सिवनी। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा स्कूलों में बाउंड्री वॉल और भवन पुताई पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इसके बाद भी आदिवासी अंचलों में ऐसे स्कूल देखे जा सकते हैं, जहां ना तो नौनिहालों के लिए सुगम रास्ता है और ना ही पढ़ाई के लिए स्कूल भवन. जो है भी, वो या तो जर्जर है या फिर अधूरे. ऐसा ही एक मामला आदिवासी बहुल सिवनी जिले के घंसौर जनपद पंचायत के रोटो गांव का है. जहां प्राथमिक स्कूल के एक कमरे की छत सिर्फ एक बल्ली के सहारे टिकी है और इसी छत के नीचे नन्हें-मुन्नें अपना भविष्य संवार रहे हैं.
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को यह नहीं पता है कि, जिस छत के नीचे वो अपने सपने बुन रहे हैं वो उनके के लिए खतरा भी साबित हो सकती है. स्कूल के प्रधानाचार्य प्रभारी नेम सिंह ने बताया कि, स्कूल के कमरे की छत को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है. लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई.
वही मामले पर कलेक्टर प्रवीण सिंह ने कहा कि, जैसे ही मामले की जानकारी सामने आई है. हमने निरीक्षण के लिए अधिकारी को मौके पर भेज दिया है. ताकि वह यह पता लगा सके, कि वाकई छत कमजोर है.