शहडोल। अभी हाल ही में जब केंद्रीय बजट पेश किया गया तो उसमें किसानों के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई. पिछले बजट में भी जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई थी. लेकिन सवाल यही है कि जब इतना जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रावधान किया जा रहा है. फिर भी किसान जैविक खेती की ओर क्यों नहीं आ रहा? आखिर जमीनी स्तर पर किसानों की किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं और क्या कागजों में और बातों में ही जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, या फिर वास्तविकता कुछ और ही है.
जानिए जिले में जैविक खेती का हाल
आत्मा के परियोजना संचालक आरपी झारिया बताते हैं कि शहडोल जिले में वर्तमान में 10 से 15 प्रतिशत रकबे पर रवि सीजन में जैविक खेती की गई है. जिले में अलसी और सरसों की फसल में किसान बहुत कम रासायनिक खाद इस्तेमाल करते हैं, और जैविक खेती करते हैं (organic farming in Shahdol) . देखा जाए तो शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, पहले यहां पर ज्यादातर किसान जीरो बजट खेती किया करते थे या यूं कहें कि जैविक खेती किया करते थे, लेकिन जब रासायनिक खाद का दौर आया और किसान इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, इसके बाद अब वह जैविक खेती की ओर फिर से वापसी नहीं कर रहे हैं.
किसानों ने बताई समस्या
शहडोल में खरीफ सीजन रबी सीजन में सब्जियों की फसल लगाई जाती है. इन दिनों यहां के किसान विकसित खेती भी काफी कर रहे हैं. पहले ज्यादातर किसान जीरो बजट खेती और जैविक खेती करते थे. रासायनिक खाद का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करते थे, लेकिन जैसे-जैसे रासायनिक खादों का दौर आया यहां के किसानों ने भी रासायनिक खाद का इस्तेमाल सीखा. अब आलम यह है कि एक ओर सरकार जैविक खेती की ओर किसानों को प्रोत्साहित करने की बात कहती है, वहीं दूसरी ओर किसान अब रासायनिक खाद छोड़ना नहीं चाह रहा है.
किसानों से ईटीवी भारत ने की बात
रासायनिक खाद के इस्तेमाल करने की वजह जानने के लिए जब ईटीवी भारत ने किसानों से बात की, तो किसानों का कहना था कि सरकार जैविक खेती की बात तो करती है, लेकिन उसे ऊंचे दाम पर खरीदने की बात कोई नहीं करता. खेत सारे रासायनिक खाद के लायक हो चुके हैं, रासायनिक खाद में उत्पादन ज्यादा होता है. वहीं जैविक खाद में कम उत्पादन होता है. हालांकि फसल गुणवत्तापूर्ण होती है. किसानों का कहना है कि रासायनिक खाद वाली फसल और जैविक फसल एक ही दाम पर खरीदा जाता है. उसके लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है.(Provision made to promote organic farming)
कई किसानों को जैविक खेती के सर्टिफिकेशन का पता नहीं
किसानों का कहना है की अगर सरकार को जैविक खेती की ओर हमें प्रोत्साहित करना है तो, जैविक उत्पाद से जो गुणवत्ता युक्त उत्पाद तैयार होता है उसे खरीदने और बेचने के लिए अलग व्यवस्था करनी चाहिए. जैविक फसल का दाम भी अलग होना चाहिए, इसके अलावा जैविक खेती के सर्टिफिकेशन का नियम भी थोड़ा सरल होना चाहिए, जिससे उनकी फसल प्रामाणित हो सके. किसान भइया लाल बताते हैं कि यहां के अधिकतर किसानों को जैविक खेती के सर्टिफिकेशन का पता नहीं है. उन्हें यह नहीं पता की ये होता क्या है, और कैसे होता है.
जानिए एक्सपर्ट ने क्या कहा ?
कृषि एक्सपर्ट अखिलेश नामदेव बताते हैं कि जैविक खेती को लेकर बजट में लगातार प्रावधान किया जा रहा है. लेकिन इसे लेकर किसानों को प्रोत्साहित करना भी जरुरी है. जैविक खेती जो किसान करता है वह ज्यादातर लघु और सीमांत श्रेणी का किसान है. उसको उत्पाद का सही मूल्य मिल नहीं पा रहा है. कृषि एक्सपर्ट अखिलेश का कहना है कि यह जो जैविक खेती की बात कही जा रही है यह केवल पेपर स्तर पर दिखाई देती है. जमीनी स्तर पर कुछ भी नजर नहीं आता. जमीनी स्तर पर किसानों को विशेष सुविधा कोई भी उपलब्ध नहीं है.
जिले में 5 से 10 प्रतिशत किसान ही जैविक खेती कर रहा है, लेकिन उस उत्पाद का जो सही मूल्य है वह नहीं मिल रहा है. उसे भी रासायनिक खेती से होने वाले फसल की तरफ ही अपना उत्पाद बेचना पड़ता है. जो किसान जैविक खेती कर रहे हैं उसके लिए उन्हें रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है. प्रामाणिकता के लिए यहां आस-पास कोई संस्थान नहीं है. यह संस्थान बड़े जगहों पर हैं, जैसे दिल्ली, हैदराबाद या फिर भोपाल में. इतना कठिन नियम को किसान सहज रूप से अपना नहीं पाते हैं. इसका परिणाम होता है कि जैविक खेती करने वाले किसान को सही दाम भी नहीं मिल पाता है.
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जानिए जैविक खेती के लिए कैसे होता है रजिस्ट्रेशन?
आत्मा विभाग के परियोजना संचालक आरपी झारिया बताते हैं कि जो किसान भाई जैविक खेती करते हैं और वह रजिस्ट्रेशन करवाना चाहते हैं, वो एमपी सोका, पीजीएसइंडिया, एपीडा, इनसे संपर्क करें. इसके बाद वह कृषि विभाग से संपर्क करके जितने रकबे में जैविक खेती का पंजीयन कराना है वह बताएं. इसमें बफर जोन बनाया जाता है, और उसमें 1 साल में जो जैविक खेती हो जाती है उसके बाद उसके अगले साल से उसका प्रमाणीकरण होता है. इसके लिए ब्लॉक लेवल में जो कृषि विभाग के कार्यालय हैं, वहां से भी संपर्क करके किया जा सकता है. इन विभागों से डायरेक्ट करके भी संपर्क करके किया जा सकता है. इसके अलावा एमपी ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भी कराया जा सकता है.