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नेत्रहीन शिक्षक धनाराम परते को नहीं मिली शासन से कोई मदद, कई सालों से दे रहे थे बच्चों को निःशुल्क शिक्षा - Blind teacher Dhanaram Parate

लखनादौन विकासखंड के कोडरामाल गांव में नेत्रहीन शिक्षक धनाराम परते आज शासन-प्रशासन की अनदेखी का शिकार हैं. वे पिछले कई सालों से छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे थे, लेकिन अब आर्थिक किल्लत के कारण उन्हें ये काम बंद करना पड़ा है.

नेत्रहीन शिक्षक धनाराम को शासन से मदद की आस
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Published : Sep 5, 2019, 12:29 PM IST

सिवनी। शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए आज शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. वहीं लखनादौन विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत चूलगांव के कोडरामाल में नेत्रहीन शिक्षक धनाराम परते की शासन-प्रशासन ने आज तक कोई सुध नहीं ली है, जबकि नेत्रहीन शिक्षक बच्चों को कई सालों से निःशुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे थे. अब तक उन्हें प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है, जिसके चलते उन्होंने बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का काम बंद कर दिया है.

नेत्रहीन शिक्षक धनाराम को शासन से मदद की आस

शिक्षक धनाराम परते नेत्रहीन होने के बावजूद गांव के ही प्राथमिक स्कूल में पिछले कई सालों से बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे थे. जिसके बाद उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए माध्यमिक स्कूल में भी पढ़ाने का आग्रह किया गया. तकरीबन 1998 से लेकर साल 2012 तक बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का काम करते रहे लेकिन शासन और प्रशासन की ओर से उन्हें कोई सहायता राशि नहीं मिली और ना ही कोई और मदद उन्हें मिली. जिस वहज से आहत होकर शिक्षक धनाराम ने निशुल्क शिक्षा देना का काम छोड़ दिया लेकिन आज भी उन्हें इस बात का मलाल होता है कि वो बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे है.

नेत्रहीन शिक्षक धनाराम बताते हैं कि मेरे द्वारा पढ़ाए हुए गांव के बच्चे आज सरकारी जॉब में है तो कुछ बच्चे प्राइवेट जॉब कर रहे हैं. धनाराम का कहना है कि उन्होंने इतने साल बच्चों को अच्छी शिक्षा दी लेकिन उनके इस काम के लिए सरकार से उन्हें कुछ भी नहीं मिला है.

सिवनी। शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए आज शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. वहीं लखनादौन विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत चूलगांव के कोडरामाल में नेत्रहीन शिक्षक धनाराम परते की शासन-प्रशासन ने आज तक कोई सुध नहीं ली है, जबकि नेत्रहीन शिक्षक बच्चों को कई सालों से निःशुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे थे. अब तक उन्हें प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है, जिसके चलते उन्होंने बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का काम बंद कर दिया है.

नेत्रहीन शिक्षक धनाराम को शासन से मदद की आस

शिक्षक धनाराम परते नेत्रहीन होने के बावजूद गांव के ही प्राथमिक स्कूल में पिछले कई सालों से बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे थे. जिसके बाद उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए माध्यमिक स्कूल में भी पढ़ाने का आग्रह किया गया. तकरीबन 1998 से लेकर साल 2012 तक बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का काम करते रहे लेकिन शासन और प्रशासन की ओर से उन्हें कोई सहायता राशि नहीं मिली और ना ही कोई और मदद उन्हें मिली. जिस वहज से आहत होकर शिक्षक धनाराम ने निशुल्क शिक्षा देना का काम छोड़ दिया लेकिन आज भी उन्हें इस बात का मलाल होता है कि वो बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे है.

नेत्रहीन शिक्षक धनाराम बताते हैं कि मेरे द्वारा पढ़ाए हुए गांव के बच्चे आज सरकारी जॉब में है तो कुछ बच्चे प्राइवेट जॉब कर रहे हैं. धनाराम का कहना है कि उन्होंने इतने साल बच्चों को अच्छी शिक्षा दी लेकिन उनके इस काम के लिए सरकार से उन्हें कुछ भी नहीं मिला है.

Intro:नेत्रहीन शिक्षक हुआ बेसहारा शासन प्रशासन ने नहीं ली सुध

बच्चों को निशुल्क शिक्षा देते थे नेत्रहीन शिक्षक धनाराम परतें


Body:सिवनी:-
सिवनी जिले के लखनादौन विकासखंड के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत चूलगांव तहसील मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर अंदर बसे गांव कोडरा माल में एक गरीब और नेत्रहीन शिक्षक को शासन प्रशासन ने अनदेखा करते हुए बेसहारा कर दिया है लेकिन शिक्षक आज भी बच्चों को शिक्षा देने की अलग जगह हुए हैं लेकिन नेत्रहीन शिक्षक की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

वीओ- हम बात कर रहे हैं शिक्षक धनाराम परते की जो जन्म से ही नेत्रहीन है जिन्होंने सबसे पहले स्वयं शिक्षित होकर अपने जीवन को रोशन करने की कोशिश कर उन्होंने अपनी पढ़ाई बीए और कंप्यूटर की शिक्षा ब्रेन लिपि और ऑडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से ग्रहण की और इसके बाद उन्होंने बच्चों के जीवन में रोशनी भरने का संकल्प लिया और गांव के ही प्राथमिक स्कूल में बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने लगे उनके कार्य को देखते हुए उनकी लगन को देखकर उन्हें माध्यमिक स्कूल में पढ़ाने हेतु प्रधान पाठक ने कहा तो फिर वह माध्यमिक स्कूल के बच्चों को शिक्षा देने में जुटे रहे यह कार्य उन्होंने लगभग 1998 सन से इसी आशा से करते रहे कि शासन-प्रशासन से उन्हें कोई सहायता मिल जाएगी लेकिन शिक्षक को जब कहीं से सहायता मिलना शुरू नहीं हुई तो उन्होंने 2012 से बच्चों को पढ़ाना बंद कर दिया जिसके बाद भी किसी भी जनप्रतिनिधियों ने तक गरीब और नेत्रहीन शिक्षक की सुध लेना उचित नहीं समझा।

बेसहारा और नेत्रहीन शिक्षक जो आज भी बच्चों को शिक्षा देने की ललक रखते हैं शिक्षक कहते हैं कि शैक्षणिक कार्य जैसा कोई कार्य मुझे समझ में नहीं आता इसी वजह से मैंने बच्चों की फ्री सेवा की है लेकिन सरकार हमारे लिए कोई हेल्प नहीं की तो मजबूर होकर मुझे कारी छोड़ना पड़ा यदि आज भी शासन-प्रशासन नदी मेरी हेल्प करता है तो मैं शिक्षा देने के लिए आतुर हूं।
नेत्रहीन शिक्षक पढ़ते बताते हैं कि मेरे द्वारा पढ़ाए हुए गांव के बच्चे आज सरकारी जॉब में है तो कुछ बच्चे प्राइवेट जॉब कर रहे हैं। वही बेसहारा शिक्षक आज भी सरकार से अपेक्षा रखते हैं कि मैंने जो भी कार्य किए हैं और मैं और भी कार्य करना चाहता हूं इसके लिए सरकार मुझे कुछ ना कुछ मानदेय रखें जिससे मैं परिवार का पालन पोषण भी कर सकूं और गांव के बच्चों की भी सेवा करता रहूं।

बाइट-1- धनाराम परते शिक्षक
बाइट-2- पंचम डेहरिया गांव कोटवार


Conclusion:
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