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नहीं बिक रहा किसानों का मक्का, सरकार की बेरुखी से चिंतित अन्नदाता

शहडोल जिले में जहां मक्के का रकबा बढ़ा है, तो वहीं सरकार इसकी खरीदी नहीं कर रही है. अब किसान मक्के की फसल लगाकर ठगा सा महसूस कर रहा है. पढ़िए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

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बंपर पैदावार से किसान परेशान
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Published : Oct 27, 2020, 1:00 PM IST

Updated : Nov 6, 2020, 3:25 PM IST

शहडोल। कोरोना काल में किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है. सोहागपुर ब्लॉक के करीब 25 से 30 गांव के किसान सालों से सोयाबीन की खेती करते आ रहे थे, लेकिन पिछले कुछ साल से सोयाबीन की फसल से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा. उन्हें लगातार सलाह दी गई कि, वो मक्के की फसल लगाएं. इस साल किसानों ने बड़े उम्मीद के साथ मक्के की फसल लगाई. आलम यह रहा कि, सोयाबीन का रकबा घट गया और मक्के का रकबा बढ़ गया. अब मक्के की फसल पककर तो तैयार है, लेकिन किसान अब ठगा सा महसूस कर रहा है. वजह है सरकार की बेरुखी, क्योंकि सरकार मक्के की फसल की खरीदी ही नहीं कर रही. जिससे किसान हताश और निराश है.

बंपर पैदावार से किसान परेशान

सोयाबीन की जगह मक्का की सलाह

कुछ साल तक तो सोयाबीन की खेती से किसानों ने काफी बंपर कमाई की. किसानों में संपन्नता भी आई, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 2-3 साल से किसानों को सोयाबीन की फसल से लगातार नुकसान हो रहा था. जिसके बाद कृषि से जुड़े अधिकारी वैज्ञानिक, कृषि के जानकार उन्हें मक्के की फसल लगाने की सलाह देते रहे. एक दो साल तो किसानों ने थोड़ी बहुत जमीन पर मक्के की फसल लगाई, लेकिन मौजूदा साल किसानों ने सोयाबीन के रकबे को घटा दिया और मक्के के रकबे को बढ़ा दिया.

मक्के की बंपर खेती

किसानों ने कई-कई एकड़ जमीन पर फसल लगाई. इस उम्मीद के साथ कि, फसल तैयार होगी तो कमाई होगी. अब आलम यह है कि, मक्के की फसल तो तैयार है, लेकिन किसान इस बात से परेशान है कि, वो फसल को काटेगा, तो बेचेगा कहां. बिचौलियों के पास और व्यापारियों के पास ले जाने के बाद मक्के की फसल के अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं. वहीं सरकार मक्के की खरीदी नहीं कर रही है. अब किसान मक्के की फसल लगाकर ठगा सा महसूस कर रहा है.

जब खरीदी नहीं करनी तो क्यों तय किया समर्थन मूल्य ?

भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने बताया कि, करीब 2 महीने पहले जिला कलेक्टर के माध्यम से शासन से यहां मक्के की खरीदी केंद्र खोलने की मांग की गई थी, काफी समय के बीत जाने के बाद भी वहां से ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई और अब धीरे-धीरे मक्का की फसल खेतों में पड़ी-पड़ी पक गई है. कुछ पक रही है, कुछ कटाई का गहाई करके लोग उसे बाजार में लेकर आ रहे हैं. जहां कौड़ी के भाव माटी के मोल उसे बेच रहे हैं. व्यापारी मक्के की फसल को करीब 800-900 रुपए प्रति क्विंटल किसानों से ले रहे हैं. जबकि सरकार ने इसका समर्थन मूल्य 1860 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है.

केंद्र सरकार से निवेदन

कृषि मंत्री कमल पटेल ने किसानों की मक्के की फसल को लेकर कहा कि नए मंडी एक्ट लेकर आए हैं, जिसमें किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिले इसको लेकर प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मक्का को समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए केंद्र की सरकार से निवेदन किया गया है. जिस पर केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है.

बंपर पैदावार से किसान परेशान

किसान संघ की सरकार को चेतावनी

भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि, इस बीच किसान संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी इसी मसले को लेकर, मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि, मक्का वो नहीं खरीद सकते, क्योंकि पीडीएस में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इसका कोई उपयोग नहीं है. इसमें 4 से 6 महीने बाद कीड़े लगने शुरू हो जाते हैं. केंद्र सरकार से इथेनॉल बनाने की अनुमति मांगी है, यदि अनुमति मिल जाती है, तो तब मक्का खरीद लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि, मुख्यमंत्री की इन बातों को सुनकर लगा कि, वो बातों को टाल रहे हैं.

मक्के का रकबा बढ़ा

कृषि विभाग के उपसंचालक आरपी झारिया का कहना कि, सोयाबीन की जगह पर मौजूदा साल क्षेत्र के किसानों ने मक्के पर भरोसा जताया है. शहडोल जिले में मक्के का रकबा मौजूदा साल बढ़ा है, 14,900 हेक्टेयर में सिर्फ मक्का बोया गया है. आरपी झारिया का कहना है कि, मक्के की उपज भी अच्छी होती है. 20 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ मक्के की उपज होती है. तो वहीं सोयाबीन का रकबा घटा है. सोयाबीन का रकबा मौजूदा साल 3100 हेक्टेयर रहा है, जो गत वर्ष की तुलना में आधा हो गया है.

शहडोल। कोरोना काल में किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है. सोहागपुर ब्लॉक के करीब 25 से 30 गांव के किसान सालों से सोयाबीन की खेती करते आ रहे थे, लेकिन पिछले कुछ साल से सोयाबीन की फसल से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा. उन्हें लगातार सलाह दी गई कि, वो मक्के की फसल लगाएं. इस साल किसानों ने बड़े उम्मीद के साथ मक्के की फसल लगाई. आलम यह रहा कि, सोयाबीन का रकबा घट गया और मक्के का रकबा बढ़ गया. अब मक्के की फसल पककर तो तैयार है, लेकिन किसान अब ठगा सा महसूस कर रहा है. वजह है सरकार की बेरुखी, क्योंकि सरकार मक्के की फसल की खरीदी ही नहीं कर रही. जिससे किसान हताश और निराश है.

बंपर पैदावार से किसान परेशान

सोयाबीन की जगह मक्का की सलाह

कुछ साल तक तो सोयाबीन की खेती से किसानों ने काफी बंपर कमाई की. किसानों में संपन्नता भी आई, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 2-3 साल से किसानों को सोयाबीन की फसल से लगातार नुकसान हो रहा था. जिसके बाद कृषि से जुड़े अधिकारी वैज्ञानिक, कृषि के जानकार उन्हें मक्के की फसल लगाने की सलाह देते रहे. एक दो साल तो किसानों ने थोड़ी बहुत जमीन पर मक्के की फसल लगाई, लेकिन मौजूदा साल किसानों ने सोयाबीन के रकबे को घटा दिया और मक्के के रकबे को बढ़ा दिया.

मक्के की बंपर खेती

किसानों ने कई-कई एकड़ जमीन पर फसल लगाई. इस उम्मीद के साथ कि, फसल तैयार होगी तो कमाई होगी. अब आलम यह है कि, मक्के की फसल तो तैयार है, लेकिन किसान इस बात से परेशान है कि, वो फसल को काटेगा, तो बेचेगा कहां. बिचौलियों के पास और व्यापारियों के पास ले जाने के बाद मक्के की फसल के अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं. वहीं सरकार मक्के की खरीदी नहीं कर रही है. अब किसान मक्के की फसल लगाकर ठगा सा महसूस कर रहा है.

जब खरीदी नहीं करनी तो क्यों तय किया समर्थन मूल्य ?

भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने बताया कि, करीब 2 महीने पहले जिला कलेक्टर के माध्यम से शासन से यहां मक्के की खरीदी केंद्र खोलने की मांग की गई थी, काफी समय के बीत जाने के बाद भी वहां से ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई और अब धीरे-धीरे मक्का की फसल खेतों में पड़ी-पड़ी पक गई है. कुछ पक रही है, कुछ कटाई का गहाई करके लोग उसे बाजार में लेकर आ रहे हैं. जहां कौड़ी के भाव माटी के मोल उसे बेच रहे हैं. व्यापारी मक्के की फसल को करीब 800-900 रुपए प्रति क्विंटल किसानों से ले रहे हैं. जबकि सरकार ने इसका समर्थन मूल्य 1860 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है.

केंद्र सरकार से निवेदन

कृषि मंत्री कमल पटेल ने किसानों की मक्के की फसल को लेकर कहा कि नए मंडी एक्ट लेकर आए हैं, जिसमें किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिले इसको लेकर प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मक्का को समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए केंद्र की सरकार से निवेदन किया गया है. जिस पर केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है.

बंपर पैदावार से किसान परेशान

किसान संघ की सरकार को चेतावनी

भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि, इस बीच किसान संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी इसी मसले को लेकर, मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि, मक्का वो नहीं खरीद सकते, क्योंकि पीडीएस में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इसका कोई उपयोग नहीं है. इसमें 4 से 6 महीने बाद कीड़े लगने शुरू हो जाते हैं. केंद्र सरकार से इथेनॉल बनाने की अनुमति मांगी है, यदि अनुमति मिल जाती है, तो तब मक्का खरीद लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि, मुख्यमंत्री की इन बातों को सुनकर लगा कि, वो बातों को टाल रहे हैं.

मक्के का रकबा बढ़ा

कृषि विभाग के उपसंचालक आरपी झारिया का कहना कि, सोयाबीन की जगह पर मौजूदा साल क्षेत्र के किसानों ने मक्के पर भरोसा जताया है. शहडोल जिले में मक्के का रकबा मौजूदा साल बढ़ा है, 14,900 हेक्टेयर में सिर्फ मक्का बोया गया है. आरपी झारिया का कहना है कि, मक्के की उपज भी अच्छी होती है. 20 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ मक्के की उपज होती है. तो वहीं सोयाबीन का रकबा घटा है. सोयाबीन का रकबा मौजूदा साल 3100 हेक्टेयर रहा है, जो गत वर्ष की तुलना में आधा हो गया है.

Last Updated : Nov 6, 2020, 3:25 PM IST
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