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MP के महाराज: पिछोर सीट से तीसरी बार मिला प्रीतम लोधी को टिकट, क्या इस बार ढहा पाएंगे कांग्रेस का किला, जानें सियासी समीकरण

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Published : Aug 18, 2023, 10:58 AM IST

Updated : Aug 18, 2023, 11:09 AM IST

MP Ke Maharaj: बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले ही अपने पत्ते खोलना शुरू कर दिये हैं, 230 विधानसभाओं में से 39 सीटों के प्रत्याशियों के नाम की लिस्ट जारी हो चुकी है. शिवपुरी की पिछोर विधानसभा से प्रीतम लोधी को बीजेपी प्रत्याशी बनाया गया है, लेकिन इस सीट से तीसरी बार खड़े हो रहे प्रीतम इस बार कुछ कमाल कर पायेंगे. आइये जानते हैं ETV Bharat की खास सीरीज MP के महाराज के जरिए 2023 के विधानसभा चुनाव में पिछोर की राजनीति में बीजेपी के लिए क्या चुनावी समीकरण बन रहे हैं.

MP Ke Maharaj
एमपी के महाराज
पिछोर सीट से तीसरी बार मिला प्रीतम लोधी को टिकट

भिंड/शिवपुरी। मध्य प्रदेश की राजनीति में शायद यह पहली बार होगा जब भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा के आम चुनाव की घोषणा से पहले ही अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की हो वो भी एक दो नहीं बल्कि 39 विधानसभा सीटों पर. पूरी लिस्ट आ चुकी है जिनमें शिवपुरी जिले की पिछोर सीट भी शामिल है, इस विधानसभा सीट से पार्टी ने टिकट उस उम्मीदवार को दिया है, जिसने कुछ समय पहले ही पार्टी की नाक में दम कर दी थी. जिन प्रीतम लोधी लोधी को बीजेपी ने पिछले दिनों निष्काषित किया था, वही प्रीतम अब तीसरी बार पिछोर सीट से भारतीय जनता पार्टी का चेहरा घोषित हुए हैं. लेकिन ये सीट बीते तीन दशक से बीजेपी की पहुंच से बाहर बनी हुई है.

पिछोर सीट पर बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है. इसकी बड़ी वजह है 6 बार से पिछोर सीट पर काबिज स्थानीय विधायक के पी सिंह 'कक्काजू' जिन्होंने विधायक रहते बीजेपी के किसी नेता को यहां पनपने नहीं दिया, वहीं इतने समय में लगातार जनता के दिलों में अपनी पैठ जमा चुके प्रीतम लोधी को बीजेपी तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारने जा रही है. नाम फाइनल हो चुका है और सूची में प्रीतम लोधी के नाम पर मोहर भी लग चुकी है.

इस वजह से प्रीतम लोधी को तीसरी बार मिला टिकट: पिछोर विधानसभा सीट बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि ये कांग्रेस का अभेद किला है. बीते 6 विधानसभा चुनाव से यहां कांग्रेस के क्षत्रप कहे जाने वाले पूर्व मंत्री केपी सिंह 'कक्काजू' का राज है, लेकिन प्रीतम लोधी इस क्षेत्र से एक मात्र दावेदार हैं. यहां से बीजेपी के पास कोई विकल्प उपलब्ध ही नहीं है, जो कांग्रेस के केपी सिंह के आगे खड़ा हो सके. वहीं प्रीतम लोधी ने बीते दो चुनाव में सेंध लगाते हुए जीत हार में वोटों का अंतर कम किया है, जहां 1998 में केपी सिंह 20 हजार और 2003 में 16 हजार वोट के अंतर से जीते थे. वहीं 2013 में प्रीतम लोधी की बदौलत यह अंतर महज 7113 मतों का था, 2018 के चुनाव में तो ये 2675 पर सिमट गया था. ऐसे में जिन मुद्दों पर बीजेपी कमजोर थी, उन पर काम कर स्थिति में सुधार का काम हुआ है और इस तीसरे प्रयास में बीजेपी को पिछोर पर फतह की उम्मीद है. तीसरा फैक्टर जातिगत समीकरण का भी है पिछोर विधानसभा सीट पर जीत हार तय करने वाले लोधी समाज के वोटर हैं, ऐसे में बीजेपी द्वारा लोधी समाज से कैंडिडेट को टिकट देना फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

प्रीतम लोधी पर भरोसे की वजह: पिछोर क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी प्रीतम लोधी ऐसा नाम है, जिसके बारे में प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा होगा. जिसने यह नाम ना सुना हो एक तो वे पूर्व सीएम उमा भारती के मुंह बोले भाई हैं, उमा भारती के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही प्रीतम लोधी की राजनीति तेजी से आगे बढ़ी थी. वर्तमान में बीजेपी के पास प्रीतम लोधी के सिवा कोई विकल्प नहीं, वहीं भरोसे की दूसरी बड़ी वजह लोधी वोटर. क्योंकि निर्णायक भूमिका में रहने वाले लोधी समाज के पीछोर विधानसभा क्षेत्र में करीब 50 हजार वोटर हैं, जो सिर्फ अपने समाज के कैंडिडेट के लिए ही मतदान करता है. इनके साथ ही 20 हजार से ज्यादा यादव वोटर भी हैं.

वहीं अन्य समाज में भी प्रीतम के काफी समर्थक है, स्थानीय तौर पर प्रीतम लोधी की सामाजिक छवि और जनता से जुड़ाव भी काफी ज्यादा है. वे समय-समय पर जन चौपाल लगाते हैं, जिसमें जनता की परेशानियों न सिर्फ सुनते हैं, उन्हें तुरंत हल कराने का भी प्रयास करते हैं. कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें कांग्रेस शासनकाल में नौकरियां नहीं मिली, लेकिन लोग कहते हैं कि ऐसे कई परिवारों के लिए भी प्रीतम लोधी ने नौकरी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है. ये ऐसे कई कारण रहे हैं जिसकी वजह से प्रीतम लोधी की जनता के बीच लोकप्रियता बढ़ती गई है.

पिछले विधानसभा चुनाव में पिछोर की स्थिति: मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक -26 पिछोर सीट पर 1993 से ही कांग्रेस के पूर्व मंत्री केपी सिंह 'कक्काजू' काबिज हैं. बीजेपी ने प्रयास तो बहुत किया लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली, हालांकि प्रीतम लोधी मार्जिन कम करने में कामयाब रहे 2018 में जब चुनाव हुए तब कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह 'कक्काजू' को 91463 वोट हासिल हुए थे. वहीं बीजेपी के प्रत्याशी प्रीतम लोधी ने भी कड़ी टक्कर देते हुए 88788 मत प्राप्त किए थे, फल स्वरूप यहां 'कक्काजू' और प्रीतम लोधी के चुनावी मुकाबले में जीत का अंतर महज 2675 वोटों का था.

इन खबरों पर भी एक नजर:

विवादों से घिरे प्रीतम की चुनाव की चिंता ने करायी घर वापसी: वैसे प्रीतम लोधी हमेशा विवादों से घिरे रहते हैं. बीते साल अगस्त के महीने में ही प्रीतम लोधी ने ब्राह्मण समाज पर अभद्र टिप्पणी की थी, जिसका विरोध पूरे प्रदेश में हुआ. उनके इस व्यवहार पर बीजेपी ने प्रीतम लोधी को पार्टी से 6 साल के लिए निष्काषित कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने बीजेपी की नाक में दम कर दिया. लेकिन जब चुनाव नजदीक आए तो नाराज लोधी वोटर की चिंता में शिवराज सिंधिया ने मिलकर इसी साल मार्च में उनकी वापसी बीजेपी में करा ली.

पार्टी में असंतोष नहीं, एक मात्र विकल्प है बीजेपी के प्रीतम: अब सवाल आता है कि चुनाव के दौरान होने ये वाली अंतरकलह और दूसरे नेताओं की नाराजगी की तो पिछोर में BJP को इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिसकी बड़ी वजह है कि लोकल स्तर पर BJP के पास यहां कोई विकल्प ही नहीं है. उमा भारती के मुंह बोले भाई प्रीतम लोधी BJP के एक मात्र उम्मीदवार रहे थे, उनका विरोध करने वाला क्षेत्र में कोई दूसरा है ही नहीं. ऐसे में जब चुनाव आते हैं न तो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता पूरे मन से पार्टी प्रत्याशी को जिताने के प्रयास में जुट जात है और इस बार जब टिकट फाइनल हो चुका है, तब 30 साल लंबे वनवास को खत्म करने के लिए BJP एड़ी चोटी का जोर लगा देगी.

पिछोर सीट से तीसरी बार मिला प्रीतम लोधी को टिकट

भिंड/शिवपुरी। मध्य प्रदेश की राजनीति में शायद यह पहली बार होगा जब भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा के आम चुनाव की घोषणा से पहले ही अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की हो वो भी एक दो नहीं बल्कि 39 विधानसभा सीटों पर. पूरी लिस्ट आ चुकी है जिनमें शिवपुरी जिले की पिछोर सीट भी शामिल है, इस विधानसभा सीट से पार्टी ने टिकट उस उम्मीदवार को दिया है, जिसने कुछ समय पहले ही पार्टी की नाक में दम कर दी थी. जिन प्रीतम लोधी लोधी को बीजेपी ने पिछले दिनों निष्काषित किया था, वही प्रीतम अब तीसरी बार पिछोर सीट से भारतीय जनता पार्टी का चेहरा घोषित हुए हैं. लेकिन ये सीट बीते तीन दशक से बीजेपी की पहुंच से बाहर बनी हुई है.

पिछोर सीट पर बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है. इसकी बड़ी वजह है 6 बार से पिछोर सीट पर काबिज स्थानीय विधायक के पी सिंह 'कक्काजू' जिन्होंने विधायक रहते बीजेपी के किसी नेता को यहां पनपने नहीं दिया, वहीं इतने समय में लगातार जनता के दिलों में अपनी पैठ जमा चुके प्रीतम लोधी को बीजेपी तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारने जा रही है. नाम फाइनल हो चुका है और सूची में प्रीतम लोधी के नाम पर मोहर भी लग चुकी है.

इस वजह से प्रीतम लोधी को तीसरी बार मिला टिकट: पिछोर विधानसभा सीट बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि ये कांग्रेस का अभेद किला है. बीते 6 विधानसभा चुनाव से यहां कांग्रेस के क्षत्रप कहे जाने वाले पूर्व मंत्री केपी सिंह 'कक्काजू' का राज है, लेकिन प्रीतम लोधी इस क्षेत्र से एक मात्र दावेदार हैं. यहां से बीजेपी के पास कोई विकल्प उपलब्ध ही नहीं है, जो कांग्रेस के केपी सिंह के आगे खड़ा हो सके. वहीं प्रीतम लोधी ने बीते दो चुनाव में सेंध लगाते हुए जीत हार में वोटों का अंतर कम किया है, जहां 1998 में केपी सिंह 20 हजार और 2003 में 16 हजार वोट के अंतर से जीते थे. वहीं 2013 में प्रीतम लोधी की बदौलत यह अंतर महज 7113 मतों का था, 2018 के चुनाव में तो ये 2675 पर सिमट गया था. ऐसे में जिन मुद्दों पर बीजेपी कमजोर थी, उन पर काम कर स्थिति में सुधार का काम हुआ है और इस तीसरे प्रयास में बीजेपी को पिछोर पर फतह की उम्मीद है. तीसरा फैक्टर जातिगत समीकरण का भी है पिछोर विधानसभा सीट पर जीत हार तय करने वाले लोधी समाज के वोटर हैं, ऐसे में बीजेपी द्वारा लोधी समाज से कैंडिडेट को टिकट देना फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

प्रीतम लोधी पर भरोसे की वजह: पिछोर क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी प्रीतम लोधी ऐसा नाम है, जिसके बारे में प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा होगा. जिसने यह नाम ना सुना हो एक तो वे पूर्व सीएम उमा भारती के मुंह बोले भाई हैं, उमा भारती के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही प्रीतम लोधी की राजनीति तेजी से आगे बढ़ी थी. वर्तमान में बीजेपी के पास प्रीतम लोधी के सिवा कोई विकल्प नहीं, वहीं भरोसे की दूसरी बड़ी वजह लोधी वोटर. क्योंकि निर्णायक भूमिका में रहने वाले लोधी समाज के पीछोर विधानसभा क्षेत्र में करीब 50 हजार वोटर हैं, जो सिर्फ अपने समाज के कैंडिडेट के लिए ही मतदान करता है. इनके साथ ही 20 हजार से ज्यादा यादव वोटर भी हैं.

वहीं अन्य समाज में भी प्रीतम के काफी समर्थक है, स्थानीय तौर पर प्रीतम लोधी की सामाजिक छवि और जनता से जुड़ाव भी काफी ज्यादा है. वे समय-समय पर जन चौपाल लगाते हैं, जिसमें जनता की परेशानियों न सिर्फ सुनते हैं, उन्हें तुरंत हल कराने का भी प्रयास करते हैं. कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें कांग्रेस शासनकाल में नौकरियां नहीं मिली, लेकिन लोग कहते हैं कि ऐसे कई परिवारों के लिए भी प्रीतम लोधी ने नौकरी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है. ये ऐसे कई कारण रहे हैं जिसकी वजह से प्रीतम लोधी की जनता के बीच लोकप्रियता बढ़ती गई है.

पिछले विधानसभा चुनाव में पिछोर की स्थिति: मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक -26 पिछोर सीट पर 1993 से ही कांग्रेस के पूर्व मंत्री केपी सिंह 'कक्काजू' काबिज हैं. बीजेपी ने प्रयास तो बहुत किया लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली, हालांकि प्रीतम लोधी मार्जिन कम करने में कामयाब रहे 2018 में जब चुनाव हुए तब कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह 'कक्काजू' को 91463 वोट हासिल हुए थे. वहीं बीजेपी के प्रत्याशी प्रीतम लोधी ने भी कड़ी टक्कर देते हुए 88788 मत प्राप्त किए थे, फल स्वरूप यहां 'कक्काजू' और प्रीतम लोधी के चुनावी मुकाबले में जीत का अंतर महज 2675 वोटों का था.

इन खबरों पर भी एक नजर:

विवादों से घिरे प्रीतम की चुनाव की चिंता ने करायी घर वापसी: वैसे प्रीतम लोधी हमेशा विवादों से घिरे रहते हैं. बीते साल अगस्त के महीने में ही प्रीतम लोधी ने ब्राह्मण समाज पर अभद्र टिप्पणी की थी, जिसका विरोध पूरे प्रदेश में हुआ. उनके इस व्यवहार पर बीजेपी ने प्रीतम लोधी को पार्टी से 6 साल के लिए निष्काषित कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने बीजेपी की नाक में दम कर दिया. लेकिन जब चुनाव नजदीक आए तो नाराज लोधी वोटर की चिंता में शिवराज सिंधिया ने मिलकर इसी साल मार्च में उनकी वापसी बीजेपी में करा ली.

पार्टी में असंतोष नहीं, एक मात्र विकल्प है बीजेपी के प्रीतम: अब सवाल आता है कि चुनाव के दौरान होने ये वाली अंतरकलह और दूसरे नेताओं की नाराजगी की तो पिछोर में BJP को इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिसकी बड़ी वजह है कि लोकल स्तर पर BJP के पास यहां कोई विकल्प ही नहीं है. उमा भारती के मुंह बोले भाई प्रीतम लोधी BJP के एक मात्र उम्मीदवार रहे थे, उनका विरोध करने वाला क्षेत्र में कोई दूसरा है ही नहीं. ऐसे में जब चुनाव आते हैं न तो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता पूरे मन से पार्टी प्रत्याशी को जिताने के प्रयास में जुट जात है और इस बार जब टिकट फाइनल हो चुका है, तब 30 साल लंबे वनवास को खत्म करने के लिए BJP एड़ी चोटी का जोर लगा देगी.

Last Updated : Aug 18, 2023, 11:09 AM IST
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