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हर जगह लगाई गुहार फिर भी किसान है लाचार, अब तो इनकी सुनो सरकार - कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर

शहडोल जिले के ग्रामीण इलाके का चैतू कोल (65 साल), खेती और मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं. सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू और उसका परिवार कोसों दूर है. हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है.

हल चलाता चैतू और उसका बेटा
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Published : Jul 5, 2019, 7:17 PM IST

Updated : Jul 5, 2019, 11:51 PM IST

शहडोल। किसानों को लेकर सूबे की सियासत गरम रहती है. किसानों के बारे में वादे तो खूब किए जाते हैं लेकिन हकीकत तो ये है सुविधाएं नहीं मिलने से किसान बदहाल हैं. कहने को तो सरकार तरह-तरह की योजनाएं चला रही है और अपनी पीठ भी थपथपा रही है, पर गरीबों तक लाभ पहुंच ही नहीं पा रहा है. जिस किसान की मजबूरी और परेशानी आपको दिखाने जा रहे हैं, उसे देखकर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि किसान का जीवन तमाम दावों के बीच संघर्ष की किन गलियों से गुजर रहा है.

हर जगह लगाई गुहार फिर भी किसान है लाचार

ये किसान मजबूर भी, परेशान भी
शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 15 से 20 किलोमीटर दूर जोधपुर ग्राम पंचायत और उसी गांव में है जमुनिहा टोला, जहां कोल समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं और इन्हीं में से एक गरीब किसान है, चैतू कोल (65 साल), खेती और मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं, इसके पुराने बैल मर चुके हैं और अभी जो बैल हैं उनमें से एक बैल भी उसी तरह बूढ़ा हो गया है और एक आंख से अंधा भी. दूसरे बैल को देखकर लगता है जैसे अभी दम तोड़ देगा.
आलम ये है कि ये गरीब किसान अब अपने खेत की जुताई जुगाड़ तंत्र से इन्हीं बैलों से करता है. चैतू खुद रस्सी से एक बैल को आगे से पकड़ कर चलाते हैं और पीछे से उसका बेटा समयलाल हल को पकड़कर खेतों की जुताई करता है. चैतू खुद भी दिव्यांग हैं ज्यादा चलने में परेशानी होती है लेकिन चैतू कहते हैं 'क्या करूं अगर काम न करूं तो घर कैसे चले, बैठा रहूंगा तो खाना कौन देगा.'
गुहार सुनने वाला कोई नहीं
चैतू बताते हैं कि उन्होंने अपनी इस समस्या को लेकर हर जगह गुहार लगाई, सरपंच और सचिव को भी बोला, कई तरह के कागज भी बनवाकर दिए लेकिन हर कोई यही कह रहा कि कागज ऊपर भेज दिया गया है, जब ऊपर से कोई आदेश आएगा तो बताया जाएगा. चैतू कहते हैं 'अगर मैं उस आदेश का इंतजार करता रहा तो फिर बरसात का ये समय ही निकल जायेगा और खेत ऐसे ही पड़े रह जाएंगे.'
पेंशन के लिए भी परेशान
चैतू बताते हैं कि बैलों को लेकर तो वो परेशान हैं ही 65 साल की इस उम्र में जब लोग काम छोड़कर घर पर पेंशन के भरोसे जीने लगते हैं ऐसे में चैतू उसके लिये भी सिर्फ संघर्ष ही कर रहे हैं. लोग मदद के नाम पर सालों से सिर्फ कागज ही बनवा रहे हैं. चैतू कोल का कहना है कि सरकारी योजनाएं किस काम की जब हम गरीबों को उनका आसानी से लाभ मिल ही नहीं पा रहा है.
सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू कोल और उसका परिवार कोसों दूर है. हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है और चैतू जैसे गरीब इसी तरह से परेशान हो रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है.

शहडोल। किसानों को लेकर सूबे की सियासत गरम रहती है. किसानों के बारे में वादे तो खूब किए जाते हैं लेकिन हकीकत तो ये है सुविधाएं नहीं मिलने से किसान बदहाल हैं. कहने को तो सरकार तरह-तरह की योजनाएं चला रही है और अपनी पीठ भी थपथपा रही है, पर गरीबों तक लाभ पहुंच ही नहीं पा रहा है. जिस किसान की मजबूरी और परेशानी आपको दिखाने जा रहे हैं, उसे देखकर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि किसान का जीवन तमाम दावों के बीच संघर्ष की किन गलियों से गुजर रहा है.

हर जगह लगाई गुहार फिर भी किसान है लाचार

ये किसान मजबूर भी, परेशान भी
शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 15 से 20 किलोमीटर दूर जोधपुर ग्राम पंचायत और उसी गांव में है जमुनिहा टोला, जहां कोल समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं और इन्हीं में से एक गरीब किसान है, चैतू कोल (65 साल), खेती और मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं, इसके पुराने बैल मर चुके हैं और अभी जो बैल हैं उनमें से एक बैल भी उसी तरह बूढ़ा हो गया है और एक आंख से अंधा भी. दूसरे बैल को देखकर लगता है जैसे अभी दम तोड़ देगा.
आलम ये है कि ये गरीब किसान अब अपने खेत की जुताई जुगाड़ तंत्र से इन्हीं बैलों से करता है. चैतू खुद रस्सी से एक बैल को आगे से पकड़ कर चलाते हैं और पीछे से उसका बेटा समयलाल हल को पकड़कर खेतों की जुताई करता है. चैतू खुद भी दिव्यांग हैं ज्यादा चलने में परेशानी होती है लेकिन चैतू कहते हैं 'क्या करूं अगर काम न करूं तो घर कैसे चले, बैठा रहूंगा तो खाना कौन देगा.'
गुहार सुनने वाला कोई नहीं
चैतू बताते हैं कि उन्होंने अपनी इस समस्या को लेकर हर जगह गुहार लगाई, सरपंच और सचिव को भी बोला, कई तरह के कागज भी बनवाकर दिए लेकिन हर कोई यही कह रहा कि कागज ऊपर भेज दिया गया है, जब ऊपर से कोई आदेश आएगा तो बताया जाएगा. चैतू कहते हैं 'अगर मैं उस आदेश का इंतजार करता रहा तो फिर बरसात का ये समय ही निकल जायेगा और खेत ऐसे ही पड़े रह जाएंगे.'
पेंशन के लिए भी परेशान
चैतू बताते हैं कि बैलों को लेकर तो वो परेशान हैं ही 65 साल की इस उम्र में जब लोग काम छोड़कर घर पर पेंशन के भरोसे जीने लगते हैं ऐसे में चैतू उसके लिये भी सिर्फ संघर्ष ही कर रहे हैं. लोग मदद के नाम पर सालों से सिर्फ कागज ही बनवा रहे हैं. चैतू कोल का कहना है कि सरकारी योजनाएं किस काम की जब हम गरीबों को उनका आसानी से लाभ मिल ही नहीं पा रहा है.
सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू कोल और उसका परिवार कोसों दूर है. हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है और चैतू जैसे गरीब इसी तरह से परेशान हो रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है.

Intro:इस गरीब किसान की भी सुनो सरकार, विकलांग होते हुए भी खेतों की जुताई के लिए ऐसा करने को है लाचार, देखिये पूरा इंटरव्यू

शहडोल- अक्सर देखने को मिलता है कि किसानों को लेकर राजनीति गरमाई रहती है, कोई भी हो किसानों के विषय में हर कोई अपनी राय देता है, लेकिन इन किसानों के लिए करता कोई नहीं है कहने को तो सरकार तरह तरह की योजनाएं चला रही है और अपनि पीठ भी थपथपा रही है। लेकिन जब इन योजनाओं का लाभ गरीबों तक आसानी से पहुंच ही नहीं पा रहा तो फिर किस काम की योजनाएं।
आज हम जिस किसान की मजबूरी और परेशानी आपको दिखाने जा रहे हैं उसे देखकर आपके होश उड़ जाएंगे। आज आपको पता चलेगा कि एक गरीब किसान की असली हकीकत क्या है।


Body:ये किसान मजबूर भी है परेशान भी है

शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 15 से 20 किलोमीटर दूर है जोधपुर ग्रामपंचायत और उसी गांव में है जमुनिहा टोला जहां कोल समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं। और इन्हीं में से एक गरीब किसान है चैतू कोल जिसकी उम्र 65 साल है, खेती और मज़दूरी कर अपने और अपने परिवार का किसी कदर पेट पालता है। लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के पैसे नहीं हैं इसके पुराने बैल मर चुके हैं और अभी जो बैल हैं उनमें से एक बैल बुजुर्ग है साथ में एक आंख से अंधा भी है तो दूसरा जो बैल है वो एकदम नया और कमजोर है।

आलम ये है कि ये गरीब किसान अब अपने खेतों की जुताई जुगाड़ तंत्र से इन्हीं बैलों से करता है। चैतू कोल खुद रस्सी से एक बैल को आगे से पकड़ कर चलाते हैं और पीछे से उसका लड़का समयलाल कोल हल को पकड़कर खेतों की जुताई करता है। चैतू कोल खुद भी विकलांग हैं ज्यादा चलने में परेशानी होती है लेकिन चैतू कोल कहते हैं क्या करूँ अगर काम न करूं तो घर कैसे चले। बैठा रहूंगा तो खाना कौन देगा।

हर जगह लगाई गुहार नहीं सुन रहा कोई

चैतू कोल बताते हैं कि अपनी इस समस्या को लेकर हर जगह गुहार लगाई, सरपंच और सचिव को भी बोला, कई तरह के कागज भी बनवाकर दिए लेकिन हर कोई यही कह रहा कि कागज ऊपर भेज दिया गया है, जब ऊपर से कोई आदेश आएगा तो बतया जाएगा। चैतू कोल कहते हैं अगर मैं उस आदेश का इंतज़ार करता रहा तो फिर तो बरसात का ये समय ही निकल जायेगा और खेत ऐसे ही पड़े रह जाएंगे।

पेंशन के लिए भी परेशान

चैतू कोल बताते हैं कि बैलों को लेकर तो वो परेशान हैं ही वो 65 साल के हो चुके हैं लेकिन अबतक उन्हें पेंशन की राशि नहीं मिल पा रही है। लोग उनसे बस कागज ही बनवा रहे हैं और सालों से भटका रहे हैं लेकिन कोई पेंशन नहीं दिलवा पा रहा चैतू कोल कहते हैं किस काम की सरकारी योजनाएं जब हम गरीबो को आसानी से मिल ही नहीं पा रही है।


Conclusion:गौरतलब है कि हम आपको एक किसान चैतू कोल की समस्या दिखा रहे हैं जिसके पास मजबूरी और परेशानी दोनों है मजबूरी है कि उसे पेट पालने के लिए खेती करनी ही पड़ेगी और परेशानी ये है कि विकलांग होते हुए भी इस तरह के बैलों से घंटों पूरे खेत में बैलों को पकड़कर चलाना पड़ता है। तब खेतों की जुताई हो पा रही है।

सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू कोल और उसका परिवार कोसो दूर है हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है और चैतू जैसे गरीब इसी तरह से परेशान हो रहे हैं और उनकी कोई सुनने वाला नहीं है।
Last Updated : Jul 5, 2019, 11:51 PM IST
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