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कपड़ा व्यापारी की बेटी ने दी मुखाग्नि, गौवंश बना साक्षी

शिवपुरी में कोलारस के बदरवास में कपड़ा व्यवसायी की बीती रात मौत हो गई. माहौल तब और गमगीन हो गया जब उनकी दोनों बेटियों राजुल और करुणा ने पिता की अर्थी को कंधा देकर मुक्तिधाम पहुंची, जिसके बाद चचेरे भई के साथ पिता को मुखाग्नि दी, इस दौरान श्मशान घाट पर गायों ने भी अंतिम संस्कार में शामिल होकर अपने सेवक को अंतिम विदाई दी.

Cloth traders daughter did rituals
कपड़ा व्यापारी की बेटी ने दी मुख्याग्नि
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Published : Sep 6, 2020, 2:18 AM IST

शिवपुरी। जिले के कोलारस के बदरवास के कपड़ा व्यवसायी की बीती रात करीब 12 बजे हार्ट अटैक से मौत हो गई. जिसके बाद उनकी बेटी ने उन्हें न सिर्फ कंधा दिया बल्कि अपने चचेरे भाई के साथ पिता को मुखाग्नि दी. गोयल की मौत की खबर से समूचा बदरवास शोक में डूब गया है.

नगर में गोयल साड़ी के संचालक अजीत गोयल की 52 वर्ष की अचानक तबियत बिगड़ गई. जिसके बाद उनके परिजन उन्हें स्थानीय स्वास्थ केंद्र ले गए. जहां से उन्हें जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है, जिसके बाद शिवपुरी में उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया है. गोयल की मौत की खबर से समूचा बदरवास शोक में डूब गया है. माहौल तब और गमगीन हो गया जब उनकी दोनों बेटियों राजुल और करुणा ने पिता की अर्थी को कंधा देकर मुक्तिधाम पहुंची, जिसके बाद चचेरे भाई के साथ पिता को मुखाग्नि दी गई.

यह बताना लाजिमी होगा कि जब चिता को अग्नि दी जा रही थी, उस समय कुछ गाय भी चबूतरे के निकट खड़ी होकर एकटक पूरी अंतिम क्रिया को देखती रही थीं. बता दें, मृतक को गायों से काफी प्रेम था और वे दुकान के सामने बारह माह गायों लिए चारे और पानी की व्यवस्था करते थे.

शिवपुरी। जिले के कोलारस के बदरवास के कपड़ा व्यवसायी की बीती रात करीब 12 बजे हार्ट अटैक से मौत हो गई. जिसके बाद उनकी बेटी ने उन्हें न सिर्फ कंधा दिया बल्कि अपने चचेरे भाई के साथ पिता को मुखाग्नि दी. गोयल की मौत की खबर से समूचा बदरवास शोक में डूब गया है.

नगर में गोयल साड़ी के संचालक अजीत गोयल की 52 वर्ष की अचानक तबियत बिगड़ गई. जिसके बाद उनके परिजन उन्हें स्थानीय स्वास्थ केंद्र ले गए. जहां से उन्हें जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है, जिसके बाद शिवपुरी में उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया है. गोयल की मौत की खबर से समूचा बदरवास शोक में डूब गया है. माहौल तब और गमगीन हो गया जब उनकी दोनों बेटियों राजुल और करुणा ने पिता की अर्थी को कंधा देकर मुक्तिधाम पहुंची, जिसके बाद चचेरे भाई के साथ पिता को मुखाग्नि दी गई.

यह बताना लाजिमी होगा कि जब चिता को अग्नि दी जा रही थी, उस समय कुछ गाय भी चबूतरे के निकट खड़ी होकर एकटक पूरी अंतिम क्रिया को देखती रही थीं. बता दें, मृतक को गायों से काफी प्रेम था और वे दुकान के सामने बारह माह गायों लिए चारे और पानी की व्यवस्था करते थे.

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