शहडोल। गाय सनातन सभ्यता में हमेशा ही धन संपन्नाता और वैभव का प्रतीक रही है. इसके दूध से मिलने वाले पोषण के अलावा इसके गौमूत्र और गोबर का भी धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व रहा है, लेकिन बदलते परिवेश के साथ गौ पालन लोगों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगा, जिस कारण लोग गौ पालन से दूर होने लगे. पहले जिस गाय की सेवा से लोग दिन की शुरूआत करते थे, आज उसे जंगलों में खुला छोड़ देते हैं. ऐसा मात्र इसलिए कि सरकारों के पास गाय के दूध के अलावा इससे होने वाले अन्य उत्पादों से माध्यम से किसानों को फायदा पहुंचाने का कोई ठोस विकल्प नहीं है, जबकि गाय के गोबर से कई तरह के उत्पाद बनाकर बाजार में पेश किए जा रहे हैं.
गौ पालकों को सरकार से आस
करीब 35 साल से मवेशियों को चराकर अपना गुजर बसर करने वाले रद्दु बैगा ने बताया कि सालभर में करीब 7 ट्रॉली गोबर इकट्ठा हो जाता है. जिसे वो औने-पौने दाम में दे बेच देते हैं. रद्दु बैगा का मानना है कि लोग आजकल मवेशियों को घर में बांधना पसंद नहीं करते, लेकिन अगर सरकार कोई ऐसी योजना लाए कि मध्यप्रदेश में भी गोबर की खरीदी होने लगे, तो निश्चित तौर पर लोग मवेशियों की उपयोगिता समझने लगेंगे.
छत्तीसगढ़ में बनी गोबर खरीदी की योजना
गाय हमेशा में सिसायत का केंद्र रही है. ज्यादातर सियासी दल गौसेवा के नाम पर सिर्फ वोट पाना चाहते हैं, शायद यही वजह है कि मध्यप्रदेश में गाय के गोबर खरीदी को लेकर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. गोवंश के नाम पर हो रही राजनीति के बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने एक योजना की शुरूआत की है, जिसमें गोबर को दो रूपए किलो खरीदा जा रहा है. यह योजना लोगों के लिए फायदेमंद भी साबित हो रही है.
मध्य प्रदेश में उठी गोबर खरीदी की मांग
शहडोल संभाग छत्तीसगढ़ का सीमावर्ती एरिया है. जिससे छत्तीसगढ़ की योजनाओं की चर्चा यहां भी अक्सर होती रहती है. ऐसे में छत्तीसगढ़ में चलने वाली 'गोधन न्याय योजना' को मध्य प्रदेश मे शुरू करने की भी मांग होने लगी है. गोबर खरीदी को लेकर भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि पुराने जमाने में मवेशी संपन्नता का प्रतीक होते थे, लेकिन आज लोगों ने इन्हें बेकदर कर दिया है. छत्तीसगढ़ में गोबर खरीदी केंद्र खोलकर सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने की योजना बनाई है, जो काबिले तारीफ है. इस तरह की योजना मध्यप्रदेश में भी शुरू होनी चाहिए. जिससे गोवंश की उपयोगिता बढ़ेगी. साथ ही दुर्घटनाएं कम होगी.
गोबर के उपयोग
- गोबर से मच्छर भगाने की अगरबत्ती और सुगंधित अगरबत्ती भी बनती है.
- इससे कई जगह पर पेंसिल वगैरह भी बनाते देखा गया है.
- गोबर के दिये, कागज सहित कई कलाकृतियां भी उकेरी जा रही हैं.
- इसका इधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
- गोबर गैस से खाना पकाने की गैस भी तैयार की जा रही है.
- गोबर गैस में इस्तेमाल होने वाले गोबर का खेतों में खाद के रूप में भी इस्तेमाल होता है.
गोबर खाद से रसायनों पर निर्भरता होगी कम
धरती के पोषण के लिए गोबर सबसे उपयुक्त चीज है. अगर गोबर से खाद बनाई जाए, तो हमारी निर्भरता रासायनिक खाद्यों पर कम होगी. जो विशेष रूप से डीएपी यूरिया जैसे रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं, उसमें कमी आएगी. गोबर के खाद की खेतों में तीन साल तक असर रहता है. ऐसे में उत्पादकता भी बढ़ेगी.
तीन साल तक रहता है जैविक खाद का असर
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह ने गोबर की उपयोगिता के बारे में बताया कि आज के समय में लोग डीएपी, यूरिया जैसे रासायनिक खाद इस्तेमाल करके खेती करते हैं, जो मिट्टी को कही न कहीं नुकसान पहुंचाती है. गोबर की खाद के बारे में बताया कि इससे बनने वाली खाद का असर तीन साल तक रहता है, अग किसान इसका उपयोंग करें तो फसलें कीटों के आजाद रहेंगी, क्यों की पौधे मजबूत होंगे और इस में सभी तरह के एलीमेंट होंगे.
सरकार बनाए योजना तो होगी फायदेमंद
छत्तीसगढ़ सरकार की तरह मध्यप्रदेश सरकार भी अगर गोबर खरीदी के लिए योजना बनाती है, तो लोगों को कई तरह के फायदें होंगे. साथ ही कई लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा. इतना ही नहीं जब गोबर की खरीदी होगी, तो जैविक खाद भी प्रचुर मात्रा में बनाई जा सकेगी, जिससे फसलों को खतरनाक कैमिकल की खादों से आजादी तो मिलेगी ही गौ पालकों के लिए भी ये योजना फायदेमंद साबित हो होगी.