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देवउठनी एकादशी का है विशेष महत्व, व्रत करने से मिलता है अश्वमेध यज्ञ का पुण्य - तुलसी से विवाह

देवउठनी एकादशी का हिंदुओं में काफी महत्व होता है, इस दिन तुलसी का भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम के साथ विवाह होता है. साथ ही आज से मांगलिक कार्यो की भी शुरुआत हो जाती है.

देवउठनी एकादशी का महत्व
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Published : Nov 8, 2019, 12:16 PM IST

Updated : Nov 8, 2019, 12:34 PM IST

सिवनी। देवउठनी ग्यारस को देवोत्थान एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदुओं में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है, मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने तक सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं और इसी दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप लेकर तुलसी से विवाह किया था. आज के बाद से ही सारे मांगलिक कार्यक्रम शुरु हो जाते हैं, जैसे मुंडन, शादी, नामकरण.


पंडित आचार्य नारायण प्रसाद शास्त्री बताते हैं कि एकादशी का पदम पुराण में विस्तृत वर्णन किया गया है, पदम पुराण में बताया गया है कि इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के राजस्व पूर्ण रुप से प्राप्त होते हैं, शास्त्रों में कहा गया है कि अगर किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा है तो एकादशी के दिन कन्या व्रत करके आंगन में तुलसी विवाह करें, तो उसका विवाह जल्द हो जाएगा.

देवउठनी एकादशी का महत्व


शास्त्रों के अनुसार ये भी कहा गया है कि यदी कोई व्यक्ति वर्ष भर व्रत न करके एक बार एकादशी का व्रत करता है, तो संपूर्ण वर्ष के एकादशी का फल प्राप्त होता है. जो लोग भगवान विष्णु का यह व्रत करते हैं, उन्हें भगवान के चरणों में वास मिलता है.

देवउठनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त:-

एकादशी तिथि आरंभ 7 नवंबर 2019 की सुबह 9:55 से, एकादशी तिथि समाप्त 8 नवंबर 2019 को दोपहर 12:24 तक, पूजन का शुभ मुहूर्त 8 नवंबर 2019 को शाम 6:00 बजे से 9:00 बजे तक

देवउठनी एकादशी का महत्व:-

हिंदू मान्यता के अनुसार सभी शुभ कार्यों की शुरुआत देवउठनी एकादशी से ही की जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के शयन काल के बाद जागते हैं, विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को छीर सागर में शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु ने चयन किया, 4 महीने योगनिद्रा त्यागने के बाद भगवान विष्णु जागे, इसी के साथ देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास का अंत हो जाता है. जगने के बाद सबसे पहले भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित की जाती है, मान्यता है कि इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से सौ गायों के दान बराबर पुण्य मिलता है.


देवउठनी एकादशी में पूजा विधि:-

एकादशी के दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनना चाहिए.
भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनानी चाहिए.
एक ओखली में गेरू से भगवान विष्णु का चित्र बनाना चाहिए.
ओखली के पास फल, मिठाई, सिंघाड़े और गन्ना रख डलिया से ढक देना चाहिए.
रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीपक जलाने चाहिए
इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.

देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह भी किया जाता है, ये विवाह तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम के बीच होती है. माना जाता है कि भगवान विष्णु जब 4 महीने की नींद से जागे थे, तो सबसे पहले उन्होंने तुलसी प्रार्थना सुनी थी.

सिवनी। देवउठनी ग्यारस को देवोत्थान एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदुओं में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है, मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने तक सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं और इसी दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप लेकर तुलसी से विवाह किया था. आज के बाद से ही सारे मांगलिक कार्यक्रम शुरु हो जाते हैं, जैसे मुंडन, शादी, नामकरण.


पंडित आचार्य नारायण प्रसाद शास्त्री बताते हैं कि एकादशी का पदम पुराण में विस्तृत वर्णन किया गया है, पदम पुराण में बताया गया है कि इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के राजस्व पूर्ण रुप से प्राप्त होते हैं, शास्त्रों में कहा गया है कि अगर किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा है तो एकादशी के दिन कन्या व्रत करके आंगन में तुलसी विवाह करें, तो उसका विवाह जल्द हो जाएगा.

देवउठनी एकादशी का महत्व


शास्त्रों के अनुसार ये भी कहा गया है कि यदी कोई व्यक्ति वर्ष भर व्रत न करके एक बार एकादशी का व्रत करता है, तो संपूर्ण वर्ष के एकादशी का फल प्राप्त होता है. जो लोग भगवान विष्णु का यह व्रत करते हैं, उन्हें भगवान के चरणों में वास मिलता है.

देवउठनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त:-

एकादशी तिथि आरंभ 7 नवंबर 2019 की सुबह 9:55 से, एकादशी तिथि समाप्त 8 नवंबर 2019 को दोपहर 12:24 तक, पूजन का शुभ मुहूर्त 8 नवंबर 2019 को शाम 6:00 बजे से 9:00 बजे तक

देवउठनी एकादशी का महत्व:-

हिंदू मान्यता के अनुसार सभी शुभ कार्यों की शुरुआत देवउठनी एकादशी से ही की जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के शयन काल के बाद जागते हैं, विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को छीर सागर में शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु ने चयन किया, 4 महीने योगनिद्रा त्यागने के बाद भगवान विष्णु जागे, इसी के साथ देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास का अंत हो जाता है. जगने के बाद सबसे पहले भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित की जाती है, मान्यता है कि इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से सौ गायों के दान बराबर पुण्य मिलता है.


देवउठनी एकादशी में पूजा विधि:-

एकादशी के दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनना चाहिए.
भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनानी चाहिए.
एक ओखली में गेरू से भगवान विष्णु का चित्र बनाना चाहिए.
ओखली के पास फल, मिठाई, सिंघाड़े और गन्ना रख डलिया से ढक देना चाहिए.
रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीपक जलाने चाहिए
इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.

देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह भी किया जाता है, ये विवाह तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम के बीच होती है. माना जाता है कि भगवान विष्णु जब 4 महीने की नींद से जागे थे, तो सबसे पहले उन्होंने तुलसी प्रार्थना सुनी थी.

Intro:देवउठनी एकादशी का महत्व


Body:सिवनी:-
देवउठनी ग्यारस को देवोत्थान एकादशी या हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवउठनी एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व है हिंदू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु चार महीने तक सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन जाते हैं इसी दिन भगवान विष्णु शालिग्राम रूप में तुलसी से विवाह करते हैं देवउठनी एकादशी से ही सारे मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह नामकरण मुंडन जनेऊ और गृह प्रवेश की शुरुआत हो जाती है।

पंडित आचार्य नारायण प्रसाद शास्त्री बताते हैं कि भगवान श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा से हमारे सनातन धर्म में प्रबोधनी नाम की एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में प्रबोधिनी देवउठनी नाम की प्रसिद्ध एकादशी है इस एकादशी में धर्म शास्त्रों अनुसार पदम पुराण में विस्तृत वर्णन किया गया है पदम पुराण में इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के राजस्व भैया की का पूर्ण प्राप्त होता है शास्त्रों ने महत्व यह भी माना है कि यदि किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा है तो इस एकादशी व्रत करके तुलसी और शालिग्राम के साथ में विवाह अपने घर के आंगन में करती हैं तो उन कन्याओं का विवाह शीघ्र हो जाता है।
एवं शास्त्रों के अनुसार यही भी इसका विशेष महत्व है कि जो व्यक्ति वर्ष भर में किसी भी एकादशी का व्रत ना करें और वह यदि इस देवउठनी प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करते हैं तो संपूर्ण वर्ष के एकादशी कब बोल्ड ही इस प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से पुण्य का फल प्राप्त होता है। जो भक्त विष्णु भगवान का यह व्रत कर लेते हैं उन्हें भगवान के चरणों में आश्रय मिलता है बैकुंठ का वास मिलता है।

देवउठनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त:-
देवउठनी एकादशी की तिथि 8 नवंबर 2019,,
एकादशी तिथि आरंभ 7 नवंबर 2019 की सुबह 9:55 से,, एकादशी तिथि समाप्त 8 नवंबर 2019 को दोपहर 12:24 तक,, पूजन का शुभ मुहूर्त 8 नवंबर 2019 को शाम 6:00 बजे से 9:00 बजे तक शुभ समय

देवउठनी एकादशी का महत्व:-
हिंदू मान्यता के अनुसार सभी शुभकामनाओं की शुरुआत देवउठनी एकादशी से की जाती है मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के शयन काल के बाद जागते हैं विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को छीर सागर में शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु ने चयन किया इसके बाद 4 महीने की योगनिद्रा त्यागने के बाद भगवान विष्णु जागे इसी के साथ देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास का अंत हो जाता है जागने के बाद सबसे पहले उन्हें तुलसी अर्पित की जाती है मान्यता है कि इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से सौ गायों को दान के बराबर पुण्य मिलता है इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है इस एकादशी का व्रत करना बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

देवउठनी एकादशी में पूजा विधि:-
-एकादशी के दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
- एक ओखली में गेरू से भगवान विष्णु का चित्र बनाना चाहिए।
- ओखली के पास फल मिठाई सिंगाड़े और गन्ना रखें फिर उसे डलिया से ढक दें।
- रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीपक जलाना चाहिए।
- इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए।


देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह भी आयोजित किया जाता है यह शादी तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम के बीच होती है यह विवाह भी सामान्य विभाग की ही तरह धूमधाम से होता है मान्यता है कि भगवान विष्णु जब 4 महीने की निद्रा के बाद जाते हैं तो सबसे पहले तुलसी की प्रार्थना सुनते हैं तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान विष्णु को योगनिद्रा से जगाना।


बाइट- ज्योतिषाचार्य पंडित नारायण प्रसाद शास्त्री


Conclusion:
Last Updated : Nov 8, 2019, 12:34 PM IST
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