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'काले हीरे' के लिए मौत के बंकर में घुसते लोग, ताक पर सुरक्षा व्यवस्था

शहडोल जिले में ऐसी कई खदानें है जिन्हें काफी समय पहले बंद किया जा चुका है. लेकिन बंद खदानों पर सरकार के कोई भी नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. इन खदानों पर सुरक्षा के किसी भी तरह के इंतजाम नहीं किए गए हैं और ना ही पर्यावरण को लेकर किसी प्रकार का ध्यान रखा जा रहा है. पढ़िए पूरी खबर....

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बंद खदानों के बंकरों में हो रहा अवैध खनन
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Published : Jan 5, 2021, 9:11 AM IST

Updated : Jan 5, 2021, 9:52 AM IST

शहडोल। शहडोल जिला पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों से भरा पूरा है, इस जिले में खनिज संपदा अकूत मात्रा में पाई जाती है. जिले में कोयले का भंडार है काफी तेजी के साथ जिले से कोयले का उत्पादन भी किया जा रहा है, पत्थर की खदान भी जिले में काफी तादाद में पाए जाते हैं तो वहीं मीथेन गैस भी यहां से निकाला जाता है. एक तरह से कहा जाए तो खनिज संसाधनों से भरा पड़ा है शहडोल जिला. लेकिन जिले में बंद पड़ी खदानें जनता और पर्यावरण के लिए कितनी सुरक्षित हैं, यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम इन खदानों तक पहुंची.

बंद खदानों के बंकरों में हो रहा अवैध खनन

खुले पड़े है बंद खदानों के बंकर

जब ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से 20 से 25 किलोमीटर दूर अमलाई बस्ती में पहुंची तो बीच सड़क धंसी हुई दिखाई दी तो वहीं दीवारों में काफी ज्यादा दरारें दिखाई दी. थोड़ा अंदर जाते ही छोटे-छोटे बंकर मिले, जहां शीतलहर के समय में भी इन गुफा रूपी गड्ढों से गर्म हवाओं के थपेड़े निकल रहे थे. जिससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंदर कोयले की खान है. जब उसके बारे में जानकारी ली तो पता चला कि आज भी लोग अवैध रूप से कोयला निकालने के लिए इस छोटे से गड्ढे से अंदर जाते हैं जबकि वह खदान अंडरग्राउंड है, और बंद हो चुकी है. गुफा रूपी दूसरे बंकर के बाहर कुछ लोगों की चप्पलें उतरे हुए भी दिखे, जिससे पता चलता है कि कोई ना कोई अंदर कोयले की खुदाई के लिए घुसा हुआ था.

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बंकरों में हो रहा अवैध खनन

खदानों में नहीं सुरक्षा के इंतजाम

बंकर से कुछ ही दूरी पर ओपन माइंस थी, जहां खुदाई करके यहां से कोयला निकाला जाता था, अब यह खदान बंद हो चुकी है. खदान के चारों तरफ चारों पहाड़ थे, जिन पर पेड़ पौधे भी लगे थे, पहाड़ों में वृक्षारोपण तो कर दिया गया था लेकिन अंदर एक बड़ा तालाब भी है. तालाब कितना गहरा है इसका अंदाजा नहीं लगा सकते, आसपास के लोगों से जब हमने पूछा तो उनका भी यही कहना था कि इन तालाबों में जानवर गिर कर मर जाते हैं और उनका कुछ पता नहीं चलता. यह तालाब हादसे को दावत दे रहा है. माइंस में इतना बड़ा गड्ढे को क्यों नहीं भरा गया और फिर भरा भी नहीं गया तो इसे सुरक्षात्मक तरीके से क्यों नहीं तैयार किया गया?

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सुरक्षा के नहीं कोई इंतजाम

खदानों में हो रही अवैध माइनिंग

जिले के मुरुम, बोल्डर, गिट्टी खदानों को पर्यावरण की सुरक्षा को देखते हुए बंद कर दिया गया है. लेकिन आज भी इन खदानों में अवैध तरीके से कार्य किया जाता है. खदानों को बंद जरूर कर दिया गया है लेकिन तय मापदंडों के मुताबिक जनता और पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे कभी भी हादसा हो सकता है.

माइनिंग ऑफिसर ने दी यह दलील

बंद खदानों को जनता और पर्यावरण के लिए कैसे सुरक्षित बनाने को लेकर माइनिंग ऑफिसर फरहत जहां ने बताया कि इसमें माइनिंग क्लोजर के तहत कार्य किया जाता है. अगर एसईसीएल की खदानें हैं तो उसमें माइनिंग क्लोजर प्लान के तहत कार्रवाई होती है, जैसे बोल्डर गिट्टी खदान है तो उसमें भी माइनिंग क्लोजर प्लान के तहत ही कार्रवाई करते हैं. अगर उसमें कार्य हुआ है तो कोशिश की जाती है कि कुछ में तालाब बना दिए जाएं, जिससे हम उसे ग्राम पंचायत के हैंड ओवर कर वहां के मवेशी और जरूरतमंदों के काम आ सके. माइनिंग ऑफिसर फरहत जहां का कहना है कि माइनिंग क्लोजर के अंतर्गत जब हमारे पास स्वीकृति होकर आती है. अभी दो एप्लीकेशन एसईसीएल के साल 2005/06 में सबमिट किए हैं तो हमने उसमें अभी शासन को भेजा है. दो खदान हैं जिन्होंने सरेंडर किए हैं लेकिन अभी तक हमें सरेंडर आर्डर नहीं मिले हैं, अभी तक हमें कोई आदेश नहीं मिले हैं.

पर्याप्त संख्या में लगे हैं पेड़

क्षेत्रीय आधीकारी संजीव मेहरा कहते हैं जो खदानें खनन कार्य समाप्त की वजह से बंद की जाती हैं उन्हें जनता की सुरक्षा की दृष्टि से कार्यालय से जो नियमित रूप से फेसिंग वाइल्ड वायरिंग, फेसिंग लगाने के निर्देश जारी किए जाते हैं और यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनमें वाइल्ड वायरिंग, फेसिंग लगाई जाए. यह अलग बात है कि पाया गया कि कभी चोरिया असामाजिक तत्व कभी उसे अपने निहित स्वार्थों के कारण वाइल्ड वायरिंग फेसिंग की वायर को काट लेते हैं. लेकिन फिर भी हम दोबारा निर्देश देते रहते हैं कि संबंधित खदान प्रबंधक को कि वह फेसिंग लगाएं. जिससे जनता की सुरक्षा बनी रहे. जहां तक की पर्यावरण की सुरक्षा की बात है तो उनका जो एनवायरमेंट मैनेजमेंट प्लान तैयार होता है या उन्हें जो पर्यावरण स्वीकृति सक्षम अधिकारी से प्राप्त होती है जो 5 हेक्टेयर से अधिक जगह हैं उनको पर्यावरण स्वीकृति पहले से स्टेट लेवल पर्यावरण से प्राप्त होती है.

अधिकारी लगातार हर तरह के बंद खदानों को संतोषप्रद बता रहे हैं. जनता और पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि के मद्देनजर भी संतोषजनक करार दे रहे हैं. लेकिन वास्तविकता में यह बंद खदानों पर सरकार का कोई भी नियम लागू नहीं किया गया है. जहां अवैध तरीके से लगातार लोग खनन कर रहे हैं.

शहडोल। शहडोल जिला पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों से भरा पूरा है, इस जिले में खनिज संपदा अकूत मात्रा में पाई जाती है. जिले में कोयले का भंडार है काफी तेजी के साथ जिले से कोयले का उत्पादन भी किया जा रहा है, पत्थर की खदान भी जिले में काफी तादाद में पाए जाते हैं तो वहीं मीथेन गैस भी यहां से निकाला जाता है. एक तरह से कहा जाए तो खनिज संसाधनों से भरा पड़ा है शहडोल जिला. लेकिन जिले में बंद पड़ी खदानें जनता और पर्यावरण के लिए कितनी सुरक्षित हैं, यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम इन खदानों तक पहुंची.

बंद खदानों के बंकरों में हो रहा अवैध खनन

खुले पड़े है बंद खदानों के बंकर

जब ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से 20 से 25 किलोमीटर दूर अमलाई बस्ती में पहुंची तो बीच सड़क धंसी हुई दिखाई दी तो वहीं दीवारों में काफी ज्यादा दरारें दिखाई दी. थोड़ा अंदर जाते ही छोटे-छोटे बंकर मिले, जहां शीतलहर के समय में भी इन गुफा रूपी गड्ढों से गर्म हवाओं के थपेड़े निकल रहे थे. जिससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंदर कोयले की खान है. जब उसके बारे में जानकारी ली तो पता चला कि आज भी लोग अवैध रूप से कोयला निकालने के लिए इस छोटे से गड्ढे से अंदर जाते हैं जबकि वह खदान अंडरग्राउंड है, और बंद हो चुकी है. गुफा रूपी दूसरे बंकर के बाहर कुछ लोगों की चप्पलें उतरे हुए भी दिखे, जिससे पता चलता है कि कोई ना कोई अंदर कोयले की खुदाई के लिए घुसा हुआ था.

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बंकरों में हो रहा अवैध खनन

खदानों में नहीं सुरक्षा के इंतजाम

बंकर से कुछ ही दूरी पर ओपन माइंस थी, जहां खुदाई करके यहां से कोयला निकाला जाता था, अब यह खदान बंद हो चुकी है. खदान के चारों तरफ चारों पहाड़ थे, जिन पर पेड़ पौधे भी लगे थे, पहाड़ों में वृक्षारोपण तो कर दिया गया था लेकिन अंदर एक बड़ा तालाब भी है. तालाब कितना गहरा है इसका अंदाजा नहीं लगा सकते, आसपास के लोगों से जब हमने पूछा तो उनका भी यही कहना था कि इन तालाबों में जानवर गिर कर मर जाते हैं और उनका कुछ पता नहीं चलता. यह तालाब हादसे को दावत दे रहा है. माइंस में इतना बड़ा गड्ढे को क्यों नहीं भरा गया और फिर भरा भी नहीं गया तो इसे सुरक्षात्मक तरीके से क्यों नहीं तैयार किया गया?

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सुरक्षा के नहीं कोई इंतजाम

खदानों में हो रही अवैध माइनिंग

जिले के मुरुम, बोल्डर, गिट्टी खदानों को पर्यावरण की सुरक्षा को देखते हुए बंद कर दिया गया है. लेकिन आज भी इन खदानों में अवैध तरीके से कार्य किया जाता है. खदानों को बंद जरूर कर दिया गया है लेकिन तय मापदंडों के मुताबिक जनता और पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे कभी भी हादसा हो सकता है.

माइनिंग ऑफिसर ने दी यह दलील

बंद खदानों को जनता और पर्यावरण के लिए कैसे सुरक्षित बनाने को लेकर माइनिंग ऑफिसर फरहत जहां ने बताया कि इसमें माइनिंग क्लोजर के तहत कार्य किया जाता है. अगर एसईसीएल की खदानें हैं तो उसमें माइनिंग क्लोजर प्लान के तहत कार्रवाई होती है, जैसे बोल्डर गिट्टी खदान है तो उसमें भी माइनिंग क्लोजर प्लान के तहत ही कार्रवाई करते हैं. अगर उसमें कार्य हुआ है तो कोशिश की जाती है कि कुछ में तालाब बना दिए जाएं, जिससे हम उसे ग्राम पंचायत के हैंड ओवर कर वहां के मवेशी और जरूरतमंदों के काम आ सके. माइनिंग ऑफिसर फरहत जहां का कहना है कि माइनिंग क्लोजर के अंतर्गत जब हमारे पास स्वीकृति होकर आती है. अभी दो एप्लीकेशन एसईसीएल के साल 2005/06 में सबमिट किए हैं तो हमने उसमें अभी शासन को भेजा है. दो खदान हैं जिन्होंने सरेंडर किए हैं लेकिन अभी तक हमें सरेंडर आर्डर नहीं मिले हैं, अभी तक हमें कोई आदेश नहीं मिले हैं.

पर्याप्त संख्या में लगे हैं पेड़

क्षेत्रीय आधीकारी संजीव मेहरा कहते हैं जो खदानें खनन कार्य समाप्त की वजह से बंद की जाती हैं उन्हें जनता की सुरक्षा की दृष्टि से कार्यालय से जो नियमित रूप से फेसिंग वाइल्ड वायरिंग, फेसिंग लगाने के निर्देश जारी किए जाते हैं और यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनमें वाइल्ड वायरिंग, फेसिंग लगाई जाए. यह अलग बात है कि पाया गया कि कभी चोरिया असामाजिक तत्व कभी उसे अपने निहित स्वार्थों के कारण वाइल्ड वायरिंग फेसिंग की वायर को काट लेते हैं. लेकिन फिर भी हम दोबारा निर्देश देते रहते हैं कि संबंधित खदान प्रबंधक को कि वह फेसिंग लगाएं. जिससे जनता की सुरक्षा बनी रहे. जहां तक की पर्यावरण की सुरक्षा की बात है तो उनका जो एनवायरमेंट मैनेजमेंट प्लान तैयार होता है या उन्हें जो पर्यावरण स्वीकृति सक्षम अधिकारी से प्राप्त होती है जो 5 हेक्टेयर से अधिक जगह हैं उनको पर्यावरण स्वीकृति पहले से स्टेट लेवल पर्यावरण से प्राप्त होती है.

अधिकारी लगातार हर तरह के बंद खदानों को संतोषप्रद बता रहे हैं. जनता और पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि के मद्देनजर भी संतोषजनक करार दे रहे हैं. लेकिन वास्तविकता में यह बंद खदानों पर सरकार का कोई भी नियम लागू नहीं किया गया है. जहां अवैध तरीके से लगातार लोग खनन कर रहे हैं.

Last Updated : Jan 5, 2021, 9:52 AM IST
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