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आज भी बौना है इनके आगे विज्ञान का ज्ञान, 'नागसैला' के जरिए उतारते हैं सांप का जहर

21वीं सदी में भी 18वीं सदी की परंपराएं जीवित हैं, जिसके सहारे लोग आज भी इलाज में भरोसा करते हैं.

'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, देखेंं वीडियो
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Published : Sep 8, 2019, 6:08 PM IST

सिवनी। यदि आपसे कहें कि नगर में एक खास दिन नाग की आत्मा लोगों के ऊपर आती है और वह अपना जहर पुन: वापस चूसकर लोगों को स्वस्थ करती है तो शायद आप इस पर भरोसा न करें, लेकिन जिस जिले में हर साल 100 से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश या इससे जुड़े कारणों से हो जाती है, वहां पर सांप का खौफ होना लाजमी है.

इसके साथ ही सांप को किसानों का दोस्त भी बताया जाता है. ऐसे में सांपों को लेकर जिले में ऋषि पंचमी के अवसर पर कई जगहों पर 'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. जिले के कई इलाकों में ऋषि पंचमी का कार्यक्रम पंचमी से अष्टमी तक चलता है, जिले में इस पुरानी आदिवासी परंपरा की झलक आज भी देखने को मिलती है.

'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, देखेंं वीडियो

ये परंपरा सर्पदंश के बाद होने वाले झाड़ फूंक से जुड़ी हुई है, जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं सहजता से उपलब्ध नहीं होने के चलते सदियों से उपचार के लिए झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता रहा है. ऋषि पंचमी के मौके पर 'पटा' बैठाने के दिन झाड़-फूंक करने वाले और पीड़ित स्थानीय खैरमाई में मौजूद रहे. इसके बाद अहीरी मोहल्ला में पटा बैठाने की रस्म निभाई गई. इस दौरान सर्पदंश के पीड़ितों को पटे पर बैठाकर जहर उतरवाया गया. सांप का नाम लेते ही संबंधित सांप का भार (लहर) किसी खास शख्स पर आ जाता और वह पीड़ित के पास जाकर जहर चूसने लगता है.

स्थानीय लोगों की माने तो ये परंपरा सदियों से चलती आ रही है, किसी को सांप काटने की स्थिति में झाड़-फूंक करने वाले को बुलाया जाता है. जो मंत्रों की शक्ति से जहर को बांध देता है. ऋषि पंचमी पर पटा बैठाकर उस बंध को खोला जाता है और सांप का जहर उतारा जाता है. इस दौरान जिस सांप का भार संबंधित व्यक्ति पर आता है, वह सांप की तरह लहराते झूमते पीड़ित के पास पहुंचता है और अंत में कार्यक्रम में पूजा-पाठ कर समापन किया जाता है.

Disclaimer: ETV भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, ये खबर स्थानीय लोगों के बताये अनुसार लिखी गई है.

सिवनी। यदि आपसे कहें कि नगर में एक खास दिन नाग की आत्मा लोगों के ऊपर आती है और वह अपना जहर पुन: वापस चूसकर लोगों को स्वस्थ करती है तो शायद आप इस पर भरोसा न करें, लेकिन जिस जिले में हर साल 100 से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश या इससे जुड़े कारणों से हो जाती है, वहां पर सांप का खौफ होना लाजमी है.

इसके साथ ही सांप को किसानों का दोस्त भी बताया जाता है. ऐसे में सांपों को लेकर जिले में ऋषि पंचमी के अवसर पर कई जगहों पर 'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. जिले के कई इलाकों में ऋषि पंचमी का कार्यक्रम पंचमी से अष्टमी तक चलता है, जिले में इस पुरानी आदिवासी परंपरा की झलक आज भी देखने को मिलती है.

'नागसैला' और 'पटा' बैठाने की परंपरा आज भी जीवंत है, देखेंं वीडियो

ये परंपरा सर्पदंश के बाद होने वाले झाड़ फूंक से जुड़ी हुई है, जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं सहजता से उपलब्ध नहीं होने के चलते सदियों से उपचार के लिए झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता रहा है. ऋषि पंचमी के मौके पर 'पटा' बैठाने के दिन झाड़-फूंक करने वाले और पीड़ित स्थानीय खैरमाई में मौजूद रहे. इसके बाद अहीरी मोहल्ला में पटा बैठाने की रस्म निभाई गई. इस दौरान सर्पदंश के पीड़ितों को पटे पर बैठाकर जहर उतरवाया गया. सांप का नाम लेते ही संबंधित सांप का भार (लहर) किसी खास शख्स पर आ जाता और वह पीड़ित के पास जाकर जहर चूसने लगता है.

स्थानीय लोगों की माने तो ये परंपरा सदियों से चलती आ रही है, किसी को सांप काटने की स्थिति में झाड़-फूंक करने वाले को बुलाया जाता है. जो मंत्रों की शक्ति से जहर को बांध देता है. ऋषि पंचमी पर पटा बैठाकर उस बंध को खोला जाता है और सांप का जहर उतारा जाता है. इस दौरान जिस सांप का भार संबंधित व्यक्ति पर आता है, वह सांप की तरह लहराते झूमते पीड़ित के पास पहुंचता है और अंत में कार्यक्रम में पूजा-पाठ कर समापन किया जाता है.

Disclaimer: ETV भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, ये खबर स्थानीय लोगों के बताये अनुसार लिखी गई है.

Intro:पौराणिक कथाओं पर आस्था का केंद्र,, पंचमी पटो कार्यक्रम,Body:सिवनी:-
यदि हम आपसे कहें कि नगर में एक खास दिन नाग की आत्मा लोगों के ऊपर आती है और वह अपना जहर पुन: वापस चूसकर लोगों को स्वस्थ करती है तो शायद आप इस पर भरोसा न करें लेकिन जिस जिले में हर साल एक सैकड़ा से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश या इससे जुड़े कारणों से हो जाती हो वहां पर सर्प को लेकर भय स्वाभाविक है। इसके साथ ही सर्प को किसानों का मित्र भी बताया जाता है। ऐसे में सर्पों को लेकर जिले में ऋषि पंचमी के अवसर पर कई जगहों में नागसैला और पटा बैठाने की परंपरा आज भी जीवित है। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। जिले के कई इलाकों में यह ऋषि पंचमी का कार्यक्रम पंचमी के दिन से अष्टमी तक चलता है जिले में इस पुरानी आदिवासी परंपरा की झलक देखने को मिली।

वीओ-1- केवलारी मुख्यालय में शनिवार की दोपहर स्थानीय खैरमाई में लोगों की भारी भीड़ थी जिसकी वजह थी पटा बैठाना ।
दरअसल यह परंपरा सर्पदंश के झाडफ़ूंक वाले उपचार से जुड़ी हुई है। जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं सहजता से उपलब्ध न होने के कारण सदियों से उपचार झाड़ूफूंक से किया जाता है। ऋषि पंचमी के मौके पर पटा बैठाने के दिन झाडफ़ूंक करने वाले और पीडि़त स्थानीय खैरमाई में उपस्थित हुए। इसके बाद अहीरी मोहल्ला में पटा बैठाने की रस्म निभाई गई। इस दौरान सर्पदंश के पीडि़तों को पटे पर बैठाकर जहर उतरवाया गया। सर्प का नाम लेते ही संबंधित सर्प का भार (लहर) किसी खास शख्स पर आ जाता और वह पीडि़त के पास जाकर जहर चूसने लगता है।।

वीओ- 2- स्थानीय निवासीयो ने बताया कि क्षेत्र में यह परंपरा सदियों से जारी है। किसी को सर्प काटने की दशा में स्थानीय झाडफ़ूंक करने वाले को बुलाया जाता है। जो मंत्रों की शक्ति से जहर को बांध देता है। ऋषिपंचमी में पटा बैठाकर उस बंध को खोला जाता है और सर्प का जहर उतरवा दिया जाता है। इस दौरान जिस सर्प का भार संबंधित पर आता है वह सर्प की तरह लहराते झूमते पीडि़त तक जाता है। अंत मे कार्यक्रम में पूजन पाठ कर समापन किया जाता है।।

बाइट.
1- संतलाल ग्रामीण
2- चमरा बर्मन ग्रामीण
3- शिवकुमार डेहरिया- ग्रामीणConclusion:
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