ETV Bharat / state

Kajaliya Festival: बड़े-बुजुर्ग छोटों के कान में कजलियां लगाकर देते हैं आशीर्वाद - प्रकृति प्रेम खुशहाली से जुड़ा पर्व कजलियां

कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है, सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन के दूसरे दिन कजलियां पर्व मनाया जाता है, इसे कई स्थानों पर भुजलिया या भुजरियां नाम से भी जाना जाता है. इस बार यह पर्व सोमवार को मनाया गया. कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) के लिए श्रावण मास की अष्टमी-नवमी को बांस की टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या जौ के दाने बोए जाते हैं. बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल की उन्नति का प्रतीक है.

Kajaliya Festival
कजलियां लिए खड़े बच्चे
author img

By

Published : Aug 24, 2021, 6:49 AM IST

शहडोल। रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) मनाया जाता है, शहडोल जिले में भी बड़े धूमधाम से कजलियां पर्व मनाया गया, शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य है और यहां पर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. हालांकि, अब इस पर्व को मनाने वालों की संख्या में भी साल दर साल गिरावट देखी जा रही है, इस बार भी पहले की तरह भीड़ तो नहीं दिखी, लेकिन जितने भी लोग इसे मनाते नजर आये, उनमें काफी उत्साह देखने को मिला. कजलियां की तैयारी कई दिनों से लोग करते हैं, फिर रक्षाबंधन के दूसरे दिन इस पावन पर्व को बड़े उत्साह से मनाते हैं.

Kajaliya Festival
कजलियां पर्व मनाते बच्चे

श्रद्धा से मनाया गया कजलियां पर्व, सुरक्षा के साथ किया विसर्जन

जानिए इस दौरान क्या-क्या होता है ?

कजलियां पर्व पर घर में जो महिलाएं-बच्चे होते हैं, वह शाम को घर में पहले उसकी पूजा करते हैं, फिर उसे लेकर नदी-नाला, तालाब जहां भी पवित्र स्थान मिलता है, वहां जाकर पूजा करके उसे मिट्टी से अलग करते हैं, उसे उखाड़कर साफ करते हैं, फिर कजलियां (Kajaliya Festival) को सर्वप्रथम भगवान को अर्पित करते हैं, उसके बाद उसे प्रसाद स्वरूप अपने घर के आस पड़ोस में जानने पहचानने वालों को बड़े बुजुर्गों को एक दूसरे को भेंट करते हैं, उनसे मेल मिलाप करते हैं, आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस त्योहार को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है.

Kajaliya Festival
कजलियां लेकर जाते बच्चे

कान में लगाने का रिवाज क्यों है ?

ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कजलियों को कान में लगाने के रिवाज के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि जब इसे घर के बड़ों को दिया जाता है तो वह छोटों के कान में उसे लगाकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं, इसके पीछे की वजह है, पहला तो उनका डर समाप्त हो दूसरा कोई भी अलाय-बलाय हो नजर लगी हो वह दूर हो जाए और तीसरा कारण है कि कजलियां (Kajaliya Festival) जिसके कान में लगाया जाता है, उसका जीवन साल भर हरा-भरा रहता है, कोई बीमारी नहीं होती और साल भर वह तरक्की की राह पर रहता है.

Kajaliya Festival
कजलियां ले जाते ग्रामीण

कजलियां मनाने वालों की घट रही संख्या

ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर देखा जाता था कि कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) पर गांव भर में लोग एक दूसरे के घर जाते थे, बच्चे घर-घर जाते थे और कजलियां भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करते थे, बदलते वक्त के साथ इसमें भी बहुत बदलाव देखने को मिला है. ग्रामीण रामप्रसाद बताते हैं कि पहले कजलियों का पर्व और अब के कजलियां पर्व में बहुत फर्क है, अब तो एक दो व्यक्ति कोई घर आ गया तो आ गया नहीं तो घर के सदस्य एक दूसरे को कजलियां भेंट करते हैं. वहीं कुछ ग्रामीणों का तो कहना है कि अब तो घर में भी यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है लोगों में वह उत्साह नहीं रह गया है.

लोगों की संख्या में गिरावट

देखा जाए तो साल दर साल कजलियां (Kajaliya Festival) तालाबों में लेकर जाने वालों की संख्या में भी काफी गिरावट देखने को मिल रही है, पहले बड़ी संख्या में पूरा का पूरा गांव नाचते गाते उमड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है. अब गिने-चुने लोग ही इस पर्व को मनाते नजर आते हैं.

शहडोल। रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) मनाया जाता है, शहडोल जिले में भी बड़े धूमधाम से कजलियां पर्व मनाया गया, शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य है और यहां पर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. हालांकि, अब इस पर्व को मनाने वालों की संख्या में भी साल दर साल गिरावट देखी जा रही है, इस बार भी पहले की तरह भीड़ तो नहीं दिखी, लेकिन जितने भी लोग इसे मनाते नजर आये, उनमें काफी उत्साह देखने को मिला. कजलियां की तैयारी कई दिनों से लोग करते हैं, फिर रक्षाबंधन के दूसरे दिन इस पावन पर्व को बड़े उत्साह से मनाते हैं.

Kajaliya Festival
कजलियां पर्व मनाते बच्चे

श्रद्धा से मनाया गया कजलियां पर्व, सुरक्षा के साथ किया विसर्जन

जानिए इस दौरान क्या-क्या होता है ?

कजलियां पर्व पर घर में जो महिलाएं-बच्चे होते हैं, वह शाम को घर में पहले उसकी पूजा करते हैं, फिर उसे लेकर नदी-नाला, तालाब जहां भी पवित्र स्थान मिलता है, वहां जाकर पूजा करके उसे मिट्टी से अलग करते हैं, उसे उखाड़कर साफ करते हैं, फिर कजलियां (Kajaliya Festival) को सर्वप्रथम भगवान को अर्पित करते हैं, उसके बाद उसे प्रसाद स्वरूप अपने घर के आस पड़ोस में जानने पहचानने वालों को बड़े बुजुर्गों को एक दूसरे को भेंट करते हैं, उनसे मेल मिलाप करते हैं, आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस त्योहार को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है.

Kajaliya Festival
कजलियां लेकर जाते बच्चे

कान में लगाने का रिवाज क्यों है ?

ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कजलियों को कान में लगाने के रिवाज के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि जब इसे घर के बड़ों को दिया जाता है तो वह छोटों के कान में उसे लगाकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं, इसके पीछे की वजह है, पहला तो उनका डर समाप्त हो दूसरा कोई भी अलाय-बलाय हो नजर लगी हो वह दूर हो जाए और तीसरा कारण है कि कजलियां (Kajaliya Festival) जिसके कान में लगाया जाता है, उसका जीवन साल भर हरा-भरा रहता है, कोई बीमारी नहीं होती और साल भर वह तरक्की की राह पर रहता है.

Kajaliya Festival
कजलियां ले जाते ग्रामीण

कजलियां मनाने वालों की घट रही संख्या

ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर देखा जाता था कि कजलियां पर्व (Kajaliya Festival) पर गांव भर में लोग एक दूसरे के घर जाते थे, बच्चे घर-घर जाते थे और कजलियां भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करते थे, बदलते वक्त के साथ इसमें भी बहुत बदलाव देखने को मिला है. ग्रामीण रामप्रसाद बताते हैं कि पहले कजलियों का पर्व और अब के कजलियां पर्व में बहुत फर्क है, अब तो एक दो व्यक्ति कोई घर आ गया तो आ गया नहीं तो घर के सदस्य एक दूसरे को कजलियां भेंट करते हैं. वहीं कुछ ग्रामीणों का तो कहना है कि अब तो घर में भी यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है लोगों में वह उत्साह नहीं रह गया है.

लोगों की संख्या में गिरावट

देखा जाए तो साल दर साल कजलियां (Kajaliya Festival) तालाबों में लेकर जाने वालों की संख्या में भी काफी गिरावट देखने को मिल रही है, पहले बड़ी संख्या में पूरा का पूरा गांव नाचते गाते उमड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है. अब गिने-चुने लोग ही इस पर्व को मनाते नजर आते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.