ETV Bharat / state

आदिवासियों की ये अनोखी परंपरा आज भी जीवंत ..भांजे को आम और घड़े का नहीं कर पाए दान तो सालभर के लिए कर देते हैं त्याग

शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य है. इस जिले में आज भी आदिवासियों के बीच में कई ऐसी परंपराएं जीवंत हैं. बैसाख के महीने में आदिवासियों के बीच एक ऐसे ही परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसके अनुसार आदिवासी समाज के लोग नया घड़ा और आम का दान जब तक अपने भांजे को नहीं कर लेते, तब तक उसका सेवन नहीं करते. अगर दान नहीं कर पाए तो फिर सालभर के लिए आम और नए घड़े का त्याग कर देते हैं. यह परंपरा अद्भुत और अनोखी भी है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से सालभर व्यक्ति के सामने कोई समस्या नहीं आती और जीवन सुखमय बीतता है. (unique tradition of tribals) (donate mango and pitcher to nephew) (tradition of tribals still alive)

tradition of tribals still alive
आदिवासियों की ये अनोखी परंपरा
author img

By

Published : May 16, 2022, 2:03 PM IST

Updated : May 16, 2022, 8:02 PM IST

शहडोल। शहडोल संभाग में आदिवासी समाज के लोगों की बहुलता है. इस क्षेत्र में आदिवासियों के बीच में कई ऐसी अनोखी परंपराएं हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान हो जाता है. साल दर साल बदलते वक्त के साथ जहां हर जगह बदलाव देखने को मिला, वहीं आदिवासियों के बीच में कुछ ऐसी परंपराएं आज भी जीवंत हैं, जिनमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है. बैसाख के महीने में फलों के राजा आम की आवक होती है. लोगों को ठंडे पानी की जरूरत होती है तो घड़े का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में आदिवासी समाज के लोग उस नए साल में तब तक ना तो नए घड़े का पानी पीते हैं और ना ही फलों के राजा आम का सेवन करते हैं, जब तक उसका दान अपने भांजे को नहीं कर देते. विशेष नियम है कि बैसाख के महीने में ही इसका दान किया जाता है.

आदिवासियों की परंपरा आज भी जिंदा

मामा का सालभर के लिए बीमा हो जाता है : इस परंपरा को लेकर आदिवासी समाज के केशव कोल और नान बाबू बैगा ने बताया कि बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान आदिवासी समाज के बीच एक अनोखी परंपरा है, जो लगातार सदियों से उनके पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है. उनके पूर्वजों ने उन्हें यह सिखाया है कि तब तक नए घड़े से पानी नहीं पीना है, जब तक भांजे को दान नहीं कर लेते हैं. ना ही तब तक आम का सेवन करना हैं, दोनों बताते हैं कि भांजे को इसका दान कर लेने से बहुत फायदा मिलता है. सालभर पुण्य मिलता है. इस दान के बाद मामा का सालभर के लिए बीमा ही हो जाता है, क्योंकि उसे काफी पुण्य व लाभ मिलता है. किसी भी तरह की कठिनाइयां उसके रास्ते में नहीं आती. कुछ लोग ऐसे भी हैं कि अगर बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान नहीं कर पाए तो फिर वह सालभर के लिए उसका त्याग भी कर देते हैं, वो उसका इस्तेमाल ही नहीं करते हैं. ना तो नए घड़े से वो साल भर पानी पिएंगे और ना ही आम का सेवन करेंगे.

donate mango and pitcher to nephew
भतीजे को आम और घड़ा दान करें
tradition of tribals still alive
आदिवासियों की परंपरा आज भी जिंदा

मंत्री भूपेंद्र सिंह का बयान, पुराने नियमों से होंगे नगरीय निकाय के चुनाव, अध्यादेश लाएगी सरकार

21 ब्राह्मणों का भोजन कराने के बराबर का पुण्य : इस परंपरा को लेकर पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि आदिवासी तो आज भी बड़ी शिद्दत के साथ इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. भांजा को इसलिए दान दिया जाता है, क्योंकि क्योंकि भांजा बहुत पवित्र होता है. अपने भांजे का पैर धोकर और उसको नया फल खिलाकर दान दक्षिणा देकर चरण वंदन करें तो 21 ब्राह्मणों का भोजन कराने के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है. सालभर उसके घर में सुख शांति रहती है. इसलिए आदिवासी इलाकों में अपने भांजे को सादर आमंत्रित करते हैं या भांजे के घर ही चले जाते हैं. (unique tradition of tribals) (donate mango and pitcher to nephew) (tradition of tribals still alive)

donate mango and pitcher to nephew
आदिवासियों की ये अनोखी परंपरा

शहडोल। शहडोल संभाग में आदिवासी समाज के लोगों की बहुलता है. इस क्षेत्र में आदिवासियों के बीच में कई ऐसी अनोखी परंपराएं हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान हो जाता है. साल दर साल बदलते वक्त के साथ जहां हर जगह बदलाव देखने को मिला, वहीं आदिवासियों के बीच में कुछ ऐसी परंपराएं आज भी जीवंत हैं, जिनमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है. बैसाख के महीने में फलों के राजा आम की आवक होती है. लोगों को ठंडे पानी की जरूरत होती है तो घड़े का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में आदिवासी समाज के लोग उस नए साल में तब तक ना तो नए घड़े का पानी पीते हैं और ना ही फलों के राजा आम का सेवन करते हैं, जब तक उसका दान अपने भांजे को नहीं कर देते. विशेष नियम है कि बैसाख के महीने में ही इसका दान किया जाता है.

आदिवासियों की परंपरा आज भी जिंदा

मामा का सालभर के लिए बीमा हो जाता है : इस परंपरा को लेकर आदिवासी समाज के केशव कोल और नान बाबू बैगा ने बताया कि बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान आदिवासी समाज के बीच एक अनोखी परंपरा है, जो लगातार सदियों से उनके पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है. उनके पूर्वजों ने उन्हें यह सिखाया है कि तब तक नए घड़े से पानी नहीं पीना है, जब तक भांजे को दान नहीं कर लेते हैं. ना ही तब तक आम का सेवन करना हैं, दोनों बताते हैं कि भांजे को इसका दान कर लेने से बहुत फायदा मिलता है. सालभर पुण्य मिलता है. इस दान के बाद मामा का सालभर के लिए बीमा ही हो जाता है, क्योंकि उसे काफी पुण्य व लाभ मिलता है. किसी भी तरह की कठिनाइयां उसके रास्ते में नहीं आती. कुछ लोग ऐसे भी हैं कि अगर बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान नहीं कर पाए तो फिर वह सालभर के लिए उसका त्याग भी कर देते हैं, वो उसका इस्तेमाल ही नहीं करते हैं. ना तो नए घड़े से वो साल भर पानी पिएंगे और ना ही आम का सेवन करेंगे.

donate mango and pitcher to nephew
भतीजे को आम और घड़ा दान करें
tradition of tribals still alive
आदिवासियों की परंपरा आज भी जिंदा

मंत्री भूपेंद्र सिंह का बयान, पुराने नियमों से होंगे नगरीय निकाय के चुनाव, अध्यादेश लाएगी सरकार

21 ब्राह्मणों का भोजन कराने के बराबर का पुण्य : इस परंपरा को लेकर पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि आदिवासी तो आज भी बड़ी शिद्दत के साथ इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. भांजा को इसलिए दान दिया जाता है, क्योंकि क्योंकि भांजा बहुत पवित्र होता है. अपने भांजे का पैर धोकर और उसको नया फल खिलाकर दान दक्षिणा देकर चरण वंदन करें तो 21 ब्राह्मणों का भोजन कराने के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है. सालभर उसके घर में सुख शांति रहती है. इसलिए आदिवासी इलाकों में अपने भांजे को सादर आमंत्रित करते हैं या भांजे के घर ही चले जाते हैं. (unique tradition of tribals) (donate mango and pitcher to nephew) (tradition of tribals still alive)

donate mango and pitcher to nephew
आदिवासियों की ये अनोखी परंपरा
Last Updated : May 16, 2022, 8:02 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.