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विश्व दिव्यांग दिवस विशेष: जिंदादिली कि मिसाल हैं शहडोल के एवन दास - chhata village

शहडोल से लगभग 22 किलोमीटर दूस बसे छाता गांव के एवन दास बैगा की शरीर की बनावट कुछ ऐसी है कि ना वो ठीक से बैठ पाते हैं ना ही चल पाते हैं. फिर भी अपनी जिंदगी में रंग कैसे भरना है वो बरखूबी जानते है.

Shahdol's Avon Das is the inspiration for all
शहडोल के एवन दास है सब के लिए प्रेरणा
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Published : Dec 3, 2019, 12:13 PM IST

Updated : Dec 3, 2019, 2:03 PM IST

शहडोल। कुदरत भी कभी-कभी नाइंसाफी कर देता है. शहडोल जिले से 22 किलोमीटर दूर छाता गांव के रहने वाले एवन दास बैगा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. एवन दास बैगा कि शरीर की बनावट कुछ इस तरह है कि ना वो ठीक से बैठ पाते हैं और ना ही चल पाते हैं. उनका पूरा शरीर मुड़ा हुआ है. कुदरत के द्वारा की गई इस नाइंसाफी को भी एवन दास जिंदादिली तरीके से जीते हैं. एवन दास की बस एक ही ख्वाहिश है सरकारी नौकरी करना. उस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए एवन दास दिन रात एक कर रहे हैं.

शहडोल के एवन दास है सब के लिए प्रेरणा

दोस्त देते हैं हर वक्त साथ

25 साल के एवन दास बुढ़ार कॉलेज से बीए सेकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं. एवन दास के हाथ भले ही सीधे नहीं हैं, लेकिन अपने दोनों हाथ के इस्तेमाल से एवन दास लिखते हैं और पढाई करते हैं, इतना ही नहीं फोन भी इस्तेमाल करते हैं. एवन दास चल नहीं सकते तो क्या हुआ, उनके दोस्त बहुत काम आते हैं. हर वक्त एवन दास के साथ उनके दोस्त रहते हैं जो उन्हें गोद में उठाकर यहां से वहां ले जाते हैं, यहां तक कि कॉलेज भी अपने दोस्तों के सहारे ही जाते हैं.

सरकारी नौकरी है लक्ष्य

एवन दास बताते हैं कि बीच में वो कुछ साल के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन उन्होंने फिर से पढाई शुरू की है, क्योंकि वो सरकारी नौकरी करना चाहते हैं. एवन दास कहते हैं उनकी जिंदगी तभी खुशहाल रह पाएगी जब उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी, इसी के लिए वो जमकर मेहनत भी कर रहे हैं.

काफी मश्क्कत के बाद मिली गाड़ी

एवन दास को अभी कुछ दिन पहले ही एक गाड़ी मिली है. जिसके लिए उनको काफी मशक्कत करनी पड़ी. एवन दास बताते हैं कि वो करीब डेढ़ साल से जिला मुख्यालय के चक्कर काट रहे थे.

एवन दास भले ही ठीक से चल नहीं सकते, बैठ नहीं पाते, लेकिन अपनी जिंदगी में रंग कैसे भरना है वो बखूबी जानते हैं. एवन कहते हैं कि कुदरत ने कुछ सोचकर ही उन्हें ऐसा बनाया है. उसके बारे में सोचकर समय खराब करने से क्या मतलब, जिंदगी मिली है तो वो उसे बिन्दास जीएंगे.

शहडोल। कुदरत भी कभी-कभी नाइंसाफी कर देता है. शहडोल जिले से 22 किलोमीटर दूर छाता गांव के रहने वाले एवन दास बैगा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. एवन दास बैगा कि शरीर की बनावट कुछ इस तरह है कि ना वो ठीक से बैठ पाते हैं और ना ही चल पाते हैं. उनका पूरा शरीर मुड़ा हुआ है. कुदरत के द्वारा की गई इस नाइंसाफी को भी एवन दास जिंदादिली तरीके से जीते हैं. एवन दास की बस एक ही ख्वाहिश है सरकारी नौकरी करना. उस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए एवन दास दिन रात एक कर रहे हैं.

शहडोल के एवन दास है सब के लिए प्रेरणा

दोस्त देते हैं हर वक्त साथ

25 साल के एवन दास बुढ़ार कॉलेज से बीए सेकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं. एवन दास के हाथ भले ही सीधे नहीं हैं, लेकिन अपने दोनों हाथ के इस्तेमाल से एवन दास लिखते हैं और पढाई करते हैं, इतना ही नहीं फोन भी इस्तेमाल करते हैं. एवन दास चल नहीं सकते तो क्या हुआ, उनके दोस्त बहुत काम आते हैं. हर वक्त एवन दास के साथ उनके दोस्त रहते हैं जो उन्हें गोद में उठाकर यहां से वहां ले जाते हैं, यहां तक कि कॉलेज भी अपने दोस्तों के सहारे ही जाते हैं.

सरकारी नौकरी है लक्ष्य

एवन दास बताते हैं कि बीच में वो कुछ साल के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन उन्होंने फिर से पढाई शुरू की है, क्योंकि वो सरकारी नौकरी करना चाहते हैं. एवन दास कहते हैं उनकी जिंदगी तभी खुशहाल रह पाएगी जब उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी, इसी के लिए वो जमकर मेहनत भी कर रहे हैं.

काफी मश्क्कत के बाद मिली गाड़ी

एवन दास को अभी कुछ दिन पहले ही एक गाड़ी मिली है. जिसके लिए उनको काफी मशक्कत करनी पड़ी. एवन दास बताते हैं कि वो करीब डेढ़ साल से जिला मुख्यालय के चक्कर काट रहे थे.

एवन दास भले ही ठीक से चल नहीं सकते, बैठ नहीं पाते, लेकिन अपनी जिंदगी में रंग कैसे भरना है वो बखूबी जानते हैं. एवन कहते हैं कि कुदरत ने कुछ सोचकर ही उन्हें ऐसा बनाया है. उसके बारे में सोचकर समय खराब करने से क्या मतलब, जिंदगी मिली है तो वो उसे बिन्दास जीएंगे.

Intro:note_ mp_sha_02_viklang_avan_das_byte_7203529 इस स्लग में वर्जन है एवन दास बैगा का।

mp_sha_02_viklang_akhilesh_shukla_ptc_7203529 इस स्लग में पीटूसी है।


विश्व दिव्यांग दिवस पर विशेष- कुदरत ने ऐसा बनाया तो क्या हुआ, जिंदादिल हैं एवन दास, सरकारी नौकरी है लक्ष्य

शहडोल- कभी कभी कुदरत भी किसी के साथ नाइंसाफी कर देता है छाता गांव के रहने वाले एवन दास बैगा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, कुदरत ने तो उनके साथ इंसाफ नहीं किया, लेकिन एवन दास अपनी ज़िंदगी को ज़िंदादिली तरीके से जीते हैं गरीब हैं तो क्या हुआ लाइफ को बेहतर बनाने लगातार मेहनत कर रहे हैं अपने हक के लिए लड़ना भी जानते हैं एवन दास बैगा। इनकी बस एक ही ख्वाहिश है सरकारी नौकरी करना। इसीलिए कॉलेज जाकर पढ़ाई भी करते हैं एवन दास।



Body:शहडोल ज़िला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर है छाता गांव और यहीं रहते हैं एवन दास बैगा, जो चल नहीं सकते ठीक से बैठ नहीं सकते, यहां तक कि इनका पूरा शरीर ही मुड़ा हुआ है, इनके शरीर की बनावट देखकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर अपने दैनिक जीवन का काम कैसे करते होंगे एवन दास लेकिन इनके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे, क्योंकि बिंदास हैं एवन दास बैगा।

25 साल के एवन दास बुढ़ार कॉलेज से बीए सेकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं, ये बताते हुए एवन दास के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। एवन दास के हाथ भले ही सीधे नहीं हैं लेकिन अपने दोनों हाथ के इस्तेमाल से एवन दास लिखते हैं और पढ़ाई करते हैं, इतना ही नहीं फोन भी इस्तेमाल करते हैं तो इसके लिए अपने हाथ और पैर का बराबर इस्तेमाल करते हैं और पैरों की सहायता से ही बात करते हैं। एवन दास चल नहीं सकते तो क्या हुआ, दोस्त उनके बहुत काम आते हैं हर वक्त एवन दास के साथ उनके दोस्त रहते हैं जो उन्हें गोद में उठाकर यहां से वहां ले जाते हैं यहां तक कि कॉलेज भी अपने दोस्तों के सहारे ही जाते हैं एवन दास।

ऐसे चलता है खर्चा

एवन दास के जब फैमिली बैक ग्राउंड के बारे में हमने पूंछा तो वो थोड़ी मायूस हो गए कहते हैं उनके माता पिता मजदूरी करते हैं, एवन दास के दो और भाई हैं और एक बहन है, एवन दास सबसे बड़े हैं, एवन कहते हैं घर में इतने पैसे नहीं हैं इसलिए अपना खर्च वो खुद निकालने की कोशिश करते हैं, 600 रुपए पेंशन के मिल जाते हैं और कुछ सामान रख कर एक छोटा सा दुकान भी खोल रखा है जिससे कुछ खर्च के लिए पैसे और मिल जाते हैं हलांकि दुकान में न तो ज्यादा समान है और न ही ज्यादा बिक्री, थोड़ी बहुत ही दुकान चलती है। लेकिन इससे एवन खुश हैं बस उनका यही कहना है कि वो पढ़ाई कर रहे हैं और आगे भी पढ़ाई करना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने मांग भी की है कि अगर उनके पेंशन का पैसा बढ़ा दिया जाए तो कुछ और मदद हो पाएगी।

एवन दास कहते हैं कि कॉलेज जाने में भी उन्हें खर्च आता है पेट्रोल के पैसे लगते हैं उनके गांव से कॉलेज करीब 8 किलोमीटर है इसलिए हर दिन नहीं जा पाते।

सरकारी नौकरी है लक्ष्य

एवन दास बताते हैं कि बीच में वो कुछ साल के लिए पढ़ाई छोड़ दिए थे लेकिन उन्होंने फिर से पढाई शुरू की है क्योंकि वो सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवन दास कहते हैं उनकी ज़िंदगी तभी खुशहाल रह पाएगी जब उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाये इसी के लिये वो जमकर मेहनत भी कर रहे हैं।


Conclusion:अपने हक के लिए लड़ना जानते हैं एवन

एवन दास को अभी कुछ दिन पहले ही एक गाड़ी मिली है और ये हो सका है कलेक्टर के प्रयास की वजह से एवन दास बताते हैं कि इसके लिए वो करीब डेढ़ साल से जिला मुख्यालय के चक्कर काट रहे थे, हर जगह से नाकामी हाथ लग रही थी, एवन बताते हैं कि जब कलेक्टर ललित दाहिमा के पास वो पहुंचे तब उन्होनें आश्वासन दिया था कि वो एवन को गाड़ी दिलवाएंगे और फिर उन्हें देर से ही सही लेकिन उनके मेहनत का फल मिला इसके लिए एवन दास हर हफ्ते कलेक्टरेट पहुंचते थे।

एवन दास की काबिलियत इससे भी जान सकते हैं कि वो चल नहीं सकते तो क्या हुआ अपने अथक प्रयास और मेहनत की वजह से कई साल के प्रयासों के बाद अपना पेंशन शुरू करवा पाए थे।

एवन दास भले ही चल नहीं पाते ठीक से बैठ नहीं पाते, लेकिन अपने ज़िंदगी में रंग भरने में कमी नहीं करते एवन कहते हैं कुदरत ने कुछ सोचकर ही उन्हें ऐसा बनाया है उसके बारे में सोचकर समय खराब करने से क्या मतलब, ज़िंदगी मिली है तो उसे बिन्दास जीना है।
Last Updated : Dec 3, 2019, 2:03 PM IST
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