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दो साल की कुपोषित बच्ची, वजन चार किलो 700 ग्राम, तीन और मामले आए सामने

दो साल की अति कुपोषित बच्ची मिलने के बाद प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया. बच्ची का वजन चार किलो 700 ग्राम था, जबकि दो साल की उम्र में वजन आठ से 10 किलो ग्राम होना चाहिए.

two year old malnourished girl
दो साल की कुपोषित बच्ची
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Published : Jun 4, 2021, 12:05 PM IST

शिवपुरी। कुपोषण दूर करने के लिए सरकारी दावे और वादे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. कुपोषित बच्चों को सामान्य बच्चों की श्रेणी में लाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह प्रयास सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं. जमीनी हकीकत कुछ और ही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एकीकृत बाल विकास परियोजना के आदिवासी बहुल्य मड़खेड़ा गांव में दो महीने से पोषण आहार नहीं बांटा गया हैं. इसका खुलासा भी तब हुआ, जब अति कुपोषित हालत में एक आदिवासी बच्ची को दस्त की शिकायत पर जिला अस्पताल के पीआईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया. उस दिन बच्ची का वजन चार किलो 700 ग्राम रह गया था, जबकि दो साल की उम्र में वजन आठ से 10 किलो ग्राम रहना चाहिए. हालांकि, अब बच्ची की हालत में सुधार है. वजन पांच किलो 200 ग्राम हो गया हैं.

दो साल की कुपोषित बच्ची

पन्ना में जिला स्तरीय एकीकृत कुपोषण के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन



नींद से जागा प्रशासन

पोहरी में दो साल की अति कुपोषित बच्ची मिलने का मामला सामने आने के बाद प्रशासन नींद से जागा. आनन-फानन में प्रशासनिक टीम को मौके पर भेजकर कागजी खानापूर्ति करने की कोशिश की गई. इस दौरान SDM जेपी गुप्ता और महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी नीरज गुर्जर भी मौके पर मौजूद रहें. यहां SDM ने आदिवासी बस्ती में रहने वाले सभी बच्चों का वजन कराया, तो चौंकाने वाली हकीकत सामने आई. आदिवासी बस्ती में तीन और कुपोषित बच्चे मिले, जिन्हें एसडीएम ने एनआरसी में भर्ती कराने के निर्देश महिला एवं बाल विकास विभाग को दिए.

महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी नीरज गुर्जर ने बताया कि जिन लोगों के बच्चे कुपोषित मिले हैं, वह सभी लॉकडाउन से पहले झांसी और उत्तर प्रदेश में मजदूरी कर रहे थे. करीब दो महीने पहले ही वह लोग मड़खेड़ा लौटे हैं.

शिवपुरी। कुपोषण दूर करने के लिए सरकारी दावे और वादे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. कुपोषित बच्चों को सामान्य बच्चों की श्रेणी में लाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह प्रयास सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं. जमीनी हकीकत कुछ और ही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एकीकृत बाल विकास परियोजना के आदिवासी बहुल्य मड़खेड़ा गांव में दो महीने से पोषण आहार नहीं बांटा गया हैं. इसका खुलासा भी तब हुआ, जब अति कुपोषित हालत में एक आदिवासी बच्ची को दस्त की शिकायत पर जिला अस्पताल के पीआईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया. उस दिन बच्ची का वजन चार किलो 700 ग्राम रह गया था, जबकि दो साल की उम्र में वजन आठ से 10 किलो ग्राम रहना चाहिए. हालांकि, अब बच्ची की हालत में सुधार है. वजन पांच किलो 200 ग्राम हो गया हैं.

दो साल की कुपोषित बच्ची

पन्ना में जिला स्तरीय एकीकृत कुपोषण के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन



नींद से जागा प्रशासन

पोहरी में दो साल की अति कुपोषित बच्ची मिलने का मामला सामने आने के बाद प्रशासन नींद से जागा. आनन-फानन में प्रशासनिक टीम को मौके पर भेजकर कागजी खानापूर्ति करने की कोशिश की गई. इस दौरान SDM जेपी गुप्ता और महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी नीरज गुर्जर भी मौके पर मौजूद रहें. यहां SDM ने आदिवासी बस्ती में रहने वाले सभी बच्चों का वजन कराया, तो चौंकाने वाली हकीकत सामने आई. आदिवासी बस्ती में तीन और कुपोषित बच्चे मिले, जिन्हें एसडीएम ने एनआरसी में भर्ती कराने के निर्देश महिला एवं बाल विकास विभाग को दिए.

महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी नीरज गुर्जर ने बताया कि जिन लोगों के बच्चे कुपोषित मिले हैं, वह सभी लॉकडाउन से पहले झांसी और उत्तर प्रदेश में मजदूरी कर रहे थे. करीब दो महीने पहले ही वह लोग मड़खेड़ा लौटे हैं.

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