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'कोरोना काल' में भाइयों की कलाई में रक्षा की डोर कैसे बांधेंगी बहनें, शहडोल में बसों के पहिए 'गोल'

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Published : Aug 2, 2020, 11:40 AM IST

भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन इस साल तीन अगस्त को मनाया जाएगा है, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से रक्षाबंधन के त्योहार पर भी ग्रहण लग गया है. क्योंकि बसें और ट्रेनों के पहिए थमे हुए हैं. ऐसे में भाई बहनों को एक दूसरे के पास जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. जिसकी वजह से त्योहार का उत्सव फीका पड़ता दिखाई दे रहा है.

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डिजाइन फोटो

शहडोल। कोरोना वायरस की वजह से सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया है. जिसका असर रोजमार्रा के साथ ही त्योहारों पर भी दिख रहा है. भाई-बहन के अटूट रिश्ते को समर्पित त्योहार रक्षाबंधन 3 अगस्त को मनाया जाएगा, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण की वजह से बसें और ट्रेनों के पहिए थमे हुए हैं. ऐसे में आसपास के जिलों में रहने वाले भाई बहन कैसे आना-जाना कर सकेंगे. इस स्थिति में जिन के पास खुद के वाहन हैं, वे तो एक-दूसरे के घर आसानी से जा सकेंगे, लेकिन जिनके लिए बसें और ट्रेनें ही साधन हैं उनका उत्सव फीका पड़ता दिखाई दे रहा है.

राखी का उत्साह पड़ा फीका

न बस चल रही, न ट्रेन

कोरोना काल में जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई तो सरकारी आदेशों के बाद बसों का संचालन बंद कर दिया गया, लेकिन जब अनलॉक की शुरुआत हुई तो बसों के संचालन की अनुमति भी तय नियम और शर्तों के साथ शासन ने दे दी.

उसके बाद भी जिले में अब तक बसों का संचालन शुरू नहीं हो सका है. लॉकडाउन के शुरुआत के साथ ही ट्रेनों का संचालन भी बंद कर दिया गया था. उसके बाद देशभर में कई ट्रेनें शुरू की जा चुकी हैं, लेकिन शहडोल जिले से होकर एक भी ट्रेन अब तक नहीं गुजर रही है. आलम यह है कि लोगों को कम दूरी के लिए भी आने जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. रक्षाबंधन और कजलियां के त्योहार आ जाने के बाद तो इस आदिवासी अंचल के लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. एक तरह से कहा जाए तो इस कोरोना काल ने त्योहार को भी फीका कर दिया है.

कोरोना काल में कैसे भाइयों की कलाई में रक्षा की डोर बांधेंगी बहनें

त्योहार के समय में भी बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन में सन्नाटा पसरा हुआ है. रक्षाबंधन और कजलियां का त्योहार आदिवासी अंचल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और इस समय में लोग बस या फिर ट्रेन से आवागमन करते थे, लेकिन इस बार सब बेकार है, क्योंकि जिले में न तो बस चल रही न ट्रेन, आखिर जाएं तो जाएं कैसे.

आवागमन के लिए बस एक बड़ा माध्यम

शहडोल जिला आदिवासी जिले के अंतर्गत आता है और यहां आज भी आवागमन के लिए बस का ही अधिकतर इस्तेमाल किया जाता है. जिनके पास आने जाने के लिए पर्सनल कोई साधन नहीं है. वह बस से ही सफर करते हैं और रक्षाबंधन के त्योहार के समय तो बसों की भीड़ देखते ही बनती थी, लेकिन इस कोरोना काल में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है. जिले में ना तो बसों का संचालन हो रहा है और न ही आवागमन के लिए यात्रियों के पास कोई साधन है.

आदेश के बाद भी क्यों थमे हैं बसों के पहिए

जब सरकार ने ये आदेश जारी कर दिया है कि बसों का संचालन किया जा सकता है फिर भी जिले में बसों के पहिये थमे हुए हैं. बस ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष भागवत प्रसाद गौतम का कहना है कि सरकार के आदेश के बाद विगत 22 मार्च से बसों का संचालन बंद है. उनका कहना है कि शासन की बेरुखी के कारण शासन के उदासीन रवैए के कारण हम लोगों के मांगों पर किसी भी तरह का कोई निराकरण नहीं किया जा रहा है. जिस वजह से हम लोग बस न चलाने के लिए मजबूर हैं. उसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ रहा है. उनका कहना है कि शासन और प्रशासन को चाहिए कि हमारी मांगों का निराकरण वह जल्द से जल्द कर दें ताकि हम लोग बसों का संचालन सुचारू रूप से कर सकें.

शहडोल। कोरोना वायरस की वजह से सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया है. जिसका असर रोजमार्रा के साथ ही त्योहारों पर भी दिख रहा है. भाई-बहन के अटूट रिश्ते को समर्पित त्योहार रक्षाबंधन 3 अगस्त को मनाया जाएगा, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण की वजह से बसें और ट्रेनों के पहिए थमे हुए हैं. ऐसे में आसपास के जिलों में रहने वाले भाई बहन कैसे आना-जाना कर सकेंगे. इस स्थिति में जिन के पास खुद के वाहन हैं, वे तो एक-दूसरे के घर आसानी से जा सकेंगे, लेकिन जिनके लिए बसें और ट्रेनें ही साधन हैं उनका उत्सव फीका पड़ता दिखाई दे रहा है.

राखी का उत्साह पड़ा फीका

न बस चल रही, न ट्रेन

कोरोना काल में जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई तो सरकारी आदेशों के बाद बसों का संचालन बंद कर दिया गया, लेकिन जब अनलॉक की शुरुआत हुई तो बसों के संचालन की अनुमति भी तय नियम और शर्तों के साथ शासन ने दे दी.

उसके बाद भी जिले में अब तक बसों का संचालन शुरू नहीं हो सका है. लॉकडाउन के शुरुआत के साथ ही ट्रेनों का संचालन भी बंद कर दिया गया था. उसके बाद देशभर में कई ट्रेनें शुरू की जा चुकी हैं, लेकिन शहडोल जिले से होकर एक भी ट्रेन अब तक नहीं गुजर रही है. आलम यह है कि लोगों को कम दूरी के लिए भी आने जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. रक्षाबंधन और कजलियां के त्योहार आ जाने के बाद तो इस आदिवासी अंचल के लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. एक तरह से कहा जाए तो इस कोरोना काल ने त्योहार को भी फीका कर दिया है.

कोरोना काल में कैसे भाइयों की कलाई में रक्षा की डोर बांधेंगी बहनें

त्योहार के समय में भी बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन में सन्नाटा पसरा हुआ है. रक्षाबंधन और कजलियां का त्योहार आदिवासी अंचल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और इस समय में लोग बस या फिर ट्रेन से आवागमन करते थे, लेकिन इस बार सब बेकार है, क्योंकि जिले में न तो बस चल रही न ट्रेन, आखिर जाएं तो जाएं कैसे.

आवागमन के लिए बस एक बड़ा माध्यम

शहडोल जिला आदिवासी जिले के अंतर्गत आता है और यहां आज भी आवागमन के लिए बस का ही अधिकतर इस्तेमाल किया जाता है. जिनके पास आने जाने के लिए पर्सनल कोई साधन नहीं है. वह बस से ही सफर करते हैं और रक्षाबंधन के त्योहार के समय तो बसों की भीड़ देखते ही बनती थी, लेकिन इस कोरोना काल में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है. जिले में ना तो बसों का संचालन हो रहा है और न ही आवागमन के लिए यात्रियों के पास कोई साधन है.

आदेश के बाद भी क्यों थमे हैं बसों के पहिए

जब सरकार ने ये आदेश जारी कर दिया है कि बसों का संचालन किया जा सकता है फिर भी जिले में बसों के पहिये थमे हुए हैं. बस ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष भागवत प्रसाद गौतम का कहना है कि सरकार के आदेश के बाद विगत 22 मार्च से बसों का संचालन बंद है. उनका कहना है कि शासन की बेरुखी के कारण शासन के उदासीन रवैए के कारण हम लोगों के मांगों पर किसी भी तरह का कोई निराकरण नहीं किया जा रहा है. जिस वजह से हम लोग बस न चलाने के लिए मजबूर हैं. उसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ रहा है. उनका कहना है कि शासन और प्रशासन को चाहिए कि हमारी मांगों का निराकरण वह जल्द से जल्द कर दें ताकि हम लोग बसों का संचालन सुचारू रूप से कर सकें.

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