शहडोल। सावन महीना आते ही शिवालयों में शिव भक्तों की लंबी कतार लग जाती है. शिवभक्त सावन महीने में भगवान भोलेनाथ को खुश करने में लगे रहते हैं, जिसके लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. पूजा पाठ करते हैं. मंत्र उच्चारण करते हैं. सावन महीने में विशेष तौर पर शिवजी के ऊपर बेलपत्र चढ़ाया जाता है. आखिर क्या वजह है कि भगवान शिव पर उनके भक्त पूजा पाठ के दौरान बेलपत्र अर्पण करते हैं. आखिर इसके पीछे की कथा क्या है. बेलपत्र चढ़ाने से किस तरह के फायदे मिलते हैं.
भक्तों को मिलता है यश, कीर्ति और वैभव
पंडितों, विद्वानों की मानें तो ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ सावन महीने में बेलपत्र चढ़ाने से जल्दी प्रसन्न होते हैं. ऐसा करने वाले उनके भक्तों को यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है. उनके पाप कट जाते हैं. सावन महीने में शिव और बेलपत्र को लेकर पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री ने बताई हैं कुछ अहम बातें, आप भी जानें.
जानें क्यों खास है तीन पत्तियों वाला बेलपत्र
सावन, शिव और बेलपत्र को लेकर पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं कि शिवजी के ऊपर बेलपत्र इसलिए चढ़ाए जाते हैं, क्योंकि साल में 12 महीने होते हैं, उसमें श्रावण मास, कार्तिक, बैशाख विशेष रूप से यह पवित्र महीने माने जाते हैं. उसमें सावन सबसे पवित्र महीना माना गया है.
श्रावण मास में ही शिवजी की पूजा होती है. भगवान शिव पर जो बेलपत्र चढ़ता है, वह बहुत ही पवित्र होता है. उन्होंने बताया कि बेलपत्र में तीन देवों का वास होता है- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. बेलपत्र में एक साथ तीनों ही देवताओं का मिलन होता है. यही कारण है कि बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं. महादेव पर बेलपत्र चढ़ाने से सारे पाप कट जाते हैं. बेलपत्र अक्सर तीन पत्तियों वाला ही शुभ माना गया है. उसी को चढ़ाया जाता है.
बेलपत्र चढ़ाने का फायदा
पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बेलपत्र के बारे में बताते हैं कि शिव जी के ऊपर अखंड बेलपत्र चढ़ाने जिसकी गिनती न हुई हो, या फिर एक करोड़ कन्याओं का विवाह करा दें. ऐसे में विवाह का जो फल मिलता है. वही फल शिवजी के ऊपर श्रावण मास में बेलपत्र चढ़ाने से मिलता है. मन को शांति मिलती है और जो भी जाने अनजाने में पाप हो जाते हैं. वह बेलपत्र चढ़ाने से कट जाते हैं.
ऐसा करने वालों पर नहीं पड़ती शनि की दृष्टि
सुशील शास्त्री ने एक कथा का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार शिव जी कैलाश पर्वत से माता पार्वती के साथ भ्रमण करने जा रहे थे. उधर से शनि देवता भी आ रहे थे. दोनों का आमना-सामना हुआ. शिवजी रास्ता काटना नहीं चाहते थे. उधर, शनिदेव भी रास्ता नहीं काटना चाहते थे. शनिदेव पूछ बैठे कि आप कहां जा रहे हैं प्रभु. शिव जी बोले कि आप के दर्शन करने जा रहे हैं. शिव जी ने जब शनिदेव से पूछा कि आप कहां जा रहे हैं. तब शनिदेव बोले कि हम भी आपके दर्शन के लिए जा रहे हैं, लेकिन सामने दृष्टि पड़ जाने से आपका सावन के महीने में अनर्थ होगा.
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इसके बाद भगवान शिव और पार्वती आगे बढ़े. पार्वती के बाध्य करने पर शिवजी ने एक माह के लिए जल समाधि ले ली. जल के अंदर छिपकर ऊपर से बेलपत्र रख लिया. जब एक महीना हो गया तो भगवान शिव बाहर निकलें. देवी पार्वती बोलीं कि प्रभु शनिदेव ने तो कुछ नहीं बिगाड़ा, जबकि उन्होंने अनर्थ होने की बात कही थी.
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शिव जी बोले कि चलो शनिदेव के घर चलें. जब शनिदेव से यही सवाल किया तो उन्होंने कहा कि अगर अनर्थ न हुआ होता, तो एक महीने के लिए आप जल के अंदर प्रवेश न किए होते. शिवजी ने गुस्से में आकर तीसरा नेत्र खोल दिया. जैसे ही जलाने की कोशिश की तो शनिदेव डर गए और बोले हे प्रभु, आप कोई भी वचन मांग लीजिए. मैं पूरा करूंगा.
भोलेनाथ बोले- सावन के महीने में जो शिव के ऊपर जल चढ़ाए, बेलपत्र, धतूर का फूल और मदार का फूल चढ़ाए उसके ऊपर एक वर्ष तक शनिदेव आप अपनी दृष्टि नहीं डालेंगे. शनि देवता ने शिव को दिए उस वचन को माना. शनिदेव ने वचन दिया कि सावन माह में जो भी भक्त जल और बेलपत्र चढ़ाएगा, उसके ऊपर एक वर्ष तक दृष्टि नहीं डालेंगे.