शिवपुरी। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा सीट 2008 से पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन इसके बाद हुए परिसीमन में इसे सामान्य घोषित कर दिया गया. यह विधानसभा सीट किसी एक दल की नहीं रही, यहां जितनी बार बीजेपी को जीत मिली है, उतनी ही बार कांग्रेस ने भी अपना परचम लहराया है. लेकिन जो बात इस सीट पर होने वाले चुनाव को खास बनाती है वह सिंधिया परिवार, क्योंकि यहां चुने गए ज्यादातर विधायक इसी घराने के प्रयासों से बने हैं. हालांकि 2018 में बीजेपी ने अपवाद के तौर पर वीरेंद्र रघुवंशी को विधायक बना लिया था, लेकिन अब यह सीट भी प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि भाजपा से विधायक रहे वीरेंद्र रघुवंशी ने 2023 के चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा देकर पाला बदल लिया है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सामने ही अपने प्रत्याशियों के चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है कि वह अपने पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट दें या पुराना दल छोड़कर आए उम्मीदवारों को.
कोलारस विधानसभा सीट की खासियत: इस क्षेत्र को धार्मिक नगरी माना जाता है, इसे मिनी वृंदावन भी कहा जाता है, क्योंकि इसका इतिहास सतयुग से जुड़ा हुआ है. इस क्षेत्र में 2 हजार साल पुराना दुर्लभ कल्पवृक्ष स्थित है, पुराणों में इस बात का वर्णन है कि समुद्र मंथन के 14 रतन में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी. यह वृक्ष देवराज इंद्र को दिया गया था, जिन्होंने इसकी स्थापना हिमालय के उत्तर में सुरकानन वन में की थी और इसी प्रजाति का वृक्ष कोलारस में भी स्थित है, पुरातन काल में कोलारस को कबिलासपुर के नाम से भी जाना जाता था.
कोलारस विधानसभा सीट के मतदाता: कोलारस विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 27 की मतदाताओं की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या (2.8.2023) के अनुसार 2,44,623 है. इसमें पुरुष मतदाता 1,29,664 हैं, वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 1,14,950 है. इनके साथ-साथ इस क्षेत्र में 9 थर्ड जेंडर मतदाता भी शामिल है, जो इस आगामी विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.
कोलारस विधानसभा सीट जातिगत समीकरण: बात अगर कोलारस विधानसभा सीट के जातिगत समीकरणों की जाए तो इस सीट पर भी चुनाव हमेशा ही जातिगत आधार पर होते आए हैं, यह चुनाव को प्रभावित करने वाले सर्वाधिक वोटर यादव, जाटव, धाकड़, भील, आदिवासी, कुशवाहा और रावत समाज के हैं. इनके अलावा ब्राह्मण, वैश्य, रघुवंशी समाज के मतदाताओं की संख्या भी 5 से 15000 के बीच है, अन्य समाज के वोटर भी इस विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं.
कोलारस विधानसभा सीट का पॉलिटिकल सिनारियो: मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में कोलारस विधानसभा ऐसा क्षेत्र है, यहां हमेशा ही सिंधिया परिवार का वर्चस्व रहा है. चुनाव लड़ रहे जिस प्रत्याशी पर सिंधिया परिवार का हाथ रख गया, मानो विधायक वहीं बना है. बीते 14 विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सात बार भारतीय जनता पार्टी का विधायक चुना गया, जिसके पीछे स्वर्गीय राजमाता विजया राजे सिंधिया और उनकी बेटी यानी प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का समर्थन और प्रयास माने जाते हैं. वहीं सात बार यह सीट कांग्रेस के हाथ आई, पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का समर्थन प्रत्याशियों पर रहा. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे, तब भी उनके करीबी राम सिंह यादव 2013 में कांग्रेस से विधायक चुने गए थे. विधायक रहते उनकी मृत्यु हो गयी, तो 2018 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे महेंद्र सिंह यादव को सिंधिया ने टिकट दिलाकर विधायक बनाया था. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी से खड़े हुए वीरेंद्र रघुवंशी करीब 700 वोट से चुनाव जीते थे, डेढ़ साल बाद समीकरण बदले, सिंधिया बीजेपी के हो गए और उनके साथ ही समर्थक नेता भी जिनमें पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव भी शामिल थे.
सरकार में रहते स्थानीय बीजेपी विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने पद का पूरा सुख होगा, लेकिन अंतत जैसे कई बार चुनाव के समय देखा जाता है कि नेता दल बादल की राजनीति करते हैं और वही भाजपा के विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने भी किया. जब 2023 के चुनाव सिर पर हैं, तो अचानक उन्होंने 31 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा देकर बाद में कांग्रेस ज्वाइन कर ली. अब तक माना जा रहा था कि इस बार कोलारस से बीजेपी दोबारा वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट दे सकती है, लेकिन अब पार्टी और पद छोड़कर जा चुके रघुवंशी की वजह से इस विधानसभा सीट पर समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं. वैसे तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के पास पहले से ही उम्मीदवारों की सूची एक साथ है, लेकिन स्थानीय तौर पर अब मान जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव को कोलारस विधानसभा सीट पर टिकट की प्राथमिकता दे सकती है. यदि ऐसा ना हुआ तो उनके पीछे 2008 में बीजेपी से विधायक रहे देवेंद्र जैन भी टिकट की लाइन में है और अगर यह भी नहीं देखा तो इस बार भारतीय जनता पार्टी इन दोनों नेताओं के बाद किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतर सकती है. वहीं बात कांग्रेस की जाए तो राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी बैजनाथ यादव या पूर्व विधायक वीरेंद्र रघुवंशी को अपना प्रत्याशी बन सकती है.
कोलारस विधानसभा सीट का 2018 का रिजल्ट: 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी को पूरी दम लगानी पड़ी, इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रहे वीरेंद्र रघुवंशी को जनता ने 72450 वोट दिए थे. वहीं कांग्रेस से सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव को 71730 वोट हासिल हुए, इस चुनाव में बीजेपी की जीत का अंतर मात्र 720 वोट का था.
कोलारस विधानसभा सीट का 2018 उपचुनाव का रिजल्ट: शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा सीट पर पूर्व विधायक राम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने पूर्व विधायक के बेटे महेंद्र राम सिंह यादव को अपना प्रत्याशी बनाया, वहीं भाजपा ने पूर्व विधायक देवेंद्र कुमार जैन को चुनावी मैदान में उतारा था. इस चुनाव में सिंधिया की मेहनत और सिंपैथी वोट का फायदा मिला और कांग्रेस के प्रत्याशी महेंद्र राम सिंह यादव को इस चुनाव में 82523 वोट मिले और वे विधायक बने. वहीं भाजपा प्रत्याशी को 74437 मत हासिल हुए इस उपचुनाव में जीत का अंतर 8086 वोट रहा था.
कोलारस विधानसभा सीट का 2013 का रिजल्ट: विधानसभा के लिए जब 2013 में आम चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी ने अपने पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को दोबारा मौका दिया, लेकिन इस बार जनता पर उनका जादू नहीं चला. देवेंद्र जैन 48989 वोट मिले, जबकि उनके मुकाबले चुनाव लड़े पूर्व प्रत्याशी रामसिंह यादव को जनता ने इस बार अपना भरपूर समर्थन देते हुए 73942 वोट दिए, जिसके चलते कांग्रेस के प्रत्याशी 24153 मतों से जीत कर विधायक बने.
कोलारस विधानसभा सीट का 2008 का रिजल्ट: 2008 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तब भारतीय जनता पार्टी ने नए प्रत्याशी के रूप में देवेंद्र कुमार जैन को चुनावी मैदान में उतारा था. जनता ने उन्हें मौका दिया और 31199 वोट मिले, वहीं उनके सामने चुनाव मैदान में उतरने के लिए राम सिंह यादव को कांग्रेस ने टिकट दिया. मतदान में उन्हें 30961 वोट मिले, लेकिन यहां जीत का अंतर बहुत कम रहा. बीजेपी के देवेंद्र जैन महज 238 वोट की बढ़त से विधायक चुने गए.
कोलारस विधानसभा सीट के स्थानीय मुद्दे: मध्य प्रदेश की सभी विधानसभाओं की तरह ही इस क्षेत्र में भी अपने मुद्दे हैं, जो चुनाव के समय तो चुनावी वादे बनते हैं, लेकिन आज भी उन समस्याओं का हल नहीं हो सका है. इसमें सबसे पहली समस्या इस क्षेत्र में जल संकट की है, खाने को यह क्षेत्र गोदावरी नदी के पास है. बावजूद इसके कृषि भूमि पर सिंचाई के लिए पर्याप्त जल आपूर्ति नहीं हो पाती है, जिसका असर किसने की फसलों पर पड़ता है. वहीं दूसरा अहम मुद्दा बेरोजगारी का है, इस क्षेत्र में अभी पूरे प्रदेश की तरह कई युवा बेरोजगार हैं, जो चार पैसे कमाने के लिए क्षेत्र से पलायन कर अन्य बड़े शहरों में जाने को मजबूर हैं. वहीं पूरे प्रदेश में सरकार के विकास के दावे इस क्षेत्र में भी फेल नजर आते हैं, आज भी यह क्षेत्र पिछड़पन का शिकार है. पर्यटन और प्राकृतिक संपदाओं के बावजूद इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय प्रतिनिधियों ने ज्यादा प्रयास नहीं किया.