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कड़ाके की ठंड में फुटबॉल बना आदिवासी बच्चों का पैशन

शहडोल के पड़मनिया कला गांव में कड़ाके की ठंड में फुटबॉल आदिवासी बच्चों का पैशन बन गया है.

Adivasi children practice football during the cold season in Shahdol
शहडोल में पड़ रही कड़ाके की ठंड
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Published : Jan 13, 2020, 10:59 AM IST

Updated : Jan 13, 2020, 11:05 AM IST

शहडोल। नए साल की शुरुआत से ही शहडोल में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. साल की शुरुआत से ही पहले मौसम ने करवट बदल ली. जिले के पड़मनिया कला गांव में बैगा आदिवासी बच्चें साल के 12 महीने फुटबॉल खेलते हैं. ठंड हो या गर्मी बरसात हो या फिर कोई भी मौसम ये आदिवासी बच्चे फुटबॉल खेलने जरूर पहुंचते हैं.

शहडोल में पड़ रही कड़ाके की ठंड

समाजसेवी और इन गरीब आदिवासी बच्चों को फुटबॉल खेलने में मदद करने वाले अनिल साहू बताते हैं कि, इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है और ये बच्चे इस ठंड में भी हर दिन फुटबॉल खेलने के लिए प्रैक्टिस करने पहुंचते हैं.

बैगा खिलाड़ियों ने कहा फुटबॉल खेलना पैशन है.
इस ठंड के बीच भी कड़ी प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ियों ने कहा कि फुटबॉल खेलना उन्हें अच्छा लगता है. इसलिए वो हर दिन प्रैक्टिस करते हैं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता फिर चाहे कितनी भी ठंड हो. कुछ बैगा आदिवासी बच्चों ने तो यहां तक बताया कि, इस ठंड में सुबह सुबह फुटबॉल खेलने आ जाते हैं, दौड़ दौड़ कर शरीर में गर्मी आ जाती है और फिर धूप मिल जाती है. रात अलाव के सहारे काटते हैं. क्योंकि इतने गर्म कपड़े उनके पास नहीं है, जो इस कड़ाके की ठंड को भगा सकें.

शहडोल। नए साल की शुरुआत से ही शहडोल में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. साल की शुरुआत से ही पहले मौसम ने करवट बदल ली. जिले के पड़मनिया कला गांव में बैगा आदिवासी बच्चें साल के 12 महीने फुटबॉल खेलते हैं. ठंड हो या गर्मी बरसात हो या फिर कोई भी मौसम ये आदिवासी बच्चे फुटबॉल खेलने जरूर पहुंचते हैं.

शहडोल में पड़ रही कड़ाके की ठंड

समाजसेवी और इन गरीब आदिवासी बच्चों को फुटबॉल खेलने में मदद करने वाले अनिल साहू बताते हैं कि, इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है और ये बच्चे इस ठंड में भी हर दिन फुटबॉल खेलने के लिए प्रैक्टिस करने पहुंचते हैं.

बैगा खिलाड़ियों ने कहा फुटबॉल खेलना पैशन है.
इस ठंड के बीच भी कड़ी प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ियों ने कहा कि फुटबॉल खेलना उन्हें अच्छा लगता है. इसलिए वो हर दिन प्रैक्टिस करते हैं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता फिर चाहे कितनी भी ठंड हो. कुछ बैगा आदिवासी बच्चों ने तो यहां तक बताया कि, इस ठंड में सुबह सुबह फुटबॉल खेलने आ जाते हैं, दौड़ दौड़ कर शरीर में गर्मी आ जाती है और फिर धूप मिल जाती है. रात अलाव के सहारे काटते हैं. क्योंकि इतने गर्म कपड़े उनके पास नहीं है, जो इस कड़ाके की ठंड को भगा सकें.

Intro:शहडोल में पड़ रही कड़ाके की ठंड, इस ठंड में भी ये आदिवासी बच्चे हर दिन करते हैं फुटबॉल का अभ्यास, जानिए क्या हुआ जब इन बच्चों के पास पहुंचा Etv Bharat

शहडोल- नए साल की शुरुआत से ही शहडोल में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, साल की शुरुआत से ही पहले मौसम ने करवट बदल लिया बारिश हुई और फिर जब मौसम खुला तो कड़ाके की ठंड और शीतलहर ने लोगों को परेशान किया।
आज हम उन गरीब बच्चों के पास पड़मनिया कला गांव पहुंचे, जो बैगा आदिवासी बच्चे हैं, और साल के 12 महीने फुटबॉल खेलते हैं। ठंड हो या गर्मी बरसात हो या फिर कोई भी मौसम ये आदिवासी बच्चे फुटबॉल खेलने जरूर पहुंचते हैं। आखिर ठंड में कैसे ये आदिवासी बच्चे हर दिन करते हैं अभ्यास, आख़िर कैसे ठंड ने लोगों का जनजीवन कर दिया है अस्त व्यस्त।




Body:कड़ाके की ठंड के बीच भी सुबह सुबह फुटबॉल खेलने पहुंच जाना आसान नहीं होता है ये कड़ी मेहनत और लगन से ही संभव हो पाता है।

शहडोल में भी इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है बारिश के बाद जब से मौसम खुला है तो ठंड ने लोगों का हाल बेहाल कर रखा है एक तरह से कहा जाए तो हाड़ कपाने वाली ठंड पड़ रही है।

समाजसेवी और इन गरीब आदिवासी बच्चों को फुटबॉल खेलने में मदद करने वाले अनिल साहू बताते हैं कि इन दिनों ठंड कड़ाके की पड़ रही है और ये बच्चे इस ठंड में भी हर दिन फुटबॉल खेलने के लिए अभ्यास करने पहुंचते हैं।ठंड से जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया है।

बैगा खिलाड़ियों ने कहा फुटबॉल खेलना पैशन है

इस ठंड के बीच भी कड़ी अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों ने कहा कि फुटबॉल खेलना उन्हें अच्छा लगता है, इसलिए वो हर दिन अभ्यास करते हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता फिर चाहे कितनी भी ठंड हो।

कुछ बैगा आदिवासी बच्चों ने तो यहां तक बताया कि इस ठंड में सुबह सुबह फुटबॉल खेलने आ जाते हैं तो दौड़ दौड़ कर शरीर में गर्मी आ जाती है और फिर धूप मिल जाता है रात अलाव में काटते हैं क्योंकि इतने गर्म कपड़े उनके पास नहीं है जो इस कड़ाके की ठंड को भगा सके।



Conclusion:गौरतलब है जिला मुख्यालय से करीब 10 से 15 किलोमीटर दूर है पडमनिया कला गांव जहां ये बच्चे हर दिन फुटबॉल का अभ्यास करते हैं फिर मौसम कोई भी हो। फुटबॉल के खेल को लेकर ये बच्चे काफी पैशनेट हैं। एक तरह से कहा जाए तो ये बैगा आदिवासी बच्चे फुटबॉल के लिए क्रेजी हैं।
Last Updated : Jan 13, 2020, 11:05 AM IST
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