सिवनी। देशभर में जब लोग गुलाल के रंगों में रंगे होते हैं तब सिवनी के पांजरा गांव में लोग 60 फीट ऊंचे झूले में झूल रहे होते हैं. यहां सदियों पुरानी परंपरा अनुसार होलिका दहन के अगले दिन लोग मेघनाद बाबा की पूजा करते हैं. ये पूजा भारत की सबसे बड़ी मेघनाद पूजा है, जो आदिवासी समाज की आस्था का केंद्र हैं. पढ़ें होली की इस अलहदा पंरपरा की कहनी-
होलिका दहन के अगले दिन नहीं खेलते होली
पांजरा गांव में परंपरा है कि होलिका दहन के अगले दिन यहां मेघनाद का मेला भरता है. इस दिन यहां होली नहीं खेली जाती है. 60 फीट से ज्यादा ऊंचे लकड़ी के मेघनाद बाबा की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मेघनाद की पूजा सच्चे मन से की जाए तो असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं, निसंतान दंपत्तियों की गोद भरती है और हर तरह की समस्याओं का हल भी निकलता है. यहां जो भी मन्नत मांगी जाती हैं, वो जरूर पूरी होती है.
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मन्नत पूरी होने के बाद 60 फीट ऊंचा झूला होता है झूलना
मेघनाद बाबा से मांगी हुई मन्नत पूरी होने के बाद परंपरा अनुसार मन्नत मांगने वाले पूरे परिवार को उपवास को रखना होता है. यहां तक की घर में चूल्हा भी नहीं जलता और तो और उस घर में सुबह से ही उत्सव जैसा माहौल रहता है. इस दिन गाजे-बाजे के साथ पूरा परिवार मेघनाद की पूजा के लिए निकलता है. परिवार के एक सदस्य को इस दिन 60 फीट से ज्यादा ऊंचा झूला झूलना होता हैं. वहीं जो झूला झूलता है उसे वीर कहा जाता है.
घर-घर जातें हैं वीर लोगों की बधाई लेने
वीर को मेले में जाने से पहले गांव के प्रमुख लोगों के घर बधाई लेने जाना होता है, जिसे तिलक लगाकर कुछ उपहार दिए जाते हैं. फिर ढोल-धमाकों के साथ ये सभी मेघनाद के पास पहुंचते हैं. जहां पंडा इनकी पूजा करते हैं. पूजा के बाद सीढ़ियों की मदद से वीर ऊपर चढ़ता है, जहां दो लोग इसे मेघनाद की एक बांह में रस्सी के सहारे लटका देते हैं और दूसरी बांह में बंधी लंबी रस्सी के सहारे नीचे से गोल चक्कर मे घुमाया जाता है.
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बलि की भी है परंपरा
कहा जाता जिनकी मन्नत पूरी होती है उन वीरों पर मेघनाद का भार आ जाता है. मान्यता ये भी है कि मन्नत पूरी होने के बाद वीर को चढ़ावा देना होता है. इस चढ़ावे में बलि की भी परंपरा है, जो सदियों से निभाई जा रही है.
पूरे गांव में होता है उत्साह का माहौल
भले ही ये परंपरा आदिवासी समाज की आस्था का केंद्र हो लेकिन पूरे गांव में परंपरा में हर्षोल्लास के साथ सम्मिलत होता है. केवलारी में रहने वाली नारायणी तिवारी बताती हैं कि उनके बड़े बेटे को शादी के काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. लेकिन बीते साल उन्होंने मेघनाद बाबा से मन्नत मांगी थी कि बहू की गोद भर जाए. जिसके बाद वे यहां आकर मेघनाद बाबा की पूजा करेंगी. उनकी ये मन्नत पूरी हो चुकी हैं और अब उन्हें मेघनाद मेले का इंतजार है.
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आस्था और विश्वास का केंद्र है ये परंपरा
पांजरा गांव में मेघनाद मेले के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती हैं. यहां मेघनाद मेले के बाद ग्रामीणों में होली का अलग ही जुनून देखने को मिलता है. पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ये परंपरा आस्था और विश्वास का वो केंद्र है जिसके भरोसे न सिर्फ लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं बल्कि इतनी ऊंचाई पर महज एक रस्सी के भरोसे झूला झूलने की भी हिम्मत देती है.