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इस सीट से चुनाव जीतने वाले सांसद की आसान नहीं है राह, सामने है कई चुनौतियां

शहडोल लोकसभा सीट के नतीजों पर भी सबकी निगाहें लगी हुई हैं. हालांकि यहां चुनाव कोई भी जीते लेकिन उसके सामने कई चुनौतियां होगी. इस सीट पर भी बीजेपी-कांग्रेस में कांटे की टक्कर दिख रही है.

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Published : May 22, 2019, 2:05 PM IST

शहडोल लोकसभा सीट

शहडोल। विंध्य अंचल की शहडोल लोकसभा सीट पर भी इस बार बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर दिख रही है. यहां बीजेपी की तरफ से हिंमाद्रि सिंह प्रत्याशी थी. तो कांग्रेस ने प्रमिला सिंह पर दांव लगाया था. देखा जाए तो इस लोकसभा सीट से सांसद कोई भी बने लेकिन उसके लिए पांच साल का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहेगा. क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र में चुनौतियां कई हैं, और इनसे पार पाने की चुनौती जीतने वाले नए सांसद के सामने होगी.

शहडोल लोकसभा सीट पर कड़ा मुकाबला

शहडोल में दोनों पार्टियों के प्रत्याशी ऐसे थे जो कई कभी एक दूसरे के विपक्षी दल में शामिल थे. बीजेपी प्रत्याशी हिंमाद्रि सिंह जहां आखिरी वक्त में पार्टी में शामिल हुई थी. तो प्रमिला सिंह भी विधानसभा चुनाव के वक्त ही कांग्रेस में आई थी. लेकिन दोनों पार्टियों ने नेताओं पर भरोसा जताया था. आदिवासी बाहुल्य शहडोल संसदीय क्षेत्र में पलायन, रोजगार, स्वास्थ्य, रेल, परिवहन शिक्षा जैसे कई मुद्दे हैं, जिनकी लचर व्यवस्थाओं को ठीक करने की चुनौती नए सांसद के सामने होगी.

लोगों का भी यही मानना है कि पूरे शहडोल लोकसभा सीट पर कई चुनौतियां हैं जिससे पार पाना किसी भी सांसद के लिए इतना आसान नहीं होगा, फिर चाहे वो बीजेपी का प्रत्याशी जीते या कांग्रेस या फिर निर्दलीय, उसके सामने आज के इस बदलते भारत में काम करने की चुनौती होगी. स्थानीय लोग कहते है कि सांसद के पिछले कार्यकाल का आकलन करें तो सांसद की क्षेत्र में जो गतिविधियां रहीं वो बिल्कुल कम थी, खासकर जनता से जुड़े मुद्दों पर वर्तमान सांसद उतने प्रभावी नजर नहीं आए थे. उनका मानना है सबसे पहले शहडोल से नागपुर तक के लिए सीधी ट्रेन सुविधा होनी चाहिए. दूसरा रोजगार के लिए सबसे पहले काम किया जाए. इसलिए यहां के नए सांसद को शहडोल संसदीय क्षेत्र के मुद्दों को संसद में मज़बूती के साथ उठाने की चुनौती भी रहेगी जिससे रष्ट्रीय लेवल पर यहां की समस्याएं लोगों की नज़र में आ सकें और इन पर काम हो सके.

शहडोल। विंध्य अंचल की शहडोल लोकसभा सीट पर भी इस बार बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर दिख रही है. यहां बीजेपी की तरफ से हिंमाद्रि सिंह प्रत्याशी थी. तो कांग्रेस ने प्रमिला सिंह पर दांव लगाया था. देखा जाए तो इस लोकसभा सीट से सांसद कोई भी बने लेकिन उसके लिए पांच साल का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहेगा. क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र में चुनौतियां कई हैं, और इनसे पार पाने की चुनौती जीतने वाले नए सांसद के सामने होगी.

शहडोल लोकसभा सीट पर कड़ा मुकाबला

शहडोल में दोनों पार्टियों के प्रत्याशी ऐसे थे जो कई कभी एक दूसरे के विपक्षी दल में शामिल थे. बीजेपी प्रत्याशी हिंमाद्रि सिंह जहां आखिरी वक्त में पार्टी में शामिल हुई थी. तो प्रमिला सिंह भी विधानसभा चुनाव के वक्त ही कांग्रेस में आई थी. लेकिन दोनों पार्टियों ने नेताओं पर भरोसा जताया था. आदिवासी बाहुल्य शहडोल संसदीय क्षेत्र में पलायन, रोजगार, स्वास्थ्य, रेल, परिवहन शिक्षा जैसे कई मुद्दे हैं, जिनकी लचर व्यवस्थाओं को ठीक करने की चुनौती नए सांसद के सामने होगी.

लोगों का भी यही मानना है कि पूरे शहडोल लोकसभा सीट पर कई चुनौतियां हैं जिससे पार पाना किसी भी सांसद के लिए इतना आसान नहीं होगा, फिर चाहे वो बीजेपी का प्रत्याशी जीते या कांग्रेस या फिर निर्दलीय, उसके सामने आज के इस बदलते भारत में काम करने की चुनौती होगी. स्थानीय लोग कहते है कि सांसद के पिछले कार्यकाल का आकलन करें तो सांसद की क्षेत्र में जो गतिविधियां रहीं वो बिल्कुल कम थी, खासकर जनता से जुड़े मुद्दों पर वर्तमान सांसद उतने प्रभावी नजर नहीं आए थे. उनका मानना है सबसे पहले शहडोल से नागपुर तक के लिए सीधी ट्रेन सुविधा होनी चाहिए. दूसरा रोजगार के लिए सबसे पहले काम किया जाए. इसलिए यहां के नए सांसद को शहडोल संसदीय क्षेत्र के मुद्दों को संसद में मज़बूती के साथ उठाने की चुनौती भी रहेगी जिससे रष्ट्रीय लेवल पर यहां की समस्याएं लोगों की नज़र में आ सकें और इन पर काम हो सके.

Intro:नोट- बाईट देते हुए जो सफेद शर्ट में हैं वो बृजेश सिरमौर हैं, और जो दूसरे व्यक्ति हैं उनका नाम पंकज गुप्ता है।

इस अंचल में सांसद कोई भी बने, राह कांटों भरा होने वाला है

शहडोल- शहडोल लोकसभा सीट इस बार टिकट वितरण के बाद से ही सुर्खियों में रही, क्योंकि शहडोल लोकसभा सीट पर देखें तो यहां बीजेपी और कांग्रेस दो ही पार्टियों का वर्चस्व अक्सर देखने को मिलता है इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रोचक घमासान नज़र आ रहा है। शहडोल लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने महिला प्रत्याशियों पर दांव खेला है। यहां इलेक्शन तो 29 अप्रैल को ही हो चुके थे, लेकिन मतगणना सबके साथ 23 मई को ही होना है, वैसे देखा जाए तो इस लोकसभा सीट से कोई भी जीते लेकिन जो सांसद बनेगा उसके लिए राह आसान नहीं होगी, उसके लिए ये सफर कांटों भरा होने वाला है, क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र में चुनौतियां कई हैं, और इनसे पार पाने की चुनौती जीतने वाले नए सांसद के सामने होगी।


Body:सांसद के सामने होंगी कई चुनौतियां

इस बार के चुनाव में लोगों की जुबान पर कई मुद्दे हावी रहे, लोगों ने वोट तो कर दिया है और जिले में हर बार से ज्यादा बम्पर वोटिंग भी हुई है लेकिन इस बार लोगों ने कई मुद्दे गिनाए और नए सांसद के सामने उन मुद्दों पर खरा उतरने की चुनौती होगी।
शहडोल संसदीय क्षेत्र में ज्यादातर जिले अदिवासी बाहुल्य हैं और यहां पलायन, रोजगार, स्वास्थ्य, रेल, परिवहन , शिक्षा कई ऐसे मुद्दे हैं जिनकी यहां लचर व्यवस्था है और इन पर काम करने की चुनौती इस नए जीतने वाले सांसद के सामने होगी।

लोगों ने बताई चुनौतियां

लोगों का भी यही मानना है कि पूरे शहडोल लोकसभा सीट पर कई चुनौतियां हैं जिससे पार पाना किसी भी सांसद के लिए इतना आसान नहीं होगा फिर चाहे वो बीजेपी का प्रत्याशी जीते या कांग्रेस या फिर किसी और पार्टी या निर्दलीय, उसके सामने आज के इस बदलते भारत में काम करने की चुनौती होगी।

शहर के नागरिक बृजेश सिरमौर कहते हैं देखिये ये आदिवासी अंचल है इस क्षेत्र में इम बार किसी भी नए सांसद के लिए बड़ी चुनौती होगी। सांसद के पिछले कार्यकाल का आकलन करें तो सांसद की क्षेत्र में जो गतिविधियां रहीं वो बिल्कुल कम थी, खासकर जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर मेरा ये मनना है कि नए सांसद के सामने खुद को साबित करने की चुनौती होगी। प्रमुख चुनौती जो तेज़ी से उभरकर जो आएगी वो है यहां से रेल सुविधा यहां नागपुर के लिए सीधी ट्रेन नहीं है, जबकि यहां से ज्यादातर मरीज़ नागपुर ही इलाज कराने के लिए जाते हैं। इसके अलावा भी कई जगहों के लिए यहां से सीधी ट्रेन नहीं है एक तरह से कहा जाए तो लम्बी दूरी के लिए आवागमन की सुविधा सही नहीं है, स्वास्थ्य सुविधाएं, उनका लाभ सीधे तौर पर आम जनता को नहीं मिल पा रहा है, इसके अलावा बेरोजगारी, भी एक बड़ा मुद्दा है। बृजेश सिरमौर कहते हैं कि जो भी नया सांसद चुनकर आएगा उसके सामने यहां के मुद्दों को संसद में मज़बूती के साथ उठाने की चुनौती भी रहेगी जिससे रष्ट्रीय लेवल पर यहां की समस्याएं लोगों की नज़र में आ सकें। दिल्ली में अगर मज़बूती से आवाज उठाई गई तो हो सकता है कि यहां रोजगार, और उद्योग धंधे खुलें, और जो यहां की सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी वो दूर हो।

एक और शहर के नागरिक पंकज गुप्ता का मानना है जो पेसे से बिज़नेस मैन हैं उनका मानना है कि इस बार जो भी सांसद चुनकर आएगा उसके सामने रोजगार के अवसर बनाने की चुनौती होगी, यहां के बेरोजगार युवाओं के लिए रोज़गार का माहौल तैयार करना होगा।लोगों से दूरी नहीं बल्कि अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों से नजदीकी बनाकर चलना होगा उनके बीच आना जाना होगा, तभी वो समस्याओं को जान सकेंगे और फिर उसका निराकरण हो सकेगा।


Conclusion:गौरतलब है कि शहडोल लोकसभा सीट में इस बार मौज़ूदा सांसद को लेकर काफी नाराजगी रही और वो वजह रही कि सांसद लोगों से दूरी बनाकर रहे, लोगों के बीच आना जाना नहीं रहा,जिसके बाद उनका बीजेपी ने टिकट तो काट दिया लेकिन अब जिस भी पार्टी या निर्दलीय नेता यहां सांसद बनकर आता है उसके सामने इस मिथक को तोड़ने की चुनौती रहेगी जीतने के बाद उसे क्षेत्र से गायब न होने की चुनौती रहेगी उसके सामने लोगों से मिलकर चलने और लोगों के बीच रहकर काम करने की चुनौती होगी, इसके अलावा पलायन, बेरोजगारी,स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर काम करते हुए क्षेत्र को विकास के पथ पर ले जाने का चैलेंज होगा।
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