सिवनी। यदि आपसे कहें कि नगर में एक खास दिन नाग की आत्मा लोगों के ऊपर आती है और वह अपना जहर पुन: वापस चूसकर लोगों को स्वस्थ करती है तो शायद आप इस पर भरोसा न करें, लेकिन जिस जिले में हर साल 100 से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश या इससे जुड़े कारणों से हो जाती है, वहां पर सांप का खौफ होना लाजमी है.
इसके साथ ही सांप को किसानों का दोस्त भी बताया जाता है. ऐसे में सांपों को लेकर जिले में ऋषि पंचमी के अवसर पर कई जगहों पर 'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. जिले के कई इलाकों में ऋषि पंचमी का कार्यक्रम पंचमी से अष्टमी तक चलता है, जिले में इस पुरानी आदिवासी परंपरा की झलक आज भी देखने को मिलती है.
ये परंपरा सर्पदंश के बाद होने वाले झाड़ फूंक से जुड़ी हुई है, जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं सहजता से उपलब्ध नहीं होने के चलते सदियों से उपचार के लिए झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता रहा है. ऋषि पंचमी के मौके पर 'पटा' बैठाने के दिन झाड़-फूंक करने वाले और पीड़ित स्थानीय खैरमाई में मौजूद रहे. इसके बाद अहीरी मोहल्ला में पटा बैठाने की रस्म निभाई गई. इस दौरान सर्पदंश के पीड़ितों को पटे पर बैठाकर जहर उतरवाया गया. सांप का नाम लेते ही संबंधित सांप का भार (लहर) किसी खास शख्स पर आ जाता और वह पीड़ित के पास जाकर जहर चूसने लगता है.
स्थानीय लोगों की माने तो ये परंपरा सदियों से चलती आ रही है, किसी को सांप काटने की स्थिति में झाड़-फूंक करने वाले को बुलाया जाता है. जो मंत्रों की शक्ति से जहर को बांध देता है. ऋषि पंचमी पर पटा बैठाकर उस बंध को खोला जाता है और सांप का जहर उतारा जाता है. इस दौरान जिस सांप का भार संबंधित व्यक्ति पर आता है, वह सांप की तरह लहराते झूमते पीड़ित के पास पहुंचता है और अंत में कार्यक्रम में पूजा-पाठ कर समापन किया जाता है.
Disclaimer: ETV भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, ये खबर स्थानीय लोगों के बताये अनुसार लिखी गई है.