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विल्पुत हो रहा है यह चमत्कारी पेड़, औषधिय गुणों को जानकर रह जाएंगे हैरान

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Published : Nov 22, 2021, 11:32 AM IST

शहडोल जिले में हर्रा के पेड़ अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. यह पेड़ औषधिय क्षेत्र में बहुत कारगर है. ऐसे में इसका विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है.

harra ka ped
हर्रा का पेड़

शहडोल (shahdol news)। कहने को तो प्रकृति ने हमें कई ऐसे उपहार दिए हैं, जिनके बारे में करीब से जानने के बाद आप खुद ही आश्चर्य में पड़ जाएंगे. जिन पेड़ों को अब तक आप यूं ही माना करते थे, वह पेड़ वाकई में मानव जीवन के लिए कितने चमत्कारी हैं. ये पेड़ प्रकृति का एक बड़ा उपहार हैं.

हम बात कर रहे हैं हर्रा के पेड़ की, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. आपको पता है अब ये पेड़ भी अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ रहा है. अगर वक्त रहते इसे संरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले वक्त में औषधीय महत्व का यह पेड़ विलुप्त भी हो सकता है.

अस्तिव की लड़ाई लड़ रहा हर्रा का पेड़

बड़े काम का हर्रा
देखा जाए तो जिले में आज भी हर्रा के पेड़ यदा-कदा पाए जाते हैं, लेकिन कभी यही हर्रा के पेड़ हर जगह बहुतायत में मिलते थे. तब बड़े ही आसानी से हर्रा ग्रामीणों को मिल जाया करता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब हर्रा को भी ढूंढना पड़ रहा है. आलम यह है कि कुछ युवाओं को तो अब ये पहचान में ही नहीं आता. युवा वर्ग ने इसका इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया है. इसे देखा ही नहीं है. हर्रा को हरीतकी एवं हरण के नाम से जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया चेबुला (terminalia chebula) है.

ढूंढे से भी नहीं मिलता हर्रा
पेड़-पौधों के बारे में रुचि रखने वाले ग्रामीण केशव कोल कहते हैं कि पहले हर्रा के पेड़ बहुतायत में थे, अब इन्हें ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. बदलते वक्त के साथ अब इनकी संख्या भी कम हो रही है. अब कहीं भी हर्रा के नए पड़े नहीं दिखते हैं, सिर्फ पुराने पेड़ ही मिलते हैं.

harra fruit
हर्रा का फल

हर्रा पर अस्तित्व का संकट
बायो डाइवर्सिटी एक्सपर्ट संजय पयासी कहते हैं कि हर्रा की बहुलता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हर्रा गांव का नाम हर्रा पेड़ के आधार पर ही पड़ा है, किसी समय यहां यह पेड़ बहुलता में मिलता था. उन्होंने कहा कि पहले के समय में गांव में जिन पेड़ों की बहुलता पाई जाती थी, गांव के नाम उन पेड़ों के आधार पर रख दिये जाते थे. शहडोल संभाग में कई ऐसे गांव मिल जाएंगे, जहां पेड़ों के आधार पर नाम रखे गए हैं.

संजय पयासी ने बताया कि एक समय था, जब शहडोल पूरे देश में त्रिफला चूर्ण का सबसे ज्यादा रॉ मैटेरियल सप्लाई करता था. हर्रा, बहेड़ा और आंवला यह तीनों ही बहुतायत में पाए जाते थे, लेकिन बढ़ती जनसंख्या की वजह से इन पेड़ों की संख्या कम हो गई है. हर्रा के पेड़ अब इक्का-दुक्का ही दिखते हैं, शहडोल संभाग में घूमने के बाद मेरा अनुमान है कि जो हर्रा हमारे यहां पाया जाता था उसका 10 से 15% ही बचा हुआ है.

आयुर्वेद में बड़ा इस्तेमाल
आयुर्वेद चिकित्सक अंकित नामदेव ने बताया कि हर्रा आयुर्वेद की बहुचर्चित और बहुत ही आवश्यक औषधि है. ये त्रिफला (हर्रा-बहेड़ा-आंवला) का एक घटक होता है. इन तीनों को एक सम मात्रा में मिला दिया जाए तो तीनों के चूर्ण को त्रिफला (trifala) कहा जाता है. आयुर्वेद में त्रिफला का महत्व उतना ही है कि बिना त्रिफला के कोई औषधि बन नहीं सकती. बहुत सारी औषधियों में बहुत सारे कल्पों में त्रिफला का उपयोग होना ही है.

पेट रोगों में है बहुत कारगर
स्वतंत्र रूप में हर्रा एक बहुत ही कारगर औषधि है. खासकर पेट संबंधी रोगों के लिए कब्जियत के लिए, कांस्टिपेशन के लिए हर्रा का एकल औषधि के रूप में बहुत उपयोग होता है. इसका चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा मे भोजन के बाद लेने से, बहुत अच्छी तरह से विरेचन होता है. पेट साफ होता है. पेट संबंधी रोगों के लिए तो ये रामबाण औषधि है.

लुटता जा रहा है कुदरत का ये खजाना! संभल गए तो ठीक, वरना पछताना होगा

गौर करने वाली बात है कि एक दौर ऐसा भी था जब संभाग में हर्रा के पेड़ की बहुलता होती थी और अब यह वक्त ऐसा है, जब इसकी प्रजाति ही संकट की स्थिति में आ चुकी है. ऐसे में अगर वक्त रहते इस चमत्कारी पेड़ को संरक्षित नहीं किया गया.

शहडोल (shahdol news)। कहने को तो प्रकृति ने हमें कई ऐसे उपहार दिए हैं, जिनके बारे में करीब से जानने के बाद आप खुद ही आश्चर्य में पड़ जाएंगे. जिन पेड़ों को अब तक आप यूं ही माना करते थे, वह पेड़ वाकई में मानव जीवन के लिए कितने चमत्कारी हैं. ये पेड़ प्रकृति का एक बड़ा उपहार हैं.

हम बात कर रहे हैं हर्रा के पेड़ की, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. आपको पता है अब ये पेड़ भी अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ रहा है. अगर वक्त रहते इसे संरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले वक्त में औषधीय महत्व का यह पेड़ विलुप्त भी हो सकता है.

अस्तिव की लड़ाई लड़ रहा हर्रा का पेड़

बड़े काम का हर्रा
देखा जाए तो जिले में आज भी हर्रा के पेड़ यदा-कदा पाए जाते हैं, लेकिन कभी यही हर्रा के पेड़ हर जगह बहुतायत में मिलते थे. तब बड़े ही आसानी से हर्रा ग्रामीणों को मिल जाया करता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब हर्रा को भी ढूंढना पड़ रहा है. आलम यह है कि कुछ युवाओं को तो अब ये पहचान में ही नहीं आता. युवा वर्ग ने इसका इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया है. इसे देखा ही नहीं है. हर्रा को हरीतकी एवं हरण के नाम से जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया चेबुला (terminalia chebula) है.

ढूंढे से भी नहीं मिलता हर्रा
पेड़-पौधों के बारे में रुचि रखने वाले ग्रामीण केशव कोल कहते हैं कि पहले हर्रा के पेड़ बहुतायत में थे, अब इन्हें ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. बदलते वक्त के साथ अब इनकी संख्या भी कम हो रही है. अब कहीं भी हर्रा के नए पड़े नहीं दिखते हैं, सिर्फ पुराने पेड़ ही मिलते हैं.

harra fruit
हर्रा का फल

हर्रा पर अस्तित्व का संकट
बायो डाइवर्सिटी एक्सपर्ट संजय पयासी कहते हैं कि हर्रा की बहुलता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हर्रा गांव का नाम हर्रा पेड़ के आधार पर ही पड़ा है, किसी समय यहां यह पेड़ बहुलता में मिलता था. उन्होंने कहा कि पहले के समय में गांव में जिन पेड़ों की बहुलता पाई जाती थी, गांव के नाम उन पेड़ों के आधार पर रख दिये जाते थे. शहडोल संभाग में कई ऐसे गांव मिल जाएंगे, जहां पेड़ों के आधार पर नाम रखे गए हैं.

संजय पयासी ने बताया कि एक समय था, जब शहडोल पूरे देश में त्रिफला चूर्ण का सबसे ज्यादा रॉ मैटेरियल सप्लाई करता था. हर्रा, बहेड़ा और आंवला यह तीनों ही बहुतायत में पाए जाते थे, लेकिन बढ़ती जनसंख्या की वजह से इन पेड़ों की संख्या कम हो गई है. हर्रा के पेड़ अब इक्का-दुक्का ही दिखते हैं, शहडोल संभाग में घूमने के बाद मेरा अनुमान है कि जो हर्रा हमारे यहां पाया जाता था उसका 10 से 15% ही बचा हुआ है.

आयुर्वेद में बड़ा इस्तेमाल
आयुर्वेद चिकित्सक अंकित नामदेव ने बताया कि हर्रा आयुर्वेद की बहुचर्चित और बहुत ही आवश्यक औषधि है. ये त्रिफला (हर्रा-बहेड़ा-आंवला) का एक घटक होता है. इन तीनों को एक सम मात्रा में मिला दिया जाए तो तीनों के चूर्ण को त्रिफला (trifala) कहा जाता है. आयुर्वेद में त्रिफला का महत्व उतना ही है कि बिना त्रिफला के कोई औषधि बन नहीं सकती. बहुत सारी औषधियों में बहुत सारे कल्पों में त्रिफला का उपयोग होना ही है.

पेट रोगों में है बहुत कारगर
स्वतंत्र रूप में हर्रा एक बहुत ही कारगर औषधि है. खासकर पेट संबंधी रोगों के लिए कब्जियत के लिए, कांस्टिपेशन के लिए हर्रा का एकल औषधि के रूप में बहुत उपयोग होता है. इसका चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा मे भोजन के बाद लेने से, बहुत अच्छी तरह से विरेचन होता है. पेट साफ होता है. पेट संबंधी रोगों के लिए तो ये रामबाण औषधि है.

लुटता जा रहा है कुदरत का ये खजाना! संभल गए तो ठीक, वरना पछताना होगा

गौर करने वाली बात है कि एक दौर ऐसा भी था जब संभाग में हर्रा के पेड़ की बहुलता होती थी और अब यह वक्त ऐसा है, जब इसकी प्रजाति ही संकट की स्थिति में आ चुकी है. ऐसे में अगर वक्त रहते इस चमत्कारी पेड़ को संरक्षित नहीं किया गया.

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