शहडोल। मध्य प्रदेश में सत्ता का सिकंदर कौन बनेगा, इसका फैसला 3 दिसंबर को होने जा रहा है. ईटीवी भारत आपको प्रदेश की उन 47 मैजिकल सीटों के बारे में बताने जा रहा है, जिन पर चुनाव से पहले सभी पार्टियों की नजर थी. इन्हें लुभाने के लिए सभी पार्टियों के दिग्गजों ने तरह-तरह के जतन किए, तो वही अब अब रिजल्ट के दिन सब की नजर इन सीटों पर टिकी होगी कि इस मैजिकल 47 सीटों पर कौन सी पार्टी बाजी मरती है. मतलब सबसे ज्यादा सीट कौन सी पार्टी जीतने में कामयाब होती है. सत्ता की चाभी तो यहीं से होकर जाती है.
एमपी में 47 सीटों का मैजिक: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के रिजल्ट का वक्त आ चुका है. 3 दिसंबर को सब के रिजल्ट सामने आ जाएंगे. एमपी में टोटल 230 विधानसभा सीट है. इसमें से 47 विधानसभा सीट ऐसी हैं, जो सिर्फ आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. यह सभी आदिवासी सीट मध्य प्रदेश में काफी अहम भी मानी जा रही हैं.
मैजिकल भी मानी जा रही है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इन 47 मैजिकल सीटों से ही होकर सत्ता तक पहुंचा जा सकता है. इसीलिए सभी पार्टियां इन सीटों को साधने में जुटी थीं.
(मध्य प्रदेश में आदिवासी आरक्षित 47 विधानसभा सीट आखिर क्यों मैजिकल मानी जाती है, और इन सीटों पर लीड करना मतलब सत्ता की चाभी हासिल करना क्यों माना जाता है. इसे ऐसे समझें.)
- साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 10 साल की कांग्रेस सरकार को भारतीय जनता पार्टी ने करारी हार दी थी और भारतीय जनता पार्टी ने पूरी बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई थी, तो उसमें आदिवासी सीटों पर बम्पर बढ़त का भी सबसे बड़ा रोल था, मध्य प्रदेश में साल 2003 में 40 आदिवासी सीट थीं, जिसमें से भारतीय जनता पार्टी ने 38 सीटों पर जीत हासिल की थी, और मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी.
- मध्य प्रदेश में साल 2008 में जब फिर से विधानसभा चुनाव हुए तो आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ गई. 40 सीट से बढ़कर अब यह संख्या 47 हो चुकी थी, और इस चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया. 47 आदिवासी सीटों में से 30 सीट भारतीय जनता पार्टी जीतने में कामयाब रही, इस चुनाव में कांग्रेस को महज 16 सीटों पर ही जीत मिली. इस तरह से भारतीय जनता पार्टी लगातार आदिवासी वोटर को साधने में कामयाब रही.
- 2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से जीत दर्ज की और इस चुनाव में मध्य प्रदेश के 47 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 31 सीट में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली. एक सीट इस चुनाव में कांग्रेस की कम हुई. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 15 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की.
- साल 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए और 15 साल के सूखे के बाद कांग्रेस ने जब सरकार बनाई तो यहां पर 47 आदिवासी सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी. बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली थी, और इस बार कांग्रेस की सरकार बनी. मतलब एक बार फिर से साल 2018 में जब सत्ता में उलट फेर हुआ और कांग्रेस की वापसी हुई तो यहां भी 47 सीटों का मैजिक ही देखने को मिला.
आदिवासियों को साधने सबने लगाया जोर: इस बार के चुनाव में मध्य प्रदेश में आदिवासियों को साधने के लिए सभी ने जोर लगाया. बीजेपी हो कांग्रेस हो सभी पार्टियों ने पूरा दमखम दिखाया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां शहडोल जिले के पकरिया गांव में आदिवासी वर्ग को साधने के लिए उनके साथ भोजन किया, अलग-अलग वर्ग के लोगों के साथ चौपाल लगाया.
बीजेपी के अमित शाह ने सतना में कोल समाज के महाकुंभ का आयोजन किया, तो वहीं कांग्रेस के राहुल गांधी ने आदिवासी बहुल इलाका शहडोल जिले के ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में आदिवासियों को साधने के हर जतन किये. वहीं कांग्रेस की प्रियंका गांधी के आदिवासी इलाकों में कई सभाएं कराई गई, कुल मिलाकर भाजपा हो कांग्रेस सभी पार्टी के नेताओं ने आदिवासियों को साधने की कोशिश की.
खुद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी आदिवासी समाज के बीच भोजन किया. एक तरह से इस बात का इल्म हर पार्टी को है कि मध्य प्रदेश में अगर सत्ता की चाबी हासिल करनी है तो आदिवासी सीटों पर बढ़त बनानी ही होगी. इसीलिए आदिवासियों को साधने के लिए इन पार्टियों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. ऐसे में अब सब की नजर है, 3 दिसंबर को रिजल्ट के दिन प्रदेश की इन 47 मैजिकल आदिवासी सीटों पर बाजी कौन मारेगा. आदिवासी वोटर्स का बड़ा तबका किधर जाएगा.
बता दें, मध्य प्रदेश के 230 विधानसभा सीटों में से भले ही 47 सीट आदिवासी आरक्षित सीट हैं. प्रदेश में आदिवासी वोटर्स का सीधा-सीधा 80 से 85 सीटों पर असर देखने को मिलता है.