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लॉकडाउन में किसानों को आखिर क्यों नहीं मिल रहे सब्जियों के दाम, पढ़ें पूरी खबर

लॉकडाउन ने पूरी तरह से अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है. वहीं हर साल गर्मी के सीजन में आसमान के भाव छूने वाली गर्मियां इस साल कौड़ियों के दाम में मिलने के बावजूद भी नहीं बिक रही हैं. आखिर क्या है वो वजह जो सब्जियों के दाम इतने कम हैं, पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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सब्जियां लॉक और दाम डाउन
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Published : Jun 7, 2020, 10:59 AM IST

Updated : Jun 7, 2020, 4:34 PM IST

शहडोल। हर साल गर्मी के सीजन में जहां आम आदमी को सब्जी खरीदने से पहले अपने पर्स में झांकना पड़ता था, वहीं इस साल सब्जी किसानों को जीवनयापन करने के लिए अपने पर्स में झांकना पड़ रहा है. जून का महीना चल रहा है और इस महीने हर साल सब्जियों के दाम आसमान पर रहते थे. भीषण गर्मी की वजह से हर साल सब्जी का उत्पादन घट जाता था और बाजार में माल कम हो जाता था, जिस वजह से मंडी में सब्जियों की आवक कम होती थी और उनके दाम काफी बढ़े रहते थे. लेकिन मौजूदा साल ऐसा नहीं है, इस साल सब्जियों के दाम पिछ्ले साल की अपेक्षा बहुत कम हैं. आखिर क्या है वो वजह जो सब्जियों के दाम इतने कम हैं, पढ़ें पूरी रिपोर्ट-

सब्जियां लॉक और दाम डाउन


ठेले में रखी ये हरी-हरी सब्जियां देखकर आपका मन भी इन्हें लेने का कर रहा होगा. इस साल सब्जी लेने से पहले आपको अपने पर्स में भी झांकने की जरुरत नहीं है, क्योंकि हर साल आसमान को छूने वाले इन सब्जियों के भाव इस साल इतने सस्ते हैं कि किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं.


सस्ती बिक रही सब्जी, ग्राहक की कमी

बता दें, हर साल की तुलना में इस साल सब्जियों की आवक फिलहाल एकदम से ज्यादा हो गई है. लॉकडाउन के कारण अभी तक सभी मंडिया थीं, लेकिन अनलॉक होते ही सभी किसान ज्यादा मात्रा में सब्जी लेकर मंडी पहुंच रहे हैं. इस वजह से इस साल सब्जियां की आवक ज्यादा हो गई है. वहीं कोरोना काल के कारण लोग ज्यादा बाहर नहीं आ रहे हैं और न हीं सब्जियां खरीद रहे हैं. जिस वजह से इस साल कौड़ियों के दाम पर भी सब्जियां नहीं बिक रही हैं.

10 रुपए किलो बिक रहे टमाटर-बैंगन-लौकी

फुटकर सब्जी व्यापारी दशरद पाटदर ने बताया कि इस साल ग्राहकों के नहीं आने और सब्जियों की ज्यादा आवक होने से सब्जियां सस्ती हैं. करेला महज 20 रुपए किलो, गिलकी 20 रुपए किलो, परवल 40 रुपए किलो, कद्दू 10 से 15 रुपए किलो, लौकी, टमाटर, बैंगन सब 10 रुपए किलो बिक रहा है. बीते साल इसी समय इन्हीं सब्जियों के दाम जितने अभी हैं उससे दोगुने हैं.

आवक ज्यादा, क्रय शक्ति कम

सब्जियों के थोक व्यापारी बताते हैं कि इस सीजन में सब्जियों के दाम कम होने की वजह है अभी लोगों के पास खरीदने की क्षमता नहीं हैं. दूसरे माल का प्रोडक्शन तो हुआ है लेकिन दुकानें उतनी नहीं लग रहीं. दुकानें ज्यादा न लगने की वजह से माल सबके पास पड़ा है. वहीं लोगों के पास पैसे नहीं है, मजदूर भी बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिस वजह से खरीददारी नहीं हो रही हैं. एक तरह से कहें तो सब्जी की सप्लाई ज्यादा है लेकिन डिमांड कम है जिसके चलते दाम भी कम हैं.

किसान लाचार, कुछ फेंक रहा, कुछ बेंच रहा

किसान मोहन पटेल कई साल से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं. वे 15 से 20 एकड़ जमीन में सब्जी की खेती करते हैं और बाजार में बेचते हैं, लेकिन इस साल उन्हें बहुत नुकसान हुआ है. मई-जून में ज्यादा सब्जी की खेती इसलिए करते हैं क्योंकि इस सीजन में सब्जियों के दाम ज्यादा होते हैं, जिससे कमाई ज्यादा होती है. लेकिन इस साल सब्जी किसानों को नुकसान ही नुकसान हुआ है.

ये भी पढ़ें- अच्छी कमाई की आस में उगाई फसल हो रही चौपट, लॉकडाउन ने तोड़े अन्नदाता के सपने

वहीं कमलेश पटेल बताते हैं कि पहले ओला ने उनके सब्जी की फसल को बर्बाद किया, सब्जी की क्वॉलिटी डाउन हुई तो सस्ते दाम में कुछ बेंचे कुछ फेंक दिए. फिर कोरोना काल आ गया जिसके चलते लॉकडाउन हो गया और खेत में सब्जी की फसल पीक पर थी. कई सैकड़ा कैरेट सब्जी हर दिन निकल रही थी लेकिन जितनी सब्जी उनके पास थी उतनी डिमांड नहीं थी. आलम ये रहा कि कुछ सब्जी सस्ते दाम में बेंची तो कुछ न बिक पाने की वजह से खेत में ही फेंक दी.

किसानों ने बताया कि लॉकडाउन और कोरोना की वजह से बाहर से भी व्यापारी नहीं आ रहे हैं. पहले बाहर से व्यापारी आते थे और सब्जी ले जाते थे. लेकिन इस साल यहीं लोकल मंडी में बेंचना पड़ रहा.
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में गन्ने के रस से मिठास गायब, अब सिर्फ मवेशी ले रहे गन्ने का स्वाद


कमलेश पटेल इन इन दिनों अपने खेत में लौकी की फसल को कुछ बेच रहे हैं और कुछ फेंक रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले साल थोक में यही लौकी 12 से 13 रुपए किलो बिकती थी. इस साल थोक में 2 से 3 रुपये किलो कोई नहीं पूंछ रहा है. लॉकडाउन के समय चार एकड़ में टमाटर लगाए थे. वे भी न बिक पाने की वजह से करीब 500 कैरेट टमाटर फेंकना पड़ा. कुलमिलाकर सब्जी किसानों ने अपने खेतों में सब्जीयों का बम्पर उत्पादन किया लेकिन इस कोरोना काल में बिक्री ही नहीं हुई. आलम, ये है कि अब तो लागत निकलना भी मुश्किल पड़ रहा है.

सब्जी की फसल के लिए मौसम रहा शानदार

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस साल सितंबर से ही लगातार बारिश का दौर जारी है. हर महीने बारिश हुई. इस साल ज्यादा गर्मी भी नहीं पड़ी. 33 डिग्री से 34 डिग्री टेंपरेचर बना रहा जो कई सब्जी की फसल के लिए उपयुक्त होता है. ज्यादा टेंपरेचर न होने की वजह से सब्जी की फसल को मई- जून के महीने में भी ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. वहीं नमी बनी रही जिससे पानी का लेवल भी अच्छा बना रहा. यही वजह रही कि सब्जी के फसल के लिए मौसम उपयुक्त रहा और सब्जियां इस साल बंपर तादाद में हुई.

शहडोल। हर साल गर्मी के सीजन में जहां आम आदमी को सब्जी खरीदने से पहले अपने पर्स में झांकना पड़ता था, वहीं इस साल सब्जी किसानों को जीवनयापन करने के लिए अपने पर्स में झांकना पड़ रहा है. जून का महीना चल रहा है और इस महीने हर साल सब्जियों के दाम आसमान पर रहते थे. भीषण गर्मी की वजह से हर साल सब्जी का उत्पादन घट जाता था और बाजार में माल कम हो जाता था, जिस वजह से मंडी में सब्जियों की आवक कम होती थी और उनके दाम काफी बढ़े रहते थे. लेकिन मौजूदा साल ऐसा नहीं है, इस साल सब्जियों के दाम पिछ्ले साल की अपेक्षा बहुत कम हैं. आखिर क्या है वो वजह जो सब्जियों के दाम इतने कम हैं, पढ़ें पूरी रिपोर्ट-

सब्जियां लॉक और दाम डाउन


ठेले में रखी ये हरी-हरी सब्जियां देखकर आपका मन भी इन्हें लेने का कर रहा होगा. इस साल सब्जी लेने से पहले आपको अपने पर्स में भी झांकने की जरुरत नहीं है, क्योंकि हर साल आसमान को छूने वाले इन सब्जियों के भाव इस साल इतने सस्ते हैं कि किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं.


सस्ती बिक रही सब्जी, ग्राहक की कमी

बता दें, हर साल की तुलना में इस साल सब्जियों की आवक फिलहाल एकदम से ज्यादा हो गई है. लॉकडाउन के कारण अभी तक सभी मंडिया थीं, लेकिन अनलॉक होते ही सभी किसान ज्यादा मात्रा में सब्जी लेकर मंडी पहुंच रहे हैं. इस वजह से इस साल सब्जियां की आवक ज्यादा हो गई है. वहीं कोरोना काल के कारण लोग ज्यादा बाहर नहीं आ रहे हैं और न हीं सब्जियां खरीद रहे हैं. जिस वजह से इस साल कौड़ियों के दाम पर भी सब्जियां नहीं बिक रही हैं.

10 रुपए किलो बिक रहे टमाटर-बैंगन-लौकी

फुटकर सब्जी व्यापारी दशरद पाटदर ने बताया कि इस साल ग्राहकों के नहीं आने और सब्जियों की ज्यादा आवक होने से सब्जियां सस्ती हैं. करेला महज 20 रुपए किलो, गिलकी 20 रुपए किलो, परवल 40 रुपए किलो, कद्दू 10 से 15 रुपए किलो, लौकी, टमाटर, बैंगन सब 10 रुपए किलो बिक रहा है. बीते साल इसी समय इन्हीं सब्जियों के दाम जितने अभी हैं उससे दोगुने हैं.

आवक ज्यादा, क्रय शक्ति कम

सब्जियों के थोक व्यापारी बताते हैं कि इस सीजन में सब्जियों के दाम कम होने की वजह है अभी लोगों के पास खरीदने की क्षमता नहीं हैं. दूसरे माल का प्रोडक्शन तो हुआ है लेकिन दुकानें उतनी नहीं लग रहीं. दुकानें ज्यादा न लगने की वजह से माल सबके पास पड़ा है. वहीं लोगों के पास पैसे नहीं है, मजदूर भी बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिस वजह से खरीददारी नहीं हो रही हैं. एक तरह से कहें तो सब्जी की सप्लाई ज्यादा है लेकिन डिमांड कम है जिसके चलते दाम भी कम हैं.

किसान लाचार, कुछ फेंक रहा, कुछ बेंच रहा

किसान मोहन पटेल कई साल से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं. वे 15 से 20 एकड़ जमीन में सब्जी की खेती करते हैं और बाजार में बेचते हैं, लेकिन इस साल उन्हें बहुत नुकसान हुआ है. मई-जून में ज्यादा सब्जी की खेती इसलिए करते हैं क्योंकि इस सीजन में सब्जियों के दाम ज्यादा होते हैं, जिससे कमाई ज्यादा होती है. लेकिन इस साल सब्जी किसानों को नुकसान ही नुकसान हुआ है.

ये भी पढ़ें- अच्छी कमाई की आस में उगाई फसल हो रही चौपट, लॉकडाउन ने तोड़े अन्नदाता के सपने

वहीं कमलेश पटेल बताते हैं कि पहले ओला ने उनके सब्जी की फसल को बर्बाद किया, सब्जी की क्वॉलिटी डाउन हुई तो सस्ते दाम में कुछ बेंचे कुछ फेंक दिए. फिर कोरोना काल आ गया जिसके चलते लॉकडाउन हो गया और खेत में सब्जी की फसल पीक पर थी. कई सैकड़ा कैरेट सब्जी हर दिन निकल रही थी लेकिन जितनी सब्जी उनके पास थी उतनी डिमांड नहीं थी. आलम ये रहा कि कुछ सब्जी सस्ते दाम में बेंची तो कुछ न बिक पाने की वजह से खेत में ही फेंक दी.

किसानों ने बताया कि लॉकडाउन और कोरोना की वजह से बाहर से भी व्यापारी नहीं आ रहे हैं. पहले बाहर से व्यापारी आते थे और सब्जी ले जाते थे. लेकिन इस साल यहीं लोकल मंडी में बेंचना पड़ रहा.
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में गन्ने के रस से मिठास गायब, अब सिर्फ मवेशी ले रहे गन्ने का स्वाद


कमलेश पटेल इन इन दिनों अपने खेत में लौकी की फसल को कुछ बेच रहे हैं और कुछ फेंक रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले साल थोक में यही लौकी 12 से 13 रुपए किलो बिकती थी. इस साल थोक में 2 से 3 रुपये किलो कोई नहीं पूंछ रहा है. लॉकडाउन के समय चार एकड़ में टमाटर लगाए थे. वे भी न बिक पाने की वजह से करीब 500 कैरेट टमाटर फेंकना पड़ा. कुलमिलाकर सब्जी किसानों ने अपने खेतों में सब्जीयों का बम्पर उत्पादन किया लेकिन इस कोरोना काल में बिक्री ही नहीं हुई. आलम, ये है कि अब तो लागत निकलना भी मुश्किल पड़ रहा है.

सब्जी की फसल के लिए मौसम रहा शानदार

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस साल सितंबर से ही लगातार बारिश का दौर जारी है. हर महीने बारिश हुई. इस साल ज्यादा गर्मी भी नहीं पड़ी. 33 डिग्री से 34 डिग्री टेंपरेचर बना रहा जो कई सब्जी की फसल के लिए उपयुक्त होता है. ज्यादा टेंपरेचर न होने की वजह से सब्जी की फसल को मई- जून के महीने में भी ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. वहीं नमी बनी रही जिससे पानी का लेवल भी अच्छा बना रहा. यही वजह रही कि सब्जी के फसल के लिए मौसम उपयुक्त रहा और सब्जियां इस साल बंपर तादाद में हुई.

Last Updated : Jun 7, 2020, 4:34 PM IST
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