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कुपोषण से जंग में बड़ी भूमिका निभा सकता है आदिवासी अंचल का जादुई अनाज 'कोदो'

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Published : Nov 14, 2020, 3:45 AM IST

राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है कि कोदो की फसल का दुबारा से उत्पादन किया जाए. जिसके बाद अब शहडोल जिले में कोदो का रकबा बढ़ा है. बता दें कि कोदो वह जादुई फसल है जो कुपोषण से लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. पढ़िए पूरी खबर...

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डिजाइन फोटो

शहडोल। क्या आप जानते हैं कि आदिवासी अंचल की परंपरागत खेती का नाम कोदो है. जिसे आदिवासी लोग पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में खेती में नए आयाम और नई विविधता आने के बाद किसानों का हाइब्रिड फसलों की ओर रुझान बढ़ा है, जिसके कारण किसानों ने कोदो की परंपरागत खेती को खत्म कर दिया था या उसे कम कर दिया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है कि कोदो की फसल का दोबारा से उत्पादन किया जाए, जिसके बाद अब शहडोल जिले में कोदो का रकबा बढ़ा है. बता दें कि कोदो वह जादुई फसल है जो कुपोषण से लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इसी कोदो कुटकी को पंच सितारा होटल में लोगों की थाली में ब्राउन राइस के नाम से परोसा जाता है.

आदिवासी अंचल का जादुई अनाज कोदो- जानिए इस रिपोर्ट

परंपरागत खेती की जगह हाइब्रिड बीज की खेती ने ली जगह

शहडोल जिला आदिवासी जिला है और यहां पर वैसे तो धान की खेती प्रमुखता से की जाती है, लेकिन कोदो की खेती भी एक दौर में बहुतायत में होती थी. समय बदला खेती करने का तरीका बदला, नए-नए संसाधन आए, नई किस्म के बीज आये, जिसके बाद धान की फसल में जहां पुराने धान की फसल की जगह हाइब्रिड धान की बीजों ने ले ली, वहीं नए नए हाइब्रिड बीजों के आगे कोदो कुटकी कहीं पीछे छूट गया था. लगातार कोदो कुटकी के फसल का रकबा घटता जा रहा था. आलम यह रहा कि सरकार को इसे प्रोत्साहित करने के लिए आगे आने आना पड़ा और और अब मौजूदा साल शहडोल जिले में कोदो कुटकी की खेती का रकबा बढ़ा है.

कोदो को ब्राउन राइस के नाम से जाना जाता है

आदिवासी अंचल में उगाए जाने वाले इस मोटे अनाज की कीमत पांच सितारा होटलों में बहुत ज्यादा है. पांच सितारा होटलों में तो लोगों की थाली में इसे ब्राउन राइस के नाम से परोसा जाता है इतना ही नहीं औषधीय तौर पर यह काफी महत्व रखता है, साथ ही यह खाने में काफी गुणकारी है. इसीलिए कहा जाता है कि कुपोषण की लड़ाई में कोदो इस आदिवासी अंचल में एक बड़ी भूमिका अदा कर सकता है.

Kodo
कोदो

रकबा बढ़ा है, हल्की मिट्टी में भी बंपर पैदावार

कृषि विभाग के उप संचालक आरपी झारिया कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि शहडोल में कोदो का रकबा बढ़ा है. आयुर्वेद डॉक्टर और अन्य डॉक्टर सेहत को ध्यान में रखते हुए कोदो के चावल खाने की सलाह देते हैं. जिसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन है. खासकर कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में रहता है. वहीं आरपी झारिया कहते हैं कि खरीफ के समय में किसान जिन जगहों को छोड़ देते हैं उन खेतों को छोड़े ना बल्कि उनकी जगह पर कोदो कुटकी की फसल लगाएं जिससे एक बंपर पैदावार ले सकते हैं. विगत सालों की तुलना में इस साल कोदो का रकबा जिले में बढ़ा है, पिछले साल कोदो कुटकी का रकबा, करीब 5 हजार 6 सौ हेक्टेयर था जो इस साल बढ़कर करीब 8 हजार 6 सौ हेक्टेयर रकबे में कोदो कुटकी की खेती की गई है.

थोड़ी सी जमीन पर ज्यादा फसल

आरपी झारिया आगे कहते हैं कि जो भी जमीन आपकी खाली छूट रही है. खरीफ के सीजन में वहां पर कोदो की फसल लगाएं. क्योंकि यह हल्के जमीन में भी बंपर पैदावार देता है और इसमें रोग व्याधि का भी बहुत ज्यादा प्रकोप नहीं होता है और अब तरह-तरह की प्रोसेसिंग मशीनें भी आ गई हैं. इसे समूह के तौर पर स्थापित करके किसान चावल निकाल सकते हैं और कम से कम 70 रुपए प्रति किलोग्राम चावल इसका बाजार में बहुत आसानी से बिक जाता है. इसकी मांग भी है और जैविक होने के कारण इसे बाहर भी भेज सकते हैं, जिसमें कृषि विभाग भी मदद करेगा.

कोदो जादुई अनाज, औषधीय से भरपूर

आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह कहते हैं कि कोदो और कुटकी दोनों ही औषधि तौर पर काफी महत्वपूर्ण है. इसे आसानी से पचाया जा सकता है सुपाच्य होता है. आज कल अलग-अलग तरह की एलर्जी पाई जाती है जिसमें कोदो काफी गुणकारी है. ग्लूटेन एलर्जी की बात जाए तो कोदो में यह भरपूर होती है जो अपने देश में विदेश में भी चर्चा का विषय है. वहां पर अगर कोदो की रोटी देते हैं. कोदो की रोटी को एक प्रकार से रोस्ट कर दिया जाता है जो फायदेमंद होता है. कोदो की जो जली हुई रोटी होती है. वह ग्लूटेन एलर्जी में फायदेमंद होती है.

पचाने में ज्यादा सहूलियत

कुपोषण में भी कोदो काफी कारगर है, कुपोषण भी दो तरह का होता है एक ज्यादा खाने से होता है और एक कम खाने से होता है हमारे यहां कम खाने से कुपोषण होता है जो मालन्यूट्रिशन होते हैं वह कम खाने से होता है. इसमें ज्यादातर महिला और शिशुओं को देखते हैं अगर इसमें हम देखें तो जो प्रोटीन कंटेंट होते हैं वह भी अच्छे पाए जाते हैं काफी होते हैं अगर इसके लड्डू आदि बनाए जाएं सोया के साथ में और इसमें अगर गुड़ मिलाकर दिए जाएं तो बहुत फायदेमंद होता है, इसका प्रोटीन आसानी से पच जाता है. जो बहुत फायदेमंद हो सकता है, कोदो में सबसे अच्छी बात यह है कि कार्बोहाइड्रेट कंटेंट प्रोटीन्स भी है. इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स देखें तो उसमें मैग्नीशियम भी बहुत अच्छी क्वालिटी में होता है. आंतों के लिए अच्छी होती है, एक तरह से कहा जाए तो कोदो कुटकी बहुत फायदेमंद होता है.

farmer
किसान

किसान बोले इसे बेचने सरकार बनाए कोई व्यवस्था

जुगवारी गांव के रहने वाले किसान होरी लाल जायसवाल कई एकड़ जमीन पर हर तरह की खेती करते हैं. मौजूदा साल होरी लाल जायसवाल ने भी अपने 20 एकड़ जमीन में किया हूं और यह पहला साल है जब इतने रकबे में सिर्फ कोदो की खेती किया हूँ और पैदावार भी अच्छी हुई है. फसल उनकी अच्छी है लेकिन वह इस बात को लेकर चिंतित है कि इतने बड़े रकबे में उन्होंने कोदो तो लगा लिया लेकिन अब उसे बेचेंगे. कहां क्योंकि सरकार तो इसे लेती नहीं है. खरीदी केंद्रों में इसकी बिक्री होती नहीं है और व्यापारियों को बेचने पर नुकसान होता है क्योंकि व्यापारी किसान से 8 से 12 किलो लेने की कोशिश करते हैं जिससे नुकसान होता है ऐसे में होरीलाल कहते हैं कि अगर सरकार इस फसल को खरीदने की भी व्यवस्था बनाए या कोई ऐसा रास्ता सुझाये जिससे किसान को कोदो की खेती करने के बाद उसकी मेहनत का सही दाम मिल सके तब तो अच्छा है नहीं तो यह फसल इस साल पहली बार और आखिरी बार भी हो सकता है.

किसानों को नहीं मिलते सही दाम

क्योंकि शासन ने इसका कोई रेट तो निर्धारित नहीं किया है. कोदो की फसल कटवा के मारकेट लेकर जाएंगे भी मार्केट में बेचते भी हैं तो इतनी सारी तादात में फसल को देखकर व्यापारी भी 8 से 12 किलो लेने की कोशिश करते हैं जिससे किसान को नुकसान होता है और आलम यह है कि इस महंगाई के दौर में जहां मजदूरी भी अच्छी खासी लग रही है और इतने बड़े रकबे की कटाई कराई जाती है तो ऐसे में मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो जाता है. किसानों का कहना है कि ऐसे में वह इतने बड़े रकबे में उसी की खेती क्यों न करें. जिसकी खरीदी खुद सरकार कर रही है और अगर सरकार खरीदी के लिए कोई बेहतर साधन बना देती है या व्यवस्था करा देती है तो इससे अच्छी फसल भी कोई नहीं है.

गौरतलब है कि शहडोल जिला आदिवासी जिला है और यहां कुपोषित बच्चों की भी कमी नहीं है. ऐसे में कुपोषण के खिलाफ जंग में कोदो जैसे अनाज एक बड़ा रोल अदा कर सकते हैं, या यूं कहें कि कोदो कुपोषण के खिलाफ जंग में एक बड़े ही हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. क्योंकि इनमें हर वह पौष्टिक तत्व पाये जाते है. जो कुपोषण के खिलाफ जंग में जीत दिला सकता है. बहरहाल इसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए. वहीं पांच सितारा होटलों में जिस तरह से इसे ब्राउन राइस और दूसरे लजीज खाद्य पदार्थों के तौर पर परोसे जा रहे हैं. इससे किसानों को भी अच्छे दाम मिल सकते हैं बशर्ते उन्हें भी सही रास्ता दिखाया जाए और सही मंच मिले.

शहडोल। क्या आप जानते हैं कि आदिवासी अंचल की परंपरागत खेती का नाम कोदो है. जिसे आदिवासी लोग पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में खेती में नए आयाम और नई विविधता आने के बाद किसानों का हाइब्रिड फसलों की ओर रुझान बढ़ा है, जिसके कारण किसानों ने कोदो की परंपरागत खेती को खत्म कर दिया था या उसे कम कर दिया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है कि कोदो की फसल का दोबारा से उत्पादन किया जाए, जिसके बाद अब शहडोल जिले में कोदो का रकबा बढ़ा है. बता दें कि कोदो वह जादुई फसल है जो कुपोषण से लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इसी कोदो कुटकी को पंच सितारा होटल में लोगों की थाली में ब्राउन राइस के नाम से परोसा जाता है.

आदिवासी अंचल का जादुई अनाज कोदो- जानिए इस रिपोर्ट

परंपरागत खेती की जगह हाइब्रिड बीज की खेती ने ली जगह

शहडोल जिला आदिवासी जिला है और यहां पर वैसे तो धान की खेती प्रमुखता से की जाती है, लेकिन कोदो की खेती भी एक दौर में बहुतायत में होती थी. समय बदला खेती करने का तरीका बदला, नए-नए संसाधन आए, नई किस्म के बीज आये, जिसके बाद धान की फसल में जहां पुराने धान की फसल की जगह हाइब्रिड धान की बीजों ने ले ली, वहीं नए नए हाइब्रिड बीजों के आगे कोदो कुटकी कहीं पीछे छूट गया था. लगातार कोदो कुटकी के फसल का रकबा घटता जा रहा था. आलम यह रहा कि सरकार को इसे प्रोत्साहित करने के लिए आगे आने आना पड़ा और और अब मौजूदा साल शहडोल जिले में कोदो कुटकी की खेती का रकबा बढ़ा है.

कोदो को ब्राउन राइस के नाम से जाना जाता है

आदिवासी अंचल में उगाए जाने वाले इस मोटे अनाज की कीमत पांच सितारा होटलों में बहुत ज्यादा है. पांच सितारा होटलों में तो लोगों की थाली में इसे ब्राउन राइस के नाम से परोसा जाता है इतना ही नहीं औषधीय तौर पर यह काफी महत्व रखता है, साथ ही यह खाने में काफी गुणकारी है. इसीलिए कहा जाता है कि कुपोषण की लड़ाई में कोदो इस आदिवासी अंचल में एक बड़ी भूमिका अदा कर सकता है.

Kodo
कोदो

रकबा बढ़ा है, हल्की मिट्टी में भी बंपर पैदावार

कृषि विभाग के उप संचालक आरपी झारिया कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि शहडोल में कोदो का रकबा बढ़ा है. आयुर्वेद डॉक्टर और अन्य डॉक्टर सेहत को ध्यान में रखते हुए कोदो के चावल खाने की सलाह देते हैं. जिसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन है. खासकर कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में रहता है. वहीं आरपी झारिया कहते हैं कि खरीफ के समय में किसान जिन जगहों को छोड़ देते हैं उन खेतों को छोड़े ना बल्कि उनकी जगह पर कोदो कुटकी की फसल लगाएं जिससे एक बंपर पैदावार ले सकते हैं. विगत सालों की तुलना में इस साल कोदो का रकबा जिले में बढ़ा है, पिछले साल कोदो कुटकी का रकबा, करीब 5 हजार 6 सौ हेक्टेयर था जो इस साल बढ़कर करीब 8 हजार 6 सौ हेक्टेयर रकबे में कोदो कुटकी की खेती की गई है.

थोड़ी सी जमीन पर ज्यादा फसल

आरपी झारिया आगे कहते हैं कि जो भी जमीन आपकी खाली छूट रही है. खरीफ के सीजन में वहां पर कोदो की फसल लगाएं. क्योंकि यह हल्के जमीन में भी बंपर पैदावार देता है और इसमें रोग व्याधि का भी बहुत ज्यादा प्रकोप नहीं होता है और अब तरह-तरह की प्रोसेसिंग मशीनें भी आ गई हैं. इसे समूह के तौर पर स्थापित करके किसान चावल निकाल सकते हैं और कम से कम 70 रुपए प्रति किलोग्राम चावल इसका बाजार में बहुत आसानी से बिक जाता है. इसकी मांग भी है और जैविक होने के कारण इसे बाहर भी भेज सकते हैं, जिसमें कृषि विभाग भी मदद करेगा.

कोदो जादुई अनाज, औषधीय से भरपूर

आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह कहते हैं कि कोदो और कुटकी दोनों ही औषधि तौर पर काफी महत्वपूर्ण है. इसे आसानी से पचाया जा सकता है सुपाच्य होता है. आज कल अलग-अलग तरह की एलर्जी पाई जाती है जिसमें कोदो काफी गुणकारी है. ग्लूटेन एलर्जी की बात जाए तो कोदो में यह भरपूर होती है जो अपने देश में विदेश में भी चर्चा का विषय है. वहां पर अगर कोदो की रोटी देते हैं. कोदो की रोटी को एक प्रकार से रोस्ट कर दिया जाता है जो फायदेमंद होता है. कोदो की जो जली हुई रोटी होती है. वह ग्लूटेन एलर्जी में फायदेमंद होती है.

पचाने में ज्यादा सहूलियत

कुपोषण में भी कोदो काफी कारगर है, कुपोषण भी दो तरह का होता है एक ज्यादा खाने से होता है और एक कम खाने से होता है हमारे यहां कम खाने से कुपोषण होता है जो मालन्यूट्रिशन होते हैं वह कम खाने से होता है. इसमें ज्यादातर महिला और शिशुओं को देखते हैं अगर इसमें हम देखें तो जो प्रोटीन कंटेंट होते हैं वह भी अच्छे पाए जाते हैं काफी होते हैं अगर इसके लड्डू आदि बनाए जाएं सोया के साथ में और इसमें अगर गुड़ मिलाकर दिए जाएं तो बहुत फायदेमंद होता है, इसका प्रोटीन आसानी से पच जाता है. जो बहुत फायदेमंद हो सकता है, कोदो में सबसे अच्छी बात यह है कि कार्बोहाइड्रेट कंटेंट प्रोटीन्स भी है. इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स देखें तो उसमें मैग्नीशियम भी बहुत अच्छी क्वालिटी में होता है. आंतों के लिए अच्छी होती है, एक तरह से कहा जाए तो कोदो कुटकी बहुत फायदेमंद होता है.

farmer
किसान

किसान बोले इसे बेचने सरकार बनाए कोई व्यवस्था

जुगवारी गांव के रहने वाले किसान होरी लाल जायसवाल कई एकड़ जमीन पर हर तरह की खेती करते हैं. मौजूदा साल होरी लाल जायसवाल ने भी अपने 20 एकड़ जमीन में किया हूं और यह पहला साल है जब इतने रकबे में सिर्फ कोदो की खेती किया हूँ और पैदावार भी अच्छी हुई है. फसल उनकी अच्छी है लेकिन वह इस बात को लेकर चिंतित है कि इतने बड़े रकबे में उन्होंने कोदो तो लगा लिया लेकिन अब उसे बेचेंगे. कहां क्योंकि सरकार तो इसे लेती नहीं है. खरीदी केंद्रों में इसकी बिक्री होती नहीं है और व्यापारियों को बेचने पर नुकसान होता है क्योंकि व्यापारी किसान से 8 से 12 किलो लेने की कोशिश करते हैं जिससे नुकसान होता है ऐसे में होरीलाल कहते हैं कि अगर सरकार इस फसल को खरीदने की भी व्यवस्था बनाए या कोई ऐसा रास्ता सुझाये जिससे किसान को कोदो की खेती करने के बाद उसकी मेहनत का सही दाम मिल सके तब तो अच्छा है नहीं तो यह फसल इस साल पहली बार और आखिरी बार भी हो सकता है.

किसानों को नहीं मिलते सही दाम

क्योंकि शासन ने इसका कोई रेट तो निर्धारित नहीं किया है. कोदो की फसल कटवा के मारकेट लेकर जाएंगे भी मार्केट में बेचते भी हैं तो इतनी सारी तादात में फसल को देखकर व्यापारी भी 8 से 12 किलो लेने की कोशिश करते हैं जिससे किसान को नुकसान होता है और आलम यह है कि इस महंगाई के दौर में जहां मजदूरी भी अच्छी खासी लग रही है और इतने बड़े रकबे की कटाई कराई जाती है तो ऐसे में मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो जाता है. किसानों का कहना है कि ऐसे में वह इतने बड़े रकबे में उसी की खेती क्यों न करें. जिसकी खरीदी खुद सरकार कर रही है और अगर सरकार खरीदी के लिए कोई बेहतर साधन बना देती है या व्यवस्था करा देती है तो इससे अच्छी फसल भी कोई नहीं है.

गौरतलब है कि शहडोल जिला आदिवासी जिला है और यहां कुपोषित बच्चों की भी कमी नहीं है. ऐसे में कुपोषण के खिलाफ जंग में कोदो जैसे अनाज एक बड़ा रोल अदा कर सकते हैं, या यूं कहें कि कोदो कुपोषण के खिलाफ जंग में एक बड़े ही हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. क्योंकि इनमें हर वह पौष्टिक तत्व पाये जाते है. जो कुपोषण के खिलाफ जंग में जीत दिला सकता है. बहरहाल इसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए. वहीं पांच सितारा होटलों में जिस तरह से इसे ब्राउन राइस और दूसरे लजीज खाद्य पदार्थों के तौर पर परोसे जा रहे हैं. इससे किसानों को भी अच्छे दाम मिल सकते हैं बशर्ते उन्हें भी सही रास्ता दिखाया जाए और सही मंच मिले.

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