शहडोल। यूरिया की किल्लत से इन दिनों किसान बहुत ज्यादा परेशान हैx. शहडोल जिले में एक बड़े रकबे में धान की खेती प्रमुखता से की जाती है. जिसके लिए समय-समय पर यूरिया की जरूरत होती है. लेकिन पिछले कई दिनों से किसान कई सहकारी समितियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें यूरिया नहीं मिल रहा. किसानों का कहना है कि अगर समय पर यूरिया नहीं मिला तो उनकी धान की फसल खराब हो सकती है. वहीं दूसरी ओर अधिकारियों का कहना है कि जिले में यूरिया की कोई कमी नहीं है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब यूरिया की कोई कमी नहीं है, तो फिर किसानों को समय पर वह क्यों नहीं मिल पा रहा है.
यूरिया की किल्लत से किसान परेशान
शहडोल जिले में इन दिनों यूरिया खाद की बहुत ज्यादा किल्लत है. जिसकी वजह से किसान बहुत ज्यादा परेशान हैं. दूरदराज गांवों से किसान हर दिन जिला मुख्यालय तक भी यूरिया खाद लेने पहुंच रहे हैं. इस उम्मीद के साथ कि शायद खाद उपलब्ध हो जाये, लेकिन किसानों को सिर्फ मायूसी मिल रही है. सहकारी समिति जहां पर रासायनिक खाद मिलते हैं वहां करीब 1 घंटे तक ईटीली भारत की टीम खड़ी रही. इस दौरान मिनट दर मिनट किसान आते रहे और खाद है या नहीं यह पूछ कर वापस लौट गए. पड़मनिया, अमरहा, मईकी, पंचगांव, सिंदुरी समेत कई जगहों के किसान आते रहे, लेकिन उन्हें खाद नहीं मिली.
ईटीवी भारत को किसानों ने बताया कि वह पिछले 15 दिन से खाद के लिए भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें समय पर यूरिया खाद नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनके धान की फसल के नुकसान होने की संभावना बढ़ रही है.
जिले में बड़े रकबे पर की जाती है धान की खेती
शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां पर खरीफ के सीजन में सबसे ज्यादा खेती होती है. सबसे बड़े रकबे पर सिर्फ धान की खेती की जाती है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी तादाद में जिले में यूरिया खाद की जरूरत पड़ती है. कृषि विभाग के मुताबिक, लगभग 1 लाख 61 हजार रकबे में सिर्फ धान की फसल जिले में लगाई गई है.
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धान के लिए यूरिया क्यों जरूरी ?
कृषि एक्सपर्ट्स की मानें तो धान की फसल के लिए यूरिया की जरूरत बहुत ज्यादा पड़ती है. इन दिनों हर किसान हाइब्रिड धान के बीज लगा रहा है. शहडोल जिले की ज्यादातर मिट्टी हल्की है, ऐसे में यहां पर रोपाई के बाद तीन बार यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करनी पड़ती है. जिससे धान का उत्पादन बढ़ जाता है. कृषि एक्सपर्ट्स की मानें तो रोपाई के बाद यूरिया डालने से धान की फसल में ज्यादा कल्ले निकलेंगे तो ज्यादा बालियां आएंगी. एक तरह से कहा जाए तो वानस्पतिक वृद्धि में मददगार होती है. उसमें नाइट्रोजन होता है. जितने ज्यादा कल्ले निकलेंगी उतनी बालियों की संख्या बढ़ेगी. नाइट्रोजन आवश्यक तत्वों में से एक माना जाता है. धान की जो वानस्पतिक वृद्धि होती है, उसमें प्रारंभिक अवस्था में नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. रोपाई के बाद कम से कम तीन बार एक तय समय में यूरिया देना होता है.
किसान परेशान, व्यवस्था सुधारने की जरूरत
भारतीय किसान संघ के जिलाध्यक्ष भानुप्रताप सिंह कहते हैं कि धान की फसल रोपने के बाद यूरिया की दो से तीन बार तो जरूरत पड़ती ही है, लेकिन विडंबना ये है कि जब रोपा लगाते समय डीएपी खाद की जरूरत थी, तब सरकारी व्यवस्था में यूरिया उपलब्ध थी और डीएपी नहीं थी, अब जब यूरिया खाद की जरूरत है तो सरकारी व्यवस्था में डीएपी तो उपलब्ध है, लेकिन यूरिया नहीं है.
भानुप्रताप सिंह ने आगे कहा कि समझ में नहीं आता कि जब प्रशासन को मालूम है कि हमारे जिले में इतनी यूरिया की जरूरत पड़ेगी, लेकिन यूरिया आती तो है लेकिन जब किसानों को जरूरत होती है तो उसके 15 दिन बाद आती है. तब तक आधे किसान ब्लैक में खरीद चुके होते हैं. ये व्यवस्था 15 दिन बाद की होती है. अगर ये 15 दिन के पहले हो जाये तो ज्यादा अच्छा है. दो दिन पहले की बात है, करीब 265 रुपए की यूरिया खाद की बोरी आती है, जो 500 रुपए प्रतिबोरी भी किसानों ने खरीदा है.
बुधवार तक 307 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध
कृषि विभाग के उपसंचालक आरपी झारिया कहते हैं कि 307 मीट्रिक टन यूरिया बुधवार को फिर आया है. यह धीरे-धीरे सभी समितियों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संबंधित किसान अपने नजदीकी शासकीय समितियों से इसका उठाव करा सकते हैं.
यूरिया की कमी नहीं है : जिला विपणन अधिकारी
यूरिया खाद की किल्लत को लेकर जिला विपणन अधिकारी वासुदेव तिवारी का कहना है, कि जिले में यूरिया की कोई भी कमी नहीं है, जैसे-जैसे स्टॉक की जरूरत पड़ रही है, वैसे-वैसे स्टॉक आ रहा है, ये जरूर है कि अधिक स्टॉक नहीं है परंतु कमी भी नहीं है. शहडोल जिले में 35 सौ का लक्ष्य था, जिसमें 6,627 टन यूरिया हमने उपलब्ध करा दिया है. उमरिया जिले में 2 हजार का लक्ष्य था, 2,510 टन उपलब्ध करा दिया, और अनूपपुर जिले में 25 सौ का लक्ष्य था वहां 2,978 करा दिया है.