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खतरे में लकड़ी के खिलौने का कारोबार, सरकार से मदद की आस - बुधनी घाट

नर्मदा किनारे बुधनी के वार्ड नंबर 10 को बुधनी घाट के नाम से जाना जाता है, जो कि लकड़ी के खिलौने उद्योग से प्रसिद्ध है, लेकिन अब इन परिवार को सरकार से पर्याप्त व्यवस्थाओं की आशाएं हैं जिनसे इन खिलौने का अस्तित्व बचाया जा सकें.

Wooden toy making artisan business in financial crisis
खतरे में लकड़ी के खिलौने का कारोबार
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Published : Dec 9, 2020, 8:00 PM IST

सीहोर। बुधनी में ऐतिहासिक नर्मदा घाट के किनारे मौजूद बुधनी घाट, पूरे देश में लकड़ी के खिलौने के लिए प्रसिद्ध है, यहां रहने वाले करीब 50 से 60 परिवार इसी कारोबार के जरिए अपना पालन पोषण कर रहे हैं.

कड़ी मेहनत के बाद तैयार होते हैं खिलौने

जब यहां बिजली नहीं थी, तब यहां लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए हाथ की कमानी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन उस समय और अब के काम में काफी बदलाव आ चुका है, अब मोटर द्वारा लकड़ी को घुमाया जाता है, और ओजारों से उसे आकार दिया जाता है, पहले लकड़ी की कटाई की जाती है, फिर उसे खिलौने का रूप दिया जाता है, घर के अन्य सदस्यों द्वारा इस पर रंग लगाया जाता है, इस पूरी प्रक्रिया में घर के सभी सदस्य सहयोग करते हैं. तब जाकर खिलौना तैयार होता है.


खिलौने के कारोबार पर आर्थिक संकट

लकड़ी के खिलौने बनाने का काम, इन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाता है, वहीं दूसरी ओर इनके सामने कच्चे माल को लेकर हमेशा से समस्याएं रही हैं, दअरसल लकड़ी की पर्याप्त व्यवस्थाएं वन विभाग की ओर से नहीं मिल पाती हैं, जिस वजह से कई बार इनके ऊपर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगता है, फिलहाल इस वर्ष वन विभाग ने लकड़ी मुहैया कराई है, जिसे एक प्रक्रिया के तहत दी जाती है, जिसमें लागत को लेकर इनके सामने समस्या होती है, और इन्हीं समस्याओं के चलते अब नई युवा और नई पीढ़ियां इस काम से दूर होकर अन्य काम या नौकरी में जुट रहे हैं, जिससे अब आने वाले समय में इसका अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है.

प्रशासन से मदद की गुहार

वर्षों से काम कर रहे ये विश्वकर्मा परिवार के लोग अब शासन-प्रशासन से इस काम के प्रति अच्छी व्यवस्थाएं और सामान को सही विक्रय की व्यवस्थाएं चाह रहे हैं, जिससे इस उद्योग की पहचान और अस्तित्व बचा रहे.

सीहोर। बुधनी में ऐतिहासिक नर्मदा घाट के किनारे मौजूद बुधनी घाट, पूरे देश में लकड़ी के खिलौने के लिए प्रसिद्ध है, यहां रहने वाले करीब 50 से 60 परिवार इसी कारोबार के जरिए अपना पालन पोषण कर रहे हैं.

कड़ी मेहनत के बाद तैयार होते हैं खिलौने

जब यहां बिजली नहीं थी, तब यहां लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए हाथ की कमानी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन उस समय और अब के काम में काफी बदलाव आ चुका है, अब मोटर द्वारा लकड़ी को घुमाया जाता है, और ओजारों से उसे आकार दिया जाता है, पहले लकड़ी की कटाई की जाती है, फिर उसे खिलौने का रूप दिया जाता है, घर के अन्य सदस्यों द्वारा इस पर रंग लगाया जाता है, इस पूरी प्रक्रिया में घर के सभी सदस्य सहयोग करते हैं. तब जाकर खिलौना तैयार होता है.


खिलौने के कारोबार पर आर्थिक संकट

लकड़ी के खिलौने बनाने का काम, इन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाता है, वहीं दूसरी ओर इनके सामने कच्चे माल को लेकर हमेशा से समस्याएं रही हैं, दअरसल लकड़ी की पर्याप्त व्यवस्थाएं वन विभाग की ओर से नहीं मिल पाती हैं, जिस वजह से कई बार इनके ऊपर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगता है, फिलहाल इस वर्ष वन विभाग ने लकड़ी मुहैया कराई है, जिसे एक प्रक्रिया के तहत दी जाती है, जिसमें लागत को लेकर इनके सामने समस्या होती है, और इन्हीं समस्याओं के चलते अब नई युवा और नई पीढ़ियां इस काम से दूर होकर अन्य काम या नौकरी में जुट रहे हैं, जिससे अब आने वाले समय में इसका अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है.

प्रशासन से मदद की गुहार

वर्षों से काम कर रहे ये विश्वकर्मा परिवार के लोग अब शासन-प्रशासन से इस काम के प्रति अच्छी व्यवस्थाएं और सामान को सही विक्रय की व्यवस्थाएं चाह रहे हैं, जिससे इस उद्योग की पहचान और अस्तित्व बचा रहे.

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