को काजल की तरह अंधकार बेहद पसंद है. चतुर्भुजी देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार हैं और अपनी ऊपरी दाईं भुजा से भक्तों को वरदान देती हैं, निचली दाईं भुजा से अभय आशीर्वाद देती हैं. बाईं भुजा में क्रमश: तलवार व खड्ग धारण किया है.
काथाओं के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, जिससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए थे. शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा था. शिव जी की पर जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए, जिससे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया था.
इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया था.
ऐसे करें मां कालरात्रि को प्रसन्न
मां काल रात्रि पूजा को पहले फूलों की माला पहनाकर करें. फिर देवी के मंत्र का जाप करते हुए मां का ध्यान करें. पंडित बताते हैं कि माता को प्रशन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ भी करना चाहिए. पुष्प और जायफल अर्पित कर मां के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए. पुराणों में बताया गया है कि देवी की पूजा से गृहस्थों और विवाह योग्य लोगों के लिए बहुत शुभफलदायी है.