शहडोल। शहडोल जिला अस्पताल में सिलसिलेवार तरीके से हुई 13 नवजातों की मौत के बाद प्रदेश में इस मामले ने तूल पकड़ लिया है. प्रदेश भर के जिला अस्पताल में बच्चों की मौत के आकंड़े भी चौकाने वाले सामने आ रहे हैं. ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावों की सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर कटहरी गांव पहुंचा. जिन 13 नवजातों की जिला अस्पताल में मौत हुई है उन्हीं में से एक दो महीने की काजल बैगा आदिवासी मासूम भी शामिल है.
ईटीवी भारत ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में यह जानने की कोशिश की, आखिर इस मासूम को क्या हुआ था और जिला अस्तपाल में इलाज के दौरान किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ा. इस बारे में हमने मृतक बच्ची काजल के पिता मुकेश बैगा से बातचीत की. उस पिता पर क्या कुछ गुजरी जब उसने अपनी दो महीने की बच्ची को खो दिया.
इलाज के दो दिन में हो गई बच्ची की मौत
मुकेश बैगा बताते हैं कि अचानक से 27 नवंबर को बच्ची को अचानक उल्टी आने लगी, उल्टी आने के बाद थोड़ी हिचकी आई.जबकि उससे पहले बच्ची पूरी तरह स्वस्थ थी. ज्यादा हिचकी आने के बाद जब मामला गंभीर होता दिखा तो सीधे बच्ची को लेकर शहडोल अस्पताल ले कर पहुंचे. जहां बच्ची को डॉक्टरों ने एडमिट कर इलाज शुरु कर दिया. लेकिन इलाज के तीन दिन बाद ही मासूम की तबीयत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई.
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शहडोल जिला अस्पताल को दी क्लीनचिट
कटहरी गांव के मुकेश बैगा बताते हैं कि जिला अस्पताल में उन्हें इलाज समय पर मिला, दवाइयां भी बाहर से नहीं लानी पड़ी. बच्ची भी कमजोर भी नहीं थी. लेकिन डॉक्टर ने उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं बताया. बस यही बता रहे थे कि बच्ची थोड़ी सीरियस है. बच्ची की मौत के बाद प्रशासन ने घर छोड़ने की भी व्यवस्था की थी. लिहाजा शहडोल जिला अस्पताल को बच्ची के पिता ने क्लिनचिट दे दी.
मैदानी अमले से असंतुष्ट नजर आये मुकैश बैगा
जिला चिकित्सालय को तो मुकेश बैगा ने अपनी ओर से क्लीनचिट दे दिया, साथ ही यह भी कहा कि वहां कोई परेशानी नहीं हुई. जिला चिकित्सालय में ले जाते ही सीधे बच्ची को एडमिट कर लिया गया और इलाज भी समय पर शुरू हो गया. लेकिन मैदानी अमले को लेकर मुकेश काफी बिफर गए. उन्होंने बताया कि जब हम हॉस्पिटल बच्ची को ले जा रहे थे. तो आशा कार्यकर्ता को फोन लगाया पर मोबाइल स्विच ऑफ मिला. उसके बाद बच्ची को बाइक में लेकर ही लेकर करीब 15 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल निकल गए. शाम को 4.बजे बच्ची को अस्पताल लेकर पुहंचे. जहां उसे एडमिट किया गया.
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आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर उठाए सवाल
मैदानी अमले को लेकर मुकेश बैगा कहते हैं कि आंगनबाड़ी में जो कुछ भी सरकार की ओर से मिलता है, उसे इन लोगों को नहीं दिया जाता है. टीकाकरण के बारे में मुकेश ने बताया कि जिला अस्पताल से जब बच्ची पैदा हुई थी. उसी समय बच्चे को टीकाकरण हुआ था. उसके बाद घर में कुछ नहीं हुआ. आशा कार्यकर्ताओं को लेकर कहते हैं कि बच्ची के पैदा होने के बाद से कोई भी 2 महीने के अंतराल में उनके बच्चे का हाल जानने नहीं पहुंचा. कोई भी मैदानी अमला कुछ भी खबर करने नहीं पहुंचा, लेकिन बच्ची की मौत के बाद ये लोग जरूर पहुंचे.
2 महीने की मासूम बच्ची की मौत के बाद पूरे परिवार में मातम पसरा हुआ है. परिवार के किसी सदस्य को ये समझ नहीं आ रहा है कि आखिर यह हो क्या गया. अचानक से उल्टी आना, हिचकी आना और फिर बच्ची की मौत हो जाने से बहुत बड़ा जख्म मिला है शायद ही इस जख्म की कभी भरपाई हो.