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विंध्य में इस बार किसका बजेगा डंका, किधर जाएंगे 'पंडितजी', जनेऊ पॉलिटिक्स में कौन हुआ कामयाब ?

Vindhya Janeu Politics: विंध्य क्षेत्र को एक तरह से ब्राह्मण बहुल इलाका माना जाता है. विंध्य में कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं. जहां ब्राह्मणों की बहुलता है, और इसीलिए सभी पार्टियों की नजर इस क्षेत्र में ब्राह्मणों की नाराजगी पर भी रहती है. इस बार देखिए विंध्य में कहां जाते हैं पंडित जी. पढ़िए शहडोल से अखिलेश शुक्ला की यह रिपोर्ट विंध्य की जनेऊ पॉलिटिक्स...

Vindhya Janeu Politics
विंध्य की जनेऊ पॉलिटिक्स
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 2, 2023, 7:52 PM IST

शहडोल। 3 दिसंबर वो तारीख है, जब सभी पार्टी सभी नेताओं के दिलों की धड़कनें बढ़ी रहेंगी, तो वहीं पूरे देश की नजर मध्य प्रदेश पर टिकी होगी कि आखिर इस बार मध्य प्रदेश में किसकी सरकार, अगर मध्य प्रदेश में सरकार बनानी है, तो विंध्य का भी अहम रोल माना जा रहा है. राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो विंध्य में जो भी पार्टी अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब हो जाती है. उसे प्रदेश में सरकार बनाने में भी बड़ी आसानी होती है. विंध्य में इस बार कई अहम मुद्दे भी रहे तो वही ब्राह्मणों की नाराजगी पर भी सबकी नजर रही, और पूरे चुनाव में विंध्य क्षेत्र में जनेऊ पॉलिटिक्स देखने को मिली. ऐसे में अब हर कोई ये जानना चाह रहा है कि आखिर इस इस बार विंध्य में किधर जाएंगे पंडित जी.

विंध्य में किधर जाएंगे पंडित जी: विंध्य क्षेत्र को एक तरह से ब्राह्मण बहुल इलाका माना जाता है. विंध्य में कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं. जहां ब्राह्मणों की बहुलता है, और इसीलिए सभी पार्टियों की नजर इस क्षेत्र में ब्राह्मणों की नाराजगी पर भी रहती है और सब की नजर है कि आखिर इस बार विंध्य क्षेत्र में किधर जाएंगे पंडित जी और इसीलिए पूरे चुनाव में जनेऊ पॉलिटिक्स भी देखने को मिली. हर कोई ब्राम्हणों को साधने में लग रहा इस बार विन्ध्य क्षेत्र में बीजेपी-कांग्रेस सभी ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने में लगी रही, इसलिए भी इस बार विन्ध्य में सबकी नजर है कि आखिर ब्राह्मण किधर जाएंगे.

ब्राह्मणों को साधने में लगी रही बीजेपी: बीजेपी के लिए विंध्य एक उपजाऊ जमीन है. विंध्य में 30 विधानसभा सीट आती हैं. जिसमें से भारतीय जनता पार्टी ने 2018 के चुनाव में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. तब भी विंध्य में भारतीय जनता पार्टी ने 24 सीट में जीत हासिल की थी, जबकि महज 6 सीट ही कांग्रेस जीत सकती थी.

विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण कितने जरूरी हैं, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पूरे चुनाव में बीजेपी ने ब्राह्मणों को मनाने और उन्हें साधने में लगी रही. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से 3 महीने पहले ही विंध्य क्षेत्र के बड़े ब्राह्मण चेहरा राजेंद्र शुक्ल को भारतीय जनता पार्टी ने मंत्री बनाया और ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की, क्योंकि विंध्य से 30 सीट में 24 सीट जीतने के बाद भी जब विंध्य क्षेत्र को मध्य प्रदेश सरकार में बड़ा प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो इस पर भी सवाल खड़े हो रहे थे.

इतना ही नहीं विंध्य का बड़ा ब्राम्हण चेहरा सांसद रीती पाठक को भी भारतीय जनता पार्टी ने सीधी से विधानसभा चुनावी मैदान पर उतार दिया. बीजेपी की जनेऊ पॉलिटिक्स यहीं खत्म नहीं हुई. विंध्य में कांग्रेस के कद्दावर नेता व्हाइट टाइगर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते और कट्टर कांग्रेसी सिद्धार्थ तिवारी को भारतीय जनता पार्टी ने बीजेपी में एंट्री दिला दी और त्योंथर सीट से चुनावी मैदान पर भी उतार दिया था. सिद्धार्थ तिवारी पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे हैं. पूरे चुनाव के दौरान विंध्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मणों को साधने की हर मुमकिन कोशिश की.

विंध्य में ब्राम्हणों का रोल क्यों अहम: विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मणों का रोल अहम क्यों है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि विंध्य क्षेत्र में ज्यादातर विधानसभा ऐसे हैं. जहां ब्राह्मणों की बहुलता है और यहां ब्राह्मणों का वर्चस्व भी देखने को मिलता है. इसलिए भी सभी पार्टियां जनेऊ पॉलिटिक्स करने से नहीं चूकती है. मध्य प्रदेश के विन्ध्य सूबे को भले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपना गढ़ बना लिया है, लेकिन ब्राह्मण अगर नाराज होते हैं तो क्या होता है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है.

विंध्य में ब्राह्मणों की नाराजगी इस बात को लेकर भी थी, की विंध्य क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी को प्रबल समर्थन दिया, लेकिन विंध्य क्षेत्र से एमपी सरकार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से ब्राह्मण नाराज हो गए थे. सीधी पेशाब कांड के बाद आरोपी प्रवेश शुक्ला पर सख्त कार्रवाई ने ब्राह्मणों को नाराज कर दिया था और उनकी नाराजगी और बढ़ा दी थी.

विंध्य में मेयर चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक-एक सीट जीत गई और फिर भाजपा ने विंध्य में ब्राह्मणों को साधने के लिए नया दांव खेला और कई ऐसे नए ब्राह्मण शेरों को साधने की कोशिश की है. जिससे विंध्य में पंडितजी की नाराजगी दूर हो सके.

विंध्य में जातिगत वोटर्स: पूरे विंध्य में जातिगत वोटर्स पर नजर डालें तो विंध्य क्षेत्र में रीवा में आठ विधानसभा सीट आती है. राजेंद्र शुक्ला बीजेपी के कद्दावर नेता हैं, रीवा राजेंद्र शुक्ला का इलाका है. इसीलिए चुनाव से ठीक 3 महीने पहले उन्हें मंत्री भी बनाया गया. रीवा में सबसे ज्यादा सवर्ण जाति के वोटर्स हैं और यहां पर लगभग 40 परसेंट सवर्ण जाति के वोटर पाए जाते हैं, तो सिंगरौली में सबसे कम सामान्य वर्ग के वोटर हैं. जिसमें महज 10 से 15 परसेंट ही है.

विंध्य में पिछड़ा वर्ग के वोटर की बात करें, जिनकी राजनीति इस बार कांग्रेस करती आई है. राहुल गांधी जब शहडोल जिले के ब्यौहारी दौरे पर आए थे, तो उन्होंने टोटल ओबीसी पॉलिटिक्स की थी और उनके पूरे संबोधन के दौरान ओबीसी वोटर को साधने की कोशिश की गई थी. विंध्य में जो पिछड़ा वर्ग वोटर की संख्या है, वह सबसे ज्यादा सीधी में है. जो की कमलेश्वर पटेल और अजय सिंह राहुल का इलाका है और यहां पर लगभग 30 परसेंट ओबीसी वोटर हैं. तो वहीं सबसे कम ओबीसी वोटर आदिवासी बाहुल्य इलाका शहडोल जिले में है. जहां महज 21 से 25 परसेंट के लगभग ही हैं.

आदिवासी वोटर्स पर नजर: आदिवासी वोटर्स पर नजर डालें इनकी राजनीति भाजपा-कांग्रेस दोनों ने प्रबल तरीके से किया है. शहडोल जिले में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए, आदिवासी समाज के लोगों के साथ भोजन किया था. चौपाल लगाया था, तो राहुल गांधी ने भी आदिवासियों को साधने की पूरी कोशिश की थी. अमित शाह ने कोल समाज के साथ एक रैली और महाकुंभ का आयोजन किया. कुल मिलाकर आदिवासियों को साधने की हर कोशिश की, विंध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी वोटर्स शहडोल संभाग के उमरिया जिले में हैं. जहां 50 से 55 प्रतिशत तक आदिवासी वोटर हैं, तो वहीं सतना में सबसे कम हैं. जहां 10 से 15 परसेंट तक आदिवासी वोटर हैं.
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गौरतलब है कि इस बार के चुनाव में जनेऊ पॉलिटिक्स विन्ध्य क्षेत्र में खूब देखने को मिली, अब देखना ये दिलचस्प होगा जब 3 दिसंबर को फाइनल रिजल्ट आएगा, तो देखना दिलचस्प होगा कि विंध्य क्षेत्र के पंडित जी किधर जाते हैं।

शहडोल। 3 दिसंबर वो तारीख है, जब सभी पार्टी सभी नेताओं के दिलों की धड़कनें बढ़ी रहेंगी, तो वहीं पूरे देश की नजर मध्य प्रदेश पर टिकी होगी कि आखिर इस बार मध्य प्रदेश में किसकी सरकार, अगर मध्य प्रदेश में सरकार बनानी है, तो विंध्य का भी अहम रोल माना जा रहा है. राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो विंध्य में जो भी पार्टी अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब हो जाती है. उसे प्रदेश में सरकार बनाने में भी बड़ी आसानी होती है. विंध्य में इस बार कई अहम मुद्दे भी रहे तो वही ब्राह्मणों की नाराजगी पर भी सबकी नजर रही, और पूरे चुनाव में विंध्य क्षेत्र में जनेऊ पॉलिटिक्स देखने को मिली. ऐसे में अब हर कोई ये जानना चाह रहा है कि आखिर इस इस बार विंध्य में किधर जाएंगे पंडित जी.

विंध्य में किधर जाएंगे पंडित जी: विंध्य क्षेत्र को एक तरह से ब्राह्मण बहुल इलाका माना जाता है. विंध्य में कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं. जहां ब्राह्मणों की बहुलता है, और इसीलिए सभी पार्टियों की नजर इस क्षेत्र में ब्राह्मणों की नाराजगी पर भी रहती है और सब की नजर है कि आखिर इस बार विंध्य क्षेत्र में किधर जाएंगे पंडित जी और इसीलिए पूरे चुनाव में जनेऊ पॉलिटिक्स भी देखने को मिली. हर कोई ब्राम्हणों को साधने में लग रहा इस बार विन्ध्य क्षेत्र में बीजेपी-कांग्रेस सभी ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने में लगी रही, इसलिए भी इस बार विन्ध्य में सबकी नजर है कि आखिर ब्राह्मण किधर जाएंगे.

ब्राह्मणों को साधने में लगी रही बीजेपी: बीजेपी के लिए विंध्य एक उपजाऊ जमीन है. विंध्य में 30 विधानसभा सीट आती हैं. जिसमें से भारतीय जनता पार्टी ने 2018 के चुनाव में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. तब भी विंध्य में भारतीय जनता पार्टी ने 24 सीट में जीत हासिल की थी, जबकि महज 6 सीट ही कांग्रेस जीत सकती थी.

विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण कितने जरूरी हैं, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पूरे चुनाव में बीजेपी ने ब्राह्मणों को मनाने और उन्हें साधने में लगी रही. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से 3 महीने पहले ही विंध्य क्षेत्र के बड़े ब्राह्मण चेहरा राजेंद्र शुक्ल को भारतीय जनता पार्टी ने मंत्री बनाया और ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की, क्योंकि विंध्य से 30 सीट में 24 सीट जीतने के बाद भी जब विंध्य क्षेत्र को मध्य प्रदेश सरकार में बड़ा प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो इस पर भी सवाल खड़े हो रहे थे.

इतना ही नहीं विंध्य का बड़ा ब्राम्हण चेहरा सांसद रीती पाठक को भी भारतीय जनता पार्टी ने सीधी से विधानसभा चुनावी मैदान पर उतार दिया. बीजेपी की जनेऊ पॉलिटिक्स यहीं खत्म नहीं हुई. विंध्य में कांग्रेस के कद्दावर नेता व्हाइट टाइगर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते और कट्टर कांग्रेसी सिद्धार्थ तिवारी को भारतीय जनता पार्टी ने बीजेपी में एंट्री दिला दी और त्योंथर सीट से चुनावी मैदान पर भी उतार दिया था. सिद्धार्थ तिवारी पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे हैं. पूरे चुनाव के दौरान विंध्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मणों को साधने की हर मुमकिन कोशिश की.

विंध्य में ब्राम्हणों का रोल क्यों अहम: विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मणों का रोल अहम क्यों है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि विंध्य क्षेत्र में ज्यादातर विधानसभा ऐसे हैं. जहां ब्राह्मणों की बहुलता है और यहां ब्राह्मणों का वर्चस्व भी देखने को मिलता है. इसलिए भी सभी पार्टियां जनेऊ पॉलिटिक्स करने से नहीं चूकती है. मध्य प्रदेश के विन्ध्य सूबे को भले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपना गढ़ बना लिया है, लेकिन ब्राह्मण अगर नाराज होते हैं तो क्या होता है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है.

विंध्य में ब्राह्मणों की नाराजगी इस बात को लेकर भी थी, की विंध्य क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी को प्रबल समर्थन दिया, लेकिन विंध्य क्षेत्र से एमपी सरकार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से ब्राह्मण नाराज हो गए थे. सीधी पेशाब कांड के बाद आरोपी प्रवेश शुक्ला पर सख्त कार्रवाई ने ब्राह्मणों को नाराज कर दिया था और उनकी नाराजगी और बढ़ा दी थी.

विंध्य में मेयर चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक-एक सीट जीत गई और फिर भाजपा ने विंध्य में ब्राह्मणों को साधने के लिए नया दांव खेला और कई ऐसे नए ब्राह्मण शेरों को साधने की कोशिश की है. जिससे विंध्य में पंडितजी की नाराजगी दूर हो सके.

विंध्य में जातिगत वोटर्स: पूरे विंध्य में जातिगत वोटर्स पर नजर डालें तो विंध्य क्षेत्र में रीवा में आठ विधानसभा सीट आती है. राजेंद्र शुक्ला बीजेपी के कद्दावर नेता हैं, रीवा राजेंद्र शुक्ला का इलाका है. इसीलिए चुनाव से ठीक 3 महीने पहले उन्हें मंत्री भी बनाया गया. रीवा में सबसे ज्यादा सवर्ण जाति के वोटर्स हैं और यहां पर लगभग 40 परसेंट सवर्ण जाति के वोटर पाए जाते हैं, तो सिंगरौली में सबसे कम सामान्य वर्ग के वोटर हैं. जिसमें महज 10 से 15 परसेंट ही है.

विंध्य में पिछड़ा वर्ग के वोटर की बात करें, जिनकी राजनीति इस बार कांग्रेस करती आई है. राहुल गांधी जब शहडोल जिले के ब्यौहारी दौरे पर आए थे, तो उन्होंने टोटल ओबीसी पॉलिटिक्स की थी और उनके पूरे संबोधन के दौरान ओबीसी वोटर को साधने की कोशिश की गई थी. विंध्य में जो पिछड़ा वर्ग वोटर की संख्या है, वह सबसे ज्यादा सीधी में है. जो की कमलेश्वर पटेल और अजय सिंह राहुल का इलाका है और यहां पर लगभग 30 परसेंट ओबीसी वोटर हैं. तो वहीं सबसे कम ओबीसी वोटर आदिवासी बाहुल्य इलाका शहडोल जिले में है. जहां महज 21 से 25 परसेंट के लगभग ही हैं.

आदिवासी वोटर्स पर नजर: आदिवासी वोटर्स पर नजर डालें इनकी राजनीति भाजपा-कांग्रेस दोनों ने प्रबल तरीके से किया है. शहडोल जिले में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए, आदिवासी समाज के लोगों के साथ भोजन किया था. चौपाल लगाया था, तो राहुल गांधी ने भी आदिवासियों को साधने की पूरी कोशिश की थी. अमित शाह ने कोल समाज के साथ एक रैली और महाकुंभ का आयोजन किया. कुल मिलाकर आदिवासियों को साधने की हर कोशिश की, विंध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी वोटर्स शहडोल संभाग के उमरिया जिले में हैं. जहां 50 से 55 प्रतिशत तक आदिवासी वोटर हैं, तो वहीं सतना में सबसे कम हैं. जहां 10 से 15 परसेंट तक आदिवासी वोटर हैं.
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गौरतलब है कि इस बार के चुनाव में जनेऊ पॉलिटिक्स विन्ध्य क्षेत्र में खूब देखने को मिली, अब देखना ये दिलचस्प होगा जब 3 दिसंबर को फाइनल रिजल्ट आएगा, तो देखना दिलचस्प होगा कि विंध्य क्षेत्र के पंडित जी किधर जाते हैं।

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