शहडोल। जिले का बाणगंगा मेला मैदान इन दिनों दुकानों से सजा हुआ है, चारों ओर अलग-अलग तरीके की दुकानें हैं, कहीं आकर्षक झूले लगे हैं तो कहीं पारंपरिक दुकानें लगी हैं. कहीं मटका व्यापारी अपनी दुकान सजा रखा है तो कहीं सिलबट्टा का व्यापारी सिलबट्टा बेच रहा है तो कहीं प्रदर्शनी लगी है तो कहीं पर जरूरत के दूसरे पारंपरिक सामानों का स्टाल लगा है. कुल मिलाकर साल 2023 में बाणगंगा मेला मैदान तैयार है लोगों के आगमन के लिए, जिस मेले का इंतजार यहां के लोगों को साल भर से बड़े बेसब्री से रहता था वो मेला इस बार बड़े ही उत्साह के साथ लगाया जा रहा है. पहले यह मेला 7 दिनों तक के लिए लगता था लेकिन इस बार 5 दिन का मेला लगाया जा रहा है.
लोगों को रहता है बेसब्री से इंतजार: इस बाणगंगा मेले का लोगों को बड़े ही बेसब्री से इंतजार रहता है. शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है ग्रामीण अंचल के लोग तो साल भर इस मेले का इंतजार करते हैं और जब यह मेला मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है तो 14 जनवरी से बढ़ चढ़कर लोग इस मेले में हिस्सा लेते हैं. जैसे-जैसे इस मेले के दिन बढ़ते हैं काफी संख्या में भीड़ भी बढ़ने लगती है. संभाग भर के लोग इस मेले में शामिल होने के लिए तो आते ही हैं साथ ही आसपास के क्षेत्रों मंडला, डिंडोरी, सतना, रीवा जैसे क्षेत्रों के भी कुछ लोग मेले का आनंद लेने के लिए पहुंचते हैं. क्योंकि यह मेला धार्मिक महत्व का मेला है इस मेले के साथ बाणगंगा कुंड में स्नान का महत्व भी जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से भी दूर दूर से लोग यहां मेले में पहुंचते हैं.
पहले आस्था की डुबकी, फिर मेले का आनंद: बाणगंगा मेला मैदान के पास ही है बाणगंगा कुंड. बाणगंगा कुंड का भी इस मेले से धार्मिक महत्व जुड़ा हुआ है बाणगंगा कुंड के पुजारी अभिषेक द्विवेदी बताते हैं कि ''मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी से लोग सुबह-सुबह ही इस बाणगंगा कुंड में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचने लगते हैं. साथ ही आसपास और जगहों के क्षेत्रों के लोग इस चमत्कारी कुंड में डुबकी लगाने के लिए आते हैं, फिर यहां दान पुण्य करते हैं और अब यह परंपरा बन गई है कि पहले बाणगंगा कुंड में लोग आस्था की डुबकी लगाएंगे, परिसर में पूजा पाठ करेंगे. बाणगंगा कुंड से ही लगा हुआ ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्व का विराट शिव मंदिर है जहां अद्भुत महादेव की शिवलिंग है जिसकी लोग पूजा करते हैं, दर्शन के बाद मेले का आनंद लेते हैं. यह भी एक वजह है कि मेले में दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और यह मेला धार्मिक महत्व का मेला बन जाता है''.
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बाहर से हर साल आते हैं व्यापारी: मेला शुरू होने से पहले मेला मैदान में झूलों की पेंच कस रहे मोहन से बात की तो वह बताते हैं कि वह इलाहाबाद से आए हैं और उत्तर प्रदेश के बांदा जिला के रहने वाले हैं. वह जगह-जगह मेले में जाते हैं. वह बताते हैं कि हर वर्ष इस मेला में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं. बाणगंगा मेला मैदान में अकसर अपने साथियों के साथ आकर यहां झूला लगाते हैं, मोहन बताते हैं कि यहां के मेला का एक अलग ही आनंद होता है.
सैकड़ों साल पुराना है मेला: शहडोल जिले का यह बाणगंगा मेला सैकड़ों साल पुराना मेला है. इतिहासकार रामनाथ परमार बताते हैं कि इस मेले की शुरुआत तत्कालीन रीवा महाराजा गुलाब सिंह ने 1895 में कराई थी. पहले इस मेले के प्रचार प्रसार के लिए गांव-गांव मुनादी बजवाई जाती थी. आज के दौर में इसका प्रचार-प्रसार भी डिजिटल हो गया है, धीरे-धीरे यह मेला बदलते वक्त के साथ इतना बदल गया कि पूरे संभाग का सबसे फेमस और बड़ा मेला बन गया जिसका इंतजार लोग बड़ी ही बेसब्री से साल भर करते हैं. हालांकि कोरोनावायरस ने इस मेले के हर साल लगने के क्रम को भी तोड़ दिया था, लेकिन अब एक बार फिर से यह मेला मैदान में सज रहा है, जिसे लेकर लोगों में उत्साह है, इतिहासकार बताते हैं कि पहले यह मेला 1 दिन से शुरू हुआ था लेकिन बढ़ते बढ़ते यह 7 दिन का हो गया हालांकि इस बार 5 दिन का ही मेला लगाया जा रहा है.
बाणकुंड का विशेष महत्व: इतिहासकार रामनाथ परमार बताते हैं कि जिस बाणगंगा कुंड में लोग स्नान करके मेला में शामिल होते हैं उस बाणगंगा कुंड का भी विशेष ऐतिहासिक धार्मिक महत्व है बाणगंगा कुंड का निर्माण पांडवों ने किया था और एक विशेष प्रयोजन के तहत अर्जुन ने बाण मारकर इस कुंड का निर्माण किया था और इसीलिए इस कुंड का पानी भी औषधीय महत्व का बताया जाता है आज भी जगह-जगह से लोग इस कुंड का पानी ले जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि इस कुंड के पानी को डाल देने मात्र से मवेशियों में होने वाला खुरपका रोग ठीक हो जाता है.