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खेती की पुरानी पद्धति को भूल गए अन्नदाता, बाजार पर बढ़ी किसानों की डिपेंडेंसी

शहडोल में धान की खेती बड़ी ही प्रमुखता से की जाती है. लेकिन अब यहां के किसान पारंपरिक तरीके से खेती ना करके, आधुनिक खेती करने लगे हैं.

SHAHDOL
खेती की पुरानी पद्धति को भूल गए अन्नदाता
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Published : Aug 18, 2020, 2:04 PM IST

शहडोल। आदिवासी जिला शहडोल में धान की खेती बड़ी ही प्रमुखता से की जाती है. छोटे से लेकर बड़ा किसान हर कोई यहां धान की खेती करता है, लेकिन अब खेती करने के तरीके में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. हर किसान हाइब्रिड बीज ही अपने खेतों पर लगाता है. खेती के लिए हर चीज पर बाजार पर डिपेंडेंसी किसान की बढ़ गई है. पहले गांव के हर घर में मवेशी हुआ करते थे और उसकी वजह है किसान पहले पूरी तरह से जीरो बजट खेती करता था, मतलब खेती के लिए बाजार पर बहुत कम आश्रित रहता था. मवेशियों से किसानों को गोबर का खाद और हल चलाने के लिए बैल की जरूरत हुआ करती थी, जो उन्हें मवेशी पालने पर आसानी से मिल जाता था और रही बात बीज की तो किसान उसे भी घर में ही बना लेता था.

खेती की पुरानी पद्धति को भूल गए अन्नदाता

लेकिन वक्त बदला, किसान बदला और किसानों के खेती करने का तरीका भी बदल गया. साथ ही किसानों ने मवेशियों को पालना भी कम कर दिया. जिसकी वजह से बाजार पर किसान की डिपेंडेंसी बढ़ गई है और किसान जीरो बजट खेती को छोड़कर पूरी तरह से बाजार पर आश्रित होकर खेती करने लगा है. जिसकी वजह से खेती की लागत में थोड़ी नहीं बहुत ज्यादा बढ़ोतरी आ गई है, अब किसान अपने खेतों में हाइब्रिड धान के बीज लगाता है, क्योंकि किसान अब घर में बीज नहीं बनाता. ये बीज बाजार से आते हैं, हाइब्रिड बीज लगाता है तो रासायनिक खाद भी चाहिए, क्योंकि गोबर के खाद तो किसान के पास होती नहीं है, क्योंकि उनके पास मवेशी ही नहीं हैं. किसानों के पास मवेशी नहीं हैं, हल का जमाना चला गया तो अब ट्रैक्टर और दूसरे मशीनों से खेती होती है.

बाजार पर ऐसे आश्रित हुआ किसान-

किसानों का कहना है कि पुरानी परंपरागत खेती करने पर सब कुछ व्यवस्थित होता था, पहले बारिश भी समय से होती थी, बीज भी घर पर बन जाते थे, गोबर से खाद भी घर पर मिल जाता था. बाजार पर इतनी डिपेंडेंसी नहीं रहती थी, लागत कम लगती थी, तो जितनी भी फसल होती थी, वो फायदे का सौदा होता था, क्योंकि घर में मवेशी भी हुआ करते थे.

विलुप्ति की कगार पर पुराने बीज-

किसान बताते हैं कि जो पुराने बीज हुआ करते थे, जिसे वो घर पर ही बना लेते थे, लेकिन अब वो विलुप्ति की कगार पर हैं. वो अब मिलते ही नहीं हैं. किसान सुधीर शर्मा कहते हैं कि इस साल वो अपने कुछ खेतों में पुराने बीज भी लगाना चाह रहे थे, हाइब्रिड खेती की जगह उन खेतों में परंपरागत खेती करना चाह रहे थे, लेकिन वो तीन-चार गांव उन बीजों की तलाश में निकले, लेकिन उन्हें बीज नहीं मिले और आखिर में उन्हें हाइब्रिड बीज का ही इस्तेमाल करना पड़ा.

रिजल्ट की जल्दी में बाजार पर डिपेंडेंसी-

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह इस मुद्दे को लेकर कहते हैं कि जीरो बजट का मतलब ये है कि खेती में जो भी इनपुट लगता है, चाहे वो बीज हो, कीटनाशक हो या फिर वो खाद हो. उसके लिए हम स्वयं स्वाबलंबी हों. मौजूदा समय में किसानों की बात करें तो ज्यादातर वो बाजार पर खेती के लिए डिपेंड हो गए हैं.

गौरतलब है कि पुरानी परंपरागत खेती छोड़ने के बाद किसान की डिपेंडेंसी बाजार पर ज्यादा हो गई है. जिसकी वजह से किसान को अब खेती के लिए सब कुछ बाजार से ही खरीदना पड़ता है. जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. मतलब साफ है हाइब्रिड बीज के इस्तेमाल से जहां किसानों के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है तो वहीं किसान की बाजार में डिपेंडेंसी भी बढ़ी है जो किसान के लिए अच्छा साइन नहीं है.

शहडोल। आदिवासी जिला शहडोल में धान की खेती बड़ी ही प्रमुखता से की जाती है. छोटे से लेकर बड़ा किसान हर कोई यहां धान की खेती करता है, लेकिन अब खेती करने के तरीके में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. हर किसान हाइब्रिड बीज ही अपने खेतों पर लगाता है. खेती के लिए हर चीज पर बाजार पर डिपेंडेंसी किसान की बढ़ गई है. पहले गांव के हर घर में मवेशी हुआ करते थे और उसकी वजह है किसान पहले पूरी तरह से जीरो बजट खेती करता था, मतलब खेती के लिए बाजार पर बहुत कम आश्रित रहता था. मवेशियों से किसानों को गोबर का खाद और हल चलाने के लिए बैल की जरूरत हुआ करती थी, जो उन्हें मवेशी पालने पर आसानी से मिल जाता था और रही बात बीज की तो किसान उसे भी घर में ही बना लेता था.

खेती की पुरानी पद्धति को भूल गए अन्नदाता

लेकिन वक्त बदला, किसान बदला और किसानों के खेती करने का तरीका भी बदल गया. साथ ही किसानों ने मवेशियों को पालना भी कम कर दिया. जिसकी वजह से बाजार पर किसान की डिपेंडेंसी बढ़ गई है और किसान जीरो बजट खेती को छोड़कर पूरी तरह से बाजार पर आश्रित होकर खेती करने लगा है. जिसकी वजह से खेती की लागत में थोड़ी नहीं बहुत ज्यादा बढ़ोतरी आ गई है, अब किसान अपने खेतों में हाइब्रिड धान के बीज लगाता है, क्योंकि किसान अब घर में बीज नहीं बनाता. ये बीज बाजार से आते हैं, हाइब्रिड बीज लगाता है तो रासायनिक खाद भी चाहिए, क्योंकि गोबर के खाद तो किसान के पास होती नहीं है, क्योंकि उनके पास मवेशी ही नहीं हैं. किसानों के पास मवेशी नहीं हैं, हल का जमाना चला गया तो अब ट्रैक्टर और दूसरे मशीनों से खेती होती है.

बाजार पर ऐसे आश्रित हुआ किसान-

किसानों का कहना है कि पुरानी परंपरागत खेती करने पर सब कुछ व्यवस्थित होता था, पहले बारिश भी समय से होती थी, बीज भी घर पर बन जाते थे, गोबर से खाद भी घर पर मिल जाता था. बाजार पर इतनी डिपेंडेंसी नहीं रहती थी, लागत कम लगती थी, तो जितनी भी फसल होती थी, वो फायदे का सौदा होता था, क्योंकि घर में मवेशी भी हुआ करते थे.

विलुप्ति की कगार पर पुराने बीज-

किसान बताते हैं कि जो पुराने बीज हुआ करते थे, जिसे वो घर पर ही बना लेते थे, लेकिन अब वो विलुप्ति की कगार पर हैं. वो अब मिलते ही नहीं हैं. किसान सुधीर शर्मा कहते हैं कि इस साल वो अपने कुछ खेतों में पुराने बीज भी लगाना चाह रहे थे, हाइब्रिड खेती की जगह उन खेतों में परंपरागत खेती करना चाह रहे थे, लेकिन वो तीन-चार गांव उन बीजों की तलाश में निकले, लेकिन उन्हें बीज नहीं मिले और आखिर में उन्हें हाइब्रिड बीज का ही इस्तेमाल करना पड़ा.

रिजल्ट की जल्दी में बाजार पर डिपेंडेंसी-

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह इस मुद्दे को लेकर कहते हैं कि जीरो बजट का मतलब ये है कि खेती में जो भी इनपुट लगता है, चाहे वो बीज हो, कीटनाशक हो या फिर वो खाद हो. उसके लिए हम स्वयं स्वाबलंबी हों. मौजूदा समय में किसानों की बात करें तो ज्यादातर वो बाजार पर खेती के लिए डिपेंड हो गए हैं.

गौरतलब है कि पुरानी परंपरागत खेती छोड़ने के बाद किसान की डिपेंडेंसी बाजार पर ज्यादा हो गई है. जिसकी वजह से किसान को अब खेती के लिए सब कुछ बाजार से ही खरीदना पड़ता है. जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. मतलब साफ है हाइब्रिड बीज के इस्तेमाल से जहां किसानों के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है तो वहीं किसान की बाजार में डिपेंडेंसी भी बढ़ी है जो किसान के लिए अच्छा साइन नहीं है.

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